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नेपाल के कंधे पर ड्रैगन का सम्मोहन : अभिषेक गुप्ता

भारत और नेपाल के बीच ऐतिहासिक सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध काफी पुराना हैं जिसके कुछ महत्वपूर्ण कारण है जिनमें सबसे पहले आता है हिन्दू धर्म। अगर 2021 की जनगणना रिपोर्ट की मानें तो नेपाल में 81.19 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू है जिसके चलते दोनों ही देशों में सभ्यता और संस्कृति में बहुत अधिक समानता है। दूसरा नेपाली और हिंदी भाषा दोनों ही देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं।

By Jagran News Edited By: Anurag Mishra Updated: Mon, 21 Oct 2024 09:07 PM (IST)
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दोनों देशों के बीच "रोटी बेटी" का रिश्ता रहा है

 भारत और नेपाल के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक संबंध सदियों पुराने हैं। राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि दोनों देशों के बीच "रोटी बेटी" का रिश्ता रहा है और इन संबंधों को मजबूत करने के लिए कूटनीतिक और व्यापारिक वार्ता चलती रही हैं लेकिन वर्तमान के संदर्भ में अगर इन रिश्तों को देखा या समझा जाये तो भारत-नेपाल संबंधों में कुछ कमी आई है, जिसके कारण चीन की नीतियां नेपाल में उसके बढ़ते प्रभाव और भारतीय मुद्रा के उपयोग पर चल रहे विवाद हैं जिससे कोई झुठला नहीं सकता।

अभिषेक कहते हैं की यह मुद्दा आज का नहीं है नेपाल अधिराज्य की स्थापना करने वाले राजा पृथ्वी नारायण शाह ने भी कहा था कि नेपाल इन दो चट्टानों के बीच शकरकंद की तरह है जो अपने आप में इस बात की सनद है कि किस तरह नेपाल एशिया महाद्वीप के दो ताकतवर देशों के बीच रिश्ते स्थापित करने में एक अहम भूमिका निभाता है।

भारत और नेपाल के बीच ऐतिहासिक सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध काफी पुराना हैं जिसके कुछ महत्वपूर्ण कारण है जिनमें सबसे पहले आता है हिन्दू धर्म। अगर 2021 की जनगणना रिपोर्ट की मानें तो नेपाल में 81.19 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू है, जिसके चलते दोनों ही देशों में सभ्यता और संस्कृति में बहुत अधिक समानता है। दूसरा नेपाली और हिंदी भाषा दोनों ही देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं। तीसरा नेपाल के मधेश प्रदेश वहीं दूसरी ओर भारत की उत्तर प्रदेश व् बिहार के निवासियों में भाषाई और सांस्कृतिक समानता पाई जाती है।

दृष्टिकोण में नेपाल की मौजूदा सरकार का झुकाव चीन की तरफ ज़्यादा होने से न केवल यह सभी नीतियों बल्कि द्विपक्षीय रिश्तों पर भी दुष्प्रभाव डाल रहा है। वर्तमान खड्ग प्रसाद शर्मा ओली के नेतृत्व में बनी गठबंधन सरकार कम्युनिस्ट विचारधारा की ध्वजवाहक बनने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती है जिसके चलते उसे चीन से आर्थिक सहायता मिल रही है। चीन ने 2024 तक आते आते नेपाल पर आर्थिक और भू-राजनीतिक प्रभाव बढ़ा दिया है। नेपाल में चीन ने कई इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना शुरू की हैं। आने वाले समय में भी नेपाल का झुकाव चीन की तरफ रहा तो वह समय दूर नहीं जब नेपाल भी चीन की डेब्ट-ट्रैप कूटनीति का शिकार हो जाएगा जिसका असर पाकिस्तान और श्रीलंका में साफ देखा जा सकता है और यदि ओली सरकार अपना कम्युनिस्ट एजेंडा नहीं त्यागती है तो उसे अपने सबसे बड़े आर्थिक सांस्कृतिक और कूटनीतिक सहयोगी भारत के विरोध के लिए तैयार रहना होगा जो कि नेपाल के लिए कोई सुखद अनुभव तो कत्तई नहीं होगा।