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खतरे में है ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ, वैज्ञानिकों ने की बचाने की अपील

समुद्र में बढ़ते तापमान के कारण मूंगे की चट्टानों को भारी खतरा है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि ग्लोबल वॉर्मिंग का महासागरों पर एक साथ बहुत भारी असर पड़ सकता है।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Updated: Wed, 17 Jan 2018 12:03 PM (IST)
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खतरे में है ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ, वैज्ञानिकों ने की बचाने की अपील

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। ऑस्ट्रेलिया ने उसके समुद्री क्षेत्र में स्थित यूनेस्को द्वारा संरक्षित क्षेत्र ग्रेट बैरियर रीफ को जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचाने के लिए पहल की है। उसने 16 लाख अमेरिकी डॉलर का फंड आवंटित किया है। इन मूंगा या प्रवाल की चट्टानों को बचाने के लिए विश्व स्तर पर वैज्ञानिकों और उद्यमियों से कारगर उपाय मांगे गए हैं। सुझाए गए उपाय पर संबंधित व्यक्ति इस फंड के तहत वहां अपना शोध कर सकेगा। ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड तट पर ग्रेट बैरियर रीफ 2,300 किलोमीटर में फैली है।

कोरल-सी में मौजूद ये दुनिया का सबसे बड़ा कोरल रीफ सिस्टम है, जो खुद में 2,900 चट्टानों और 940 आइलैंड को समेटे हुए है। ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क आकार में 345,000 स्क्वेयर किलोमीटर है, यानी तस्मानिया से आकार में पांच गुना बड़ा। रीफ के एक बड़े हिस्से को ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क के जरिए संरक्षित किया गया है।

मांगे सुझाव

सरकार ने मूंगे या प्रवाल की चट्टानों को खतरों से बचाने और उनकी वृद्धि दर को बढ़ाने के लिए उपाय मांगे हैं। इस योजना में दुनियाभर से एक से अधिक प्रस्ताव मंजूर किए जा सकते हैं।

क्या है पेशकश

चुने गए प्रस्ताव के शुरुआती चरण के लिए संबंधित व्यक्ति को 1.98 लाख डॉलर दिएजाएंगे। इससे वह अपने सुझाए उपाय की वैधानिकता परखने के लिए उस क्षेत्र में मौजूद तकनीकी और व्यावसायिक संभावनाओं पर छह महीने तक शोध करेगा। बाद में चयनित बेहतर उपायों के आधार पर शोध को आगे बढ़ाने और उसे विकसित करने के लिए 7.95 लाख रुपये दिए जाएंगे। इसकी अवधि एक साल होगी। किसी का उपाय या तरीका सफल होता है तो उसे संपत्ति और संसाधन मुहैया कराए जाएंगे। संबंधित व्यक्ति वहां व्यावसायिक तौर पर अपने उपाय को इस्तेमाल कर सकेगा।

खास है मूंगे की चट्टान

समुद्री पर्यावरण में मूंगे की चट्टानों की हिस्सेदारी एक फीसद से भी कम है। 25 फीसद समुद्री जीवन इसी में या इनके जरिये ही फलता-फूलता है। ये उनके भोजन का स्रोत हैं।

जीवों का घर

ये रीफ मछलियों की 1,500 प्रजातियों, 411 तरह के सख्त मूंगे और 134 तरह की प्रजाति की शार्क और रेज (खास तरह की मछली) का घर है। दुनिया का एक-तिहाई मुलायम मूंगा भी यहीं पर मौजूद है। ये दुनिया में समुद्री कछुए की सात ऐसी प्रजातियों और 30 तरह के समुद्री स्तनधारी जीवों का भी घर है, जो विलुप्त होने के कगार पर हैं। इसके साथ ही यहां 630 प्रजाति की शूलचर्मी जैसे स्टारफिश और समुद्री अर्चिन पाए जाते हैं। चिड़ियों की 215 प्रजातियां, हजारों किस्म के स्पंज, कीड़े और क्रसटेशियन के साथ ही यहां सी-बर्ड भी पाए जाते हैं।

जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक खतरा

सबसे बड़ी मूंगे की चट्टान यानी ग्रेट बैरियर रीफ क्वींसलैंड के समुद्री क्षेत्र में स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल 23 सौ किमी है। जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री जल औसत से अधिक गर्म होने से इन्हें नुकसान हो रहा है। ग्लोबल वार्मिंग जनित कोरल ब्लीचिंग से प्रवालों से शैवाल अलग हो रहे हैं। शैवाल ही प्रवालों को 90 फीसद ऊर्जा मुहैया कराते हैं। इससे इनके नष्ट होने के साथ ही कई समुद्री जीवों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है। ऑस्ट्रेलिया स्थित एआरसी सेंटर ऑफ एक्सीलेन्स फॉर कोरल रीफ स्टडीज के निदेशक टेरी हजेस ने बताया कि 1980 के दशक में जहां मूंगे का रंग उड़ने की घटना 25 से 30 साल की अवधि में एक बार होती थी वहीं अब बीते तीन चार दशकों में इसमें पांच गुना वृद्धि देखी गई है। साल 2010 के बाद से तो औसतन हर छह साल में ऐसा एक बार हो रहा है। उन्होंने बताया कि इस बदलाव का मुख्य कारण तापमान में लगातार हो रही वृद्धि है।

भारत में कोरल रीफ्स

ऐसा नहीं है कि मूंगे की दीवार सिर्फ ऑस्ट्रेलिया में ही पाई जाती है। भारत में भी कई जगहों पर ये दीवार देखने को मिलती है। तो आइए जानते हैं कि भारत में किन-किन जगहों पर कोरल रीफ मिलती है। कोरल रीफ का नाम आते ही भारत में लक्षद्वीप का नाम सबसे पहले आता है। इसके अलावा अंडमान निकोबार, कच्छ की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी, नेत्राणी और मालवा ऐसी जगहें हैं जहां पर हमको कोरल रीफ देखने को मिलती हैं। 

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