यूरोप में रूस की गैस सप्लाई हुई बंद तो जर्मनी को अपने न्यूक्लियर प्लांट्स के लिए मजबूरन उठाना पड़ा ये कदम
रूस द्वारा गैस की सप्लाई बंद किए जाने से जर्मनी के सामने संकट खड़ा हो गया है। उसकी सबसे बड़ी समस्या है कि उसके पास इतने सोर्स भी नहीं है कि वो अपनी ऊर्जा की जरूरत को पूरा कर सके।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 06 Sep 2022 08:52 AM (IST)
मास्को/बर्लिन (एजेंसी)। रूस ने एक बार फिर से यूरोप की गैस सप्लाई पूरी तरह से बंद कर दी है। इसकी वजह रूस ने तकनीकी दिक्कत बताई है। रूस ने ये भी कहा है कि परेशानी को दूर करने वाले उसको नहीं मिल रहे हैं इसलिए उसको मजबूरन ये कदम उठाना पड़ा है। इस वजह से यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी को अपने दो न्यूक्लियर प्लांट्स को स्टैंडबाय पर रखना पड़ा है। लेकिन क्या न्यूक्लियर प्लांट जर्मनी की ऊर्जा की जरूरत को पूरा करने में कामयाब हैं।
इसके अलावा रूस की गैस के अभाव में यूरोप आने वाली सर्दियां कैसे काटेगा ये दूसरा सवाल भी जर्मनी के काफी बड़ा है। ऐसा इसलिए क्योंकि समूचा यूरोप सर्दियों में अपने घरों, आफिसों, शापिंग माल्स, दुकानों आदि को गर्म रखने के लिए रूस की गैस का ही इस्तेमाल करता है। ये गैस की सप्लाई नार्ड स्ट्रीम 1 पाइपलाइन के जरिए की जाती है।जब से रूस से यूक्रेन पर युद्ध थोपा है और पश्चिमी देशों ने उसके ऊपर प्रतिबंध लगाए हैं तभी से रूस इस गैस को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है। रूस चाहता है कि पश्चिमी देश मास्को पर लगाए प्रतिबंधों को बिना शर्त हटाएं, जबकि यूरोप और अमेरिका समेत कुछ अन्य देश ऐसा करने से इनकार कर रहे हैं। रूस की यूरोप को गैस की सप्लाई ठप होने से यूरोप में एनर्जी क्राइसेस काफी जोरों पर हैं। जर्मनी क्योंकि यूरोप का सबसे बड़ा देश है इसलिए इसका अधिक भी यहां पर देखने को मिलता है। गैस के अभाव में जर्मनी के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि अब वो क्या करे।
जर्मनी के आर्थिक मंत्री राबर्ट हैबेक का कहना है कि उनके दो नए प्लांट अब तक चालू नहीं हुए हैं। ये अगले वर्ष अप्रैल के मध्य में ही चालू हो सकेंगे। उनका ये भी कहना है कि एनर्जी क्राइसेस काफी बड़ा है। न्यूक्लियर प्लांट को लेकर डिले के पीछे उन्होंने पूर्व चांसलर एंजेला मर्केल को बताया है। जर्मनी के एक अन्य मंत्री का कहना है कि देश न्यूक्लियर एनर्जी से किसी दूसरी तरफ शिफ्ट होने की बात नहीं कर रहा है, लेकिन न्यूक्लियर प्लांट में नई फ्यूल रॉड्स को अगले वर्ष अप्रैल से पहले नहीं डाला जा सकता है। फिलहाल देश के पास में इतने एनर्जी सोर्स नहीं है कि वो अपनी जरूरत को पूरा कर सकें। इतना ही नहीं अभी तक न्यूक्लियर प्लांट को पावर ग्रिड से भी नहीं जोड़ा जा सका है। जर्मनी यदि कोयले से एनर्जी की कुछ जरूरत को पूरा करने पर जाता है तो वहां पर क्लाइमेट क्राइसेस आड़े आता है।
युद्ध की शुरुआत से ही रूस ने यूरोप को होने वाली गैस सप्लाई में जबरदस्त कटौती की है। हैबेक ने प्रेस कांफ्रेंस में यहां तक कहा कि क्लाइमेट क्राइसेस भी उनके लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ हे। इसका असर भी अब दिखाई देने लगा है। गर्मियों में पड़ी भीषण गर्मी और पानी की कमी इसका जीता जागता उदाहरण हैं। नदियों में पानी की कमी का असर फ्यूल ट्रांसपोर्ट पर भी पड़ा है।
गौरतलब है कि वर्ष 2011 में जापान के फुकुशिमा न्यूक्लियर पावर प्लांट में हुए धमाके के बाद जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने न्यूक्लियर पावर प्लांट के काम को लगभग रोक दिया था। इनसे केवल 6 फीसद ही उत्पादन किया जा रहा था। इस मुद्दे पर जर्मनी में बहस भी छिड़ गई थी। जर्मनी ने कहा है कि रूस नार्ड गैस पाइपलाइन 1 को लेकर झूठ बोल रहा है। लेकिन जर्मनी इसको लेकर रूस से कोई बात नहीं करेगा। देखते हैं कि क्या किया जा सकता है।