अपने से नफरत करने वालों को कॉफी पर बुलाती हैं ओजलेम, आप भी जानें ऐसा क्यों
डेनमार्क में एक अभियान की हर तरफ चर्चा हो रही है। इस अभियान के तहत एक महिला सांसद अपने से नफरत करने वालों को कॉफी पर बुलाकर उससे इसकी वजह जान रही है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 27 Nov 2018 06:07 PM (IST)
नई दिल्ली जागरण स्पेशल। हम लोग जिसे पसंद नहीं करते हैं उसको चाय पिलाना तो दूर उसकी शक्ल तक देखना पसंद नहीं करते हैं। लेकिन यदि आपको किसी ऐसे शख्स के बारे में पता चले जो अपने से नफरत करने वालों को कॉफी पीने बुलाता हो तो आपका पर कुछ अजीब भाव बनने स्वाभाविक हैं। लेकिन हम ऐसा केवल मजे लेने के लिए नहीं कह रहे हैं बल्कि यह एक हकीकत है। यह हकीकत डेनमार्क में पिछले कुछ माह से एक मुहिम में बदल चुकी है। वहां पर ये मुहिम चलाने वाली कोई और नहीं बल्कि डेनमार्क की पहली मुस्लिम सांसद हैं, जिनका नाम ओजलेम सारा है। उनके यहां पर जिक्र करने की वजह डेनमार्क में चर्चा में बन रहा कॉफी विद हैटर्स है। इन दिनों यह अभियान काफी चर्चा में है।
नफरत की कहानी
तुर्की में जन्मी ओजलेम के पिता ने आर्थिक तंगी की वजह से अपना वतन छोड़कर जर्मनी में शरण ली थी। ओजलेम का जीवन काफी संघर्ष में बीता। जर्मनी के बाद उनके पिता डेनमार्क आकर बस गए। हर जगह उनका और उनके पिता का जिंदगी को लेकर संघर्ष भी जारी रहा। डेनमार्क में रहकर उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। लेकिन हर वक्त उनको यह अहसास कराया जाता था कि वह उस देश की नहीं हैं और बाहर से आई हैं। उनकी नफरत की कहानी यहीं पर खत्म नहीं हुई।
तुर्की में जन्मी ओजलेम के पिता ने आर्थिक तंगी की वजह से अपना वतन छोड़कर जर्मनी में शरण ली थी। ओजलेम का जीवन काफी संघर्ष में बीता। जर्मनी के बाद उनके पिता डेनमार्क आकर बस गए। हर जगह उनका और उनके पिता का जिंदगी को लेकर संघर्ष भी जारी रहा। डेनमार्क में रहकर उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। लेकिन हर वक्त उनको यह अहसास कराया जाता था कि वह उस देश की नहीं हैं और बाहर से आई हैं। उनकी नफरत की कहानी यहीं पर खत्म नहीं हुई।
बनीं पहली महिला मुस्लिम सांसद
बहरहाल, तमाम मुश्किलों के बावजूद उन्होंने नर्सिंग में डिग्री हासिल की। इस दौरान वह सामाजिक मुद्दों को लेकर अपनी आवाज उठाती रहीं। नस्ली भेदभाव पर उन्होंने लोगों को जागरूक करने का काम किया। यहां से ही उनकी राजनीति की भी शुरुआत हुई। सोशलिस्ट पीपुल्स पार्टी से जुड़ने के बाद वर्ष 2004 में उन्हें पार्टी की सेंट्रल कमेटी के लिए चुना गया। इसके बाद उन्होंने पार्टी प्रवक्ता के पद की भी जिम्मेदारी निभाई। वर्ष 2007 में वह डेनमार्क की पहली मुस्लिम महिला सांसद बनीं। लेकिन यहां पर भी उनकी मुश्किलें खत्म नहीं हुईं। जब मिलने लगी धमकियां
जैसे ही उनके सांसद बनने की खबर देश में फैली, लोग नफरत भरे संदेश भेजने लगे। देश छोड़ने की धमकी दी गई। उनका सांसद बनना कुछ लोगों को अच्छा नहीं लगा। यह सब यहीं पर नहीं रुका। इसके बाद उन्हें धमकियां मिलनी शुरु हो गईं। सोशल मीडिया पर उनका न सिर्फ मजाक उड़ाया गया बल्कि उनके लिए लोगों ने गंदे-गंदे कमेंट्स तक किए। पहले पहले कार्यकाल में उन्हें लगातार इस तरह के दौर का सामना करना पड़ा। कई बार ऐसा वक्त भी आया जब अपने ऊपर आए संदेशों को पढ़कर वह रो भी पड़ती।
