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Climate Summit: अनिर्णय की आशंका के बीच पर्यावरण सम्मेलन समाप्ति की ओर, देशों के बीच नहीं बन पा रही है सहमति

पर्यावरण सम्मेलन में कई देशों के बीच कई मुद्दों पर असहमति जाहिर की जा रही है। EU के पर्यावरण मामलों के प्रमुख फ्रांस टिमरमैंस ने कहा है कि सम्मेलन में बातचीत का आगे बढ़ना मुश्किल हो रहा है।

By Jagran NewsEdited By: Piyush KumarUpdated: Thu, 17 Nov 2022 10:12 PM (IST)
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पर्यावरण सम्मेलन के दौरान देशों के बीच नहीं निकल रहा है कोई निष्कर्ष। (फाइल फोटो)
शर्म अल-शेख, रायटर। पर्यावरण सम्मेलन के अंतिम दौर में वार्ता मुश्किल होती जा रही है। गुरुवार के बाद शुक्रवार को अंतिम दिन भी यही स्थिति बनी रहने के आसार हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि सम्मेलन में भाग ले रहे देशों के बीच सहमति नहीं बन पा रही है। असहमति का सबसे बड़ा बिंदु विकसित देशों द्वारा पूर्व घोषणा के अनुसार विकासशील देशों और गरीब देशों को आर्थिक मदद के लिए तैयार नहीं होना है। बिना आर्थिक मदद और उन्नत तकनीक के गरीब देशों के लिए पर्यावरण सुधार के लिए कड़े कदम उठा पाना संभव नहीं होगा, क्योंकि उन कदमों से देशों के आर्थिक हित सीधे तौर पर प्रभावित होंगे।

पेरिस में तापमान की सीमा हुई थी निर्धारित 

यूरोपीय संघ के पर्यावरण मामलों के प्रमुख फ्रांस टिमरमैंस ने कहा है कि सम्मेलन में बातचीत का आगे बढ़ना मुश्किल हो रहा है। सोचकर डर लग रहा है कि इन वार्ताओं का अंत होगा या नहीं। अगर पर्यावरण सम्मेलन अनिर्णय का शिकार हुआ तो हम सभी का नुकसान होगा। संयुक्त राष्ट्र के गुरुवार को सार्वजनिक हुए मसौदे में वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने पर जोर दिया गया है। तापमान की यह सीमा पेरिस समझौते में निर्धारित हुई थी। इसके अतिरिक्त मसौदा किसी अन्य बिंदु पर जोर देता या सीमा निर्धारित करता प्रतीत नहीं होता। वैसे सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे मिस्त्र ने सम्मेलन की सफलता को लेकर आशा बंधाई है। कहा है कि कुछ बिंदुओं पर सहमति के संकेत मिल रहे हैं। 

प्राकृतिक उत्पादों पर लगे पांबदी, यूरोपीय संघ और कई अन्य देशों ने किया समर्थन

बता दें कि मिस्त्र के शर्म अल-शेख में हो रहे अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन (सीओपी 27) में गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र ने पहला मसौदा पेश किया। इस मसौदे में तेल और गैस का चरणबद्ध तरीके से उपयोग बंद करने पर कुछ नहीं कहा गया है। दोनों प्राकृतिक उत्पादों का उपयोग बंद करने का प्रस्ताव भारत का था जिसे यूरोपीय संघ और कई अन्य देशों का समर्थन प्राप्त था। इन्हीं दोनों प्राकृतिक उत्पादों (तेल और गैस) के उपयोग से पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान होता है।

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