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कहीं गैस पाइनलाइन के जरिए यूरोपीय देशों को ब्‍लैकमेल न करने लगे रूस, अमेरिका अशांकित!

रूस की ओर से स्टील और कंकरीट निर्मित एक गैसपाइप लाइन को बाल्टिक सागर के नीचे से होकर गुजारा जा रहा है, जिससे कि यूरोपीय देशों को गैस सप्लाई की जाएगी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Thu, 26 Apr 2018 04:26 PM (IST)
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कहीं गैस पाइनलाइन के जरिए यूरोपीय देशों को ब्‍लैकमेल न करने लगे रूस, अमेरिका अशांकित!

मुकरान [एजेंसी]। रूस से जर्मनी को जोड़ने वाली नार्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन को लेकर यूरोपीय देशों में मतभेद उभर रहा है। रूस की ओर से स्टील और कंकरीट निर्मित एक गैसपाइप लाइन को बाल्टिक सागर के नीचे से होकर गुजारा जा रहा है, जिससे कि यूरोपीय देशों को गैस सप्लाई की जाएगी। यह गैसलाइन 36 मीटर लंबे और 24 टन वजनी पाइप को जोड़कर तैयार की जाएगी। इस पाइपलाइन की लंबाई 800 मील की होगी।

मास्को को इस पाइपलाइन से यूरोपीय देशों में नए गैस खरीददार मिलने वाले है, जिससे कि रूसी अर्थव्यवस्था को काफी फायदा पहुंचने की संभावना है। वहीं रूसी गैस खरीद को लेकर यूरोपीय देशों में कुछ मतभेद जरुर हैं। इसे लेकर यूरोपीय देशों में मंथन चल रहा है। 12 बिलियन की लागत से तैयार होने वाली इस पाइपलाइन को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। मामले को लेकर जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल और राष्ट्रपति ट्रंप की शुक्रवार की वार्ता के दौरान जोरदास बहस होने की पूरी संभावना है।

दरअसल जर्मनी का मानना है कि नार्ड स्ट्रीम 2 के नाम से जाना जाने वाला मेगा प्रोजोक्ट यूरोपीय महाद्वीप की जरुरतों के मद्देनजर काफी महत्वपूर्ण है और भविष्य में इस गैस पाइपलाइन से महाद्वीप में सस्ती, साफ ऊर्जा की जरुरतों को पूरा करने में काफी मदद मिलेगी। लेकिन दूसरी ओर अमेरिका समेत कई अन्य यूरोपीय देश पाइपलाइन को लेकर आशंकित हैं।

उनके मुताबिक इस तरह के प्रोजेक्ट रुस को काफी फायदा पहुंचाने वाले होंगे और रूस इस प्रोजेक्ट को लेकर यूरोपीय देशों को ब्लैकमेल करने का काम कर सकता है। रूस इस गैस पाइपालाइन से यूरोपीय देश में दखल देन की शक्ति हासिल कर लेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इन आरोपों को नजरअंदाज भी कर दिया जाए, तो जिस तरह से गैस पाइपलाइन को यूरोपीय देशों में मतभेद उभर रहे है, ऐसे में इस गैसपाइप लाइन को पश्चिमी देशों को बांटने की एक कोशिश के तौर पर जरुर देखा जा रहा है।

यूरोपियन कमीशन के ऊर्जा मामलों के उपाध्यक्ष मारोज सैफ्कोविक के मुताबिक मैंने कभी भी इस तरह के कॉमर्शियल प्रोजेक्ट को यूरोपीय राजनीति में चर्चा का विषय बनते नहीं देखा है। उन्होंने स्वीकार किया कि वास्तव में ये प्रोजेक्ट यूरोपीय यूनियन में ध्रुवीकरण का एक साधन है। इन सबमें सबसे ज्यादा जर्मनी में ध्रुवीकरण की आशंका है।

ट्रंप की ओर से व्हाइट हाउस के बंद दरवाजों के पीछे मार्केल से इस मुद्दे पर रोक को लेकर एक बहस जरुर होगी, क्योंकि अमेरिकी कांग्रेस की ओर से बहुमत से इस गैस पाइपलाइन के निवेशकों के खिलाफ प्रतिंबंध लगाने की बात कही गई है, जिसमें जर्मनी के निवेशक भी शामिल हैं। वहीं व्हाइट हाउस में बाल्टिक क्षेत्र के नेताओं के साथ इस माह हुई एक मीटिंग में ट्रंप की ओर से कहा गया था कि जर्मनी रूस के साथ मिलकर एक पाइपलाइन बिछ रह है, जिसके माध्यम से रूस से गैस जर्मनी आएगी और इसके बदले जर्मनी रूस को कई बिलियन डॉलर देगा। उन्होंने कहा था कि ऐसे में मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है, कि आखिर हो क्या रहा है।