बहरहाल, तमाम मुश्किलों के बावजूद उन्होंने नर्सिंग में डिग्री हासिल की। इस दौरान वह सामाजिक मुद्दों को लेकर अपनी आवाज उठाती रहीं। नस्ली भेदभाव पर उन्होंने लोगों को जागरूक करने का काम किया। यहां से ही उनकी राजनीति की भी शुरुआत हुई। सोशलिस्ट पीपुल्स पार्टी से जुड़ने के बाद वर्ष 2004 में उन्हें पार्टी की सेंट्रल कमेटी के लिए चुना गया। इसके बाद उन्होंने पार्टी प्रवक्ता के पद की भी जिम्मेदारी निभाई। वर्ष 2007 में वह डेनमार्क की पहली मुस्लिम महिला सांसद बनीं। लेकिन यहां पर भी उनकी मुश्किलें खत्म नहीं हुईं। जब मिलने लगी धमकियां
जैसे ही उनके सांसद बनने की खबर देश में फैली, लोग नफरत भरे संदेश भेजने लगे। देश छोड़ने की धमकी दी गई। उनका सांसद बनना कुछ लोगों को अच्छा नहीं लगा। यह सब यहीं पर नहीं रुका। इसके बाद उन्हें धमकियां मिलनी शुरु हो गईं। सोशल मीडिया पर उनका न सिर्फ मजाक उड़ाया गया बल्कि उनके लिए लोगों ने गंदे-गंदे कमेंट्स तक किए। पहले पहले कार्यकाल में उन्हें लगातार इस तरह के दौर का सामना करना पड़ा। कई बार ऐसा वक्त भी आया जब अपने ऊपर आए संदेशों को पढ़कर वह रो भी पड़ती।
ऐसे बीता बचपन
ओजलेम का जन्म तुर्की में हुआ। मां जहां तीसरी क्लास तक पढ़ी थीं वहीं पापा कभी स्कूल गए ही नहीं थे। घर की आर्थिक हालत बेहद खराब थी इसलिए रोजगार की तलाश में उनका परिवार जर्मनी आ गया। यहां पर कुछ समय रहने के बाद उनके पिता को फिनलैंड में रोजगार की जानकारी मिली। जिसके बाद वह अपने परिवार समेत फिनलैंड चले गए। यहां पर तुर्की दूतावास में उनकी मां ने नौकरानी के तौर पर काम किया। घर चलाने के लिए वह दूसरे घरों में भी झाड़ू-पोंछा करती। इसी दूतावास के पीछे एक कच्चे मकान में उनका आशियाना था। यहां पर हर किसी को एक अकेलापन लगता था। कुछ समय के बाद उनके पिता ने फिनलैंड को भी छोड़ दिया और डेनमार्क में अपना भविष्य तलाशा।पिता चाहते थे बेहतर शिक्षा दिलाना
ओजलेम के पिता खुद भले ही नहीं पढ़े लिखे थे लेकिन वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के पक्षधर जरूर थे। ओजलेम उस वक्त काफी छोटी थी जब उनके परिवार ने कोपेनहेगन शहर के वेस्टर्बो इलाके में रहना शुरू किया था। वह बार-बार एक मुल्क को छोड़कर दूसरे देश में बसने का न तो कारण ही जानती थी और न ही इसके पीछे की बातों को समझ पाती थीं। यहां पर उनकी प्रारंभिक शिक्षा शुरू हुई। लेकिन स्कूल में भी उन्हें वही सब सहना पड़ा जो दूसरी जगहों पर सहा था। आत्मकथा में पूरी कहानी
अपने साथ हुए बर्ताव को लेकर वर्ष 2009 में उन्होंने अपनी आत्मकथा भी लिखी। इसमें हर उस वाकये का जिक्र है जो उनके साथ बीता था। ओजलेम उन लोगों में से हैं जो मुश्किल वक्त में पीछे हटने से ज्यादा आगे बढ़ने में विश्वास रखते हैं। यही वजह थी कि अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार पर वह चुप नहीं बैठी। उन्होंने उन लोगों से मिलना शुरू किया जो लोग उनसे नफरत करते थे। इतना ही नहीं उन्होंने ऐसे लोगों को कॉफी पर बुलाना शुरू किया। इस दौरान वह उनसे बात करती और यह जानने की कोशिश करती कि आखिर किस वजह से उन्हें यह सब कुछ झेलना पड़ा है। धीरे-धीरे उनकी यह आदत एक अभियान में बदल गई जिसको बाद में कॉफी विद हैटर्स के नाम से जाना गया। इसके तहत वह सैकड़ों लोगों से मिलीं। व्यवहार में बदलाव
