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अफगानिस्तान में महिला प्रशिक्षकों और छात्राओं को सता रहा ये डर, तालिबान शासन में बिगड़ रहे हालात

स्कूलों में लड़कियों के स्कूल जाने को लेकर पाबंदी का एलान किया गया था जिसके बाद से महिला प्रशिक्षकों और छात्रों को डर है कि तालिबान उन्हें विश्वविद्यालयों में कभी वापस नहीं जाने देगा। ऐसे में यहां के प्रोफेसर और छात्र अफगानिस्तान छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं।

By Pooja SinghEdited By: Updated: Fri, 01 Oct 2021 12:23 PM (IST)
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अफगानिस्तान में महिला प्रशिक्षकों और छात्राओं को सता रहा ये डर, तालिबान शासन में बिगड़ रहे हालात
काबुल, एएनआइ। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से महिलाओं की स्थिति और भी ज्यादा दयनीय हो गई है। प्रत्येक दिन नए-नए फरमान सुनाए जा रहे हैं। पिछले दिनों स्कूलों में लड़कियों के स्कूल जाने को लेकर पाबंदी का एलान किया गया था, जिसके बाद से महिला प्रशिक्षकों और छात्रों को डर है कि तालिबान उन्हें विश्वविद्यालयों में कभी वापस नहीं जाने देगा। ऐसे में यहां के प्रोफेसर और छात्र अफगानिस्तान छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं। हालांकि, यहा पर लड़कों का स्कूल जाना शुरू हो गया है, लेकिन अभी लड़कियों के स्कूल जाने को लेकर स्थिति साफ नहीं हुई है।

तालिबान शासन में महिलाओं के अधिकारों का हो रहा हनन

द न्यू यार्क टाइम्स (The New York Times) में लिखते हुए कोरा एंगेलब्रेक्ट और शरीफ हसन ने कहा कि अफगानिस्तान में तालिबान शासन के तहत महिलाओं के अधिकारों का हनन हो रहा है। इसके साथ ही इस रिपोर्ट में बताया गया है कि तालिबान के ऐसे फरमान के चलते अफगान प्रोफेसर भी देश छोड़ रहे हैं। इतना ही नहीं बड़ी संख्या में यहां पर प्रोफेसर देश छोड़ने की कोशिश में लगे हैं।

तालिबान के शासन में यूनिवर्सिटी में भयावह माहौल

द टाइम्स के साथ बात करने वाले व्याख्याताओं के अनुमानों के अनुसार, देश के आधे से अधिक प्रोफेसरों ने या तो अपनी नौकरी छोड़ दी है या फिर से वह नौकरी करेंगे। शरीफ हसन ने बताया कि काबुल यूनिवर्सिटी में हाल ही के दिनों में प्रोफेसर की संख्या कम हुई है। इसके साथ ही यूनिवर्सिटी के एक पूर्व सदस्य ने बताया कि यहां पर भयावह माहौल है। 

वहीं संयुक्त राष्ट्र में तालिबान द्वारा नामित दूत सुहैल शाहीन ने एक बार फिर से संगठन से अंतरराष्ट्रीय मंच पर अफगानिस्तान का प्रतिनिधितव करने की इजाजत का आग्रह किया है। टोलो न्यूज के मुताबिक, शाहीन ने आग्रह किया कि अफगानिस्तान की पूर्व सरकार गिर जाने के बाद उसका दूत देश का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है।