मार्केल के मुताबिक यह प्रोजेक्ट पूरी तरह से कॉमर्शियल है। इसे लेकर किसी तरह की कोई आशंका नहीं व्यक्त की जानी चाहिए। मार्केल इस प्रोजोक्ट को लेकर का आशावान है। उनके इस बयान के बाद कहा जा रहा है कि मार्केल के राजनीतिक हितो का भी ध्यान रखना चाहिए। लोगों में प्रोजेक्ट के भविष्य को लेकर काफी संदेह है, क्योंकि क्या यूरोप में मार्केल अपनी सहयोगियों को नाराज करके ये कदम आगे बढ़ाएंगी या फिर वो अपनी साथी देशों को मनाने पर जोर देंगी दूसरी तरफ उनके इस प्रोजेक्ट में अकेले जुड़ने को लेकर भी अटकले लगाई जा रही हैं।

जर्मन संसद की विदेश मामलों की समिति के नॉरबर्ट रोटेगन के मुताबिक गैस पाइपलाइन को लेकर जर्मनी पर अमेरिका और कई यूरोपीय देशों का काफी दबाव है। लेकिन शायद अब काफी देर हो चुकी है। ऐसे में अब इसे प्रोजेक्ट पर रोक लगना मुश्किल है। जर्मनी की ओर से प्रोजेक्ट को पिछले महीने अपनी इजाजत दे दी गई है। जर्मनी की ओर से अपने हिस्से की पाइपलाइन प्रोजेक्ट का काम शुरु हो चुका है, जहां रूस की ओर से आने वाली गैसपाइप लाइन जर्मनी के हारबर पर आकर मिलेगी।

इस प्रोजेक्ट के प्रवक्ता जेन्स मुल्लर के मुताबिक हम अपने शेड्यूल के मुताबिक हैं। हमें जर्मनी और फिनलैंड सरकार से इजाजत मिल चुकी है और आने वाले दिनों में अन्य यूरोपीय देशों से इजाजत मिलने की संभावना है। जिसे लेकर हम पाइपलाइन के निर्माण को लेकर पूरी तरह से संतुष्ट हैं। डेनमार्क जैसे देशों को पाइपलाइन को लेकर सुरक्षा के मुद्दे पर डर है। हालांकि सारी दुविधाओं को दूर करके अगले वर्ष के अंत तक पाइपलाइन के निर्माण की बात कही गयी।

यूरोप अपनी गैस की जरुरतों को लेकर यूरोप पर निर्भर है। रूस से यूरोप को सप्लाई होने वाली गैस वहां की कुल सप्लाई का एक तिहाई है। वहीं जर्मनी रूस से गैस आयात करने वाला विश्व का सबसे बड़ा देश हैं। देश की करीब 40 फीसद गैस रुस से आती है। वहीं आगामी गैस पाइपलाइन से गैस आयात की मात्रा बढ़ सकती है।

पश्चिमी देश के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक जर्मनी रुस के बड़े गेम प्लान को देखने में नाकामयाब है। उनके मुताबिक जर्मनी खतरे की आहट को महसूस नहीं कर रहा है, जो कि यूरोप के भविष्य के लिए काफी खतरनाख होने वाला है। अधिकारी के मुताबिक गैस पाइपलाइन के जरिए रूसी मिलिट्री को बाल्टिक सागर में बेरोकटोक एंट्री मिल जाएगी, जिससे कि वो यूरोपीय देशों में दखल दे सकते हैं।

नाटो के एक अधिकारी के मुताबिक रुस ने गैस को लेकर पहले भी कई तरह के गेम खेले है। रूस की ओर से यूक्रेन को गैस सप्लाई बंद करके उस पर पश्चिमी देशों संग संबंध न बनाने को लेकर दबाव बनाया गया था। यूक्रेन इस बार भी नार्ड स्ट्रीम 2 के उसके क्षेत्र से गुजरने को लेकर 2 बिलियन सालाना हर्जाना मांग रहा है, जो एक अलग विवाद की वजह है।

इस मामले में जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल ने रुसी राष्ट्रपति से फोन पर बातचीत करके यूक्रेन के हित प्रभावित न किए जान का मांग की है। जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्योरिटी अफेयर्स के एक वरिष्ठ सहयोगी कर्स्टन वेस्टफल ने कहा कि यूरोप की ऊर्जा जरुरतों को काफी लंबे समय से अनदेखा किया गया है। इसकी वजह से यह समस्या आई है।

गैस परियोजना के प्रवक्ता मयूलर ने कहा कि व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा को भूराजनीतिक के दायरे में नहीं लाया जाना चाहिए, जैसा की अभी किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि शायद अमेरिका की ओर से यूरोप को एलएनजी बेचे जाने के चलते इस गैस पाइपलाइन का विरोध किया जा रहा है, जो कि खुद एक राजनीतिक बहस का मुद्दा है।

इस विवादों के इतर रखकर जर्मनी शहर के मेयर एक्सेल वोग का मानना है कि इस गैस पाइपलाइन को अमेरिकी और यूरोपीय राजनीति से दूर रखना चाहिए। लोग मानते हैं कि रूस को बड़े विश्वसनीय व्यापारिक भागीदार के रुप में देखते हैं। ऐसे में हम इसे पूरी तरह से व्यापारिक सौदेबाजी मानते हैं।