इस अभियान का असर ये हुआ कि जो लोग उनसे नफरत करते थे उनके व्यवहार में बदलाव आया। हालांकि कुछ मुलाकातों में अनुभव बहुत खराब रहा। इस मुलाकात के दौरान भी उन्हें कुछ लोगों ने कहा कि वह उन्हें पसंद नहीं करते हैं और उन्हें तुर्की से वापस चले जाना चाहिए। कुछ ने कहा कि हमारे देश में गंदगी मत मचाओ। कुछ ने यहां तक कहा कि वह यहां पर बच्चे पैदा न करें क्योंकि वह अपने देश में अश्वेत बच्चे नहीं चाहिए।आइये जानते हैं मुंबई हमले से लेकर कसाब की फांसी तक की पूरी दास्तां भविष्य के विमानों में नहीं होंगे इंजन और प्रोपेलर, बदल जाएगी पूरी थ्योरी कहीं झूठी साबित न हो जाए अमेरिका की 'Moon Mission' की कहानी, दांव पर लगी साख
ओजलेम का जन्म तुर्की में हुआ। मां जहां तीसरी क्लास तक पढ़ी थीं वहीं पापा कभी स्कूल गए ही नहीं थे। घर की आर्थिक हालत बेहद खराब थी इसलिए रोजगार की तलाश में उनका परिवार जर्मनी आ गया। यहां पर कुछ समय रहने के बाद उनके पिता को फिनलैंड में रोजगार की जानकारी मिली। जिसके बाद वह अपने परिवार समेत फिनलैंड चले गए। यहां पर तुर्की दूतावास में उनकी मां ने नौकरानी के तौर पर काम किया। घर चलाने के लिए वह दूसरे घरों में भी झाड़ू-पोंछा करती। इसी दूतावास के पीछे एक कच्चे मकान में उनका आशियाना था। यहां पर हर किसी को एक अकेलापन लगता था। कुछ समय के बाद उनके पिता ने फिनलैंड को भी छोड़ दिया और डेनमार्क में अपना भविष्य तलाशा।पिता चाहते थे बेहतर शिक्षा दिलाना
ओजलेम के पिता खुद भले ही नहीं पढ़े लिखे थे लेकिन वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के पक्षधर जरूर थे। ओजलेम उस वक्त काफी छोटी थी जब उनके परिवार ने कोपेनहेगन शहर के वेस्टर्बो इलाके में रहना शुरू किया था। वह बार-बार एक मुल्क को छोड़कर दूसरे देश में बसने का न तो कारण ही जानती थी और न ही इसके पीछे की बातों को समझ पाती थीं। यहां पर उनकी प्रारंभिक शिक्षा शुरू हुई। लेकिन स्कूल में भी उन्हें वही सब सहना पड़ा जो दूसरी जगहों पर सहा था। आत्मकथा में पूरी कहानी
अपने साथ हुए बर्ताव को लेकर वर्ष 2009 में उन्होंने अपनी आत्मकथा भी लिखी। इसमें हर उस वाकये का जिक्र है जो उनके साथ बीता था। ओजलेम उन लोगों में से हैं जो मुश्किल वक्त में पीछे हटने से ज्यादा आगे बढ़ने में विश्वास रखते हैं। यही वजह थी कि अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार पर वह चुप नहीं बैठी। उन्होंने उन लोगों से मिलना शुरू किया जो लोग उनसे नफरत करते थे। इतना ही नहीं उन्होंने ऐसे लोगों को कॉफी पर बुलाना शुरू किया। इस दौरान वह उनसे बात करती और यह जानने की कोशिश करती कि आखिर किस वजह से उन्हें यह सब कुछ झेलना पड़ा है। धीरे-धीरे उनकी यह आदत एक अभियान में बदल गई जिसको बाद में कॉफी विद हैटर्स के नाम से जाना गया। इसके तहत वह सैकड़ों लोगों से मिलीं। व्यवहार में बदलाव
इस अभियान का असर ये हुआ कि जो लोग उनसे नफरत करते थे उनके व्यवहार में बदलाव आया। हालांकि कुछ मुलाकातों में अनुभव बहुत खराब रहा। इस मुलाकात के दौरान भी उन्हें कुछ लोगों ने कहा कि वह उन्हें पसंद नहीं करते हैं और उन्हें तुर्की से वापस चले जाना चाहिए। कुछ ने कहा कि हमारे देश में गंदगी मत मचाओ। कुछ ने यहां तक कहा कि वह यहां पर बच्चे पैदा न करें क्योंकि वह अपने देश में अश्वेत बच्चे नहीं चाहिए।आइये जानते हैं मुंबई हमले से लेकर कसाब की फांसी तक की पूरी दास्तां भविष्य के विमानों में नहीं होंगे इंजन और प्रोपेलर, बदल जाएगी पूरी थ्योरी कहीं झूठी साबित न हो जाए अमेरिका की 'Moon Mission' की कहानी, दांव पर लगी साख