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NATO vs Russia: यूक्रेन जंग में रूसी सेना को जवाब देने के लिए आखिर क्‍या है नाटो की सैन्‍य तैयारी

NATO vs Russia नाटो के सदस्‍य देशों की सुरक्षा के नाम पर संगठन के सैनिकों ने रूस की पूरी घेराबंदी कर रखी है। रूस को सबसे बड़ी चिंता और डर यही है। ऐसे में रूस भी नाटो से सीधे पंगा नहीं लेना चाहेगा।

By Ramesh MishraEdited By: Updated: Sun, 16 Oct 2022 08:12 PM (IST)
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यूक्रेन जंग में रूसी सेना को जवाब देने के लिए आखिर क्‍या है NATO की सैन्‍य तैयारी। एजेंसी।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। NATO vs Russia: यूक्रेन जंग में रूसी सेना के आक्रामक तेवर को देखते हुए नाटो ने भी जवाबी कार्रवाई के लिए कमर कस ल‍िया है। खासकर क्रीमिया पु‍ल के ध्‍वस्‍त होने के बाद रूसी सेना ने जिस तरह से यूक्रेनी शहरों पर मिसाइलों से हमला किया है, उसके बाद से नाटो और रूस आमने-सामने आ गए हैं। इस जंग में बेलारूस की सक्रियता से यह तनाव और बढ़ गया है। बेलारूस ने रूसी सेना के लिए जिस तरह से मदद का ऐलान किया है उससे नाटो और आक्रामक हो गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर नाटो की सैन्‍य ताकत क्‍या है। यूक्रेन जंग को देखते हुए उसकी क्‍या है तैयारी।

नाटो बना यूक्रेन युद्ध की प्रमुख वजह

विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि वास्‍तव में यूक्रेन युद्ध के पीछे असली वजह नाटो (NATO) ही है। यूक्रेन का नाटो NATO संगठन में दिलचस्‍पी और अमेरिका के साथ उसकी निकटता के चलते रूसी राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन ने कीव के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया था।

यूक्रेन का अमेरिका के साथ सामरिक संबंध और नाटो की सदस्‍यता को लेकर रूस कई बार उसे धमका भी चुका था। रूस के विरोध के बावजूद यूक्रेन नाटो की सदस्‍यता को लेकर अड़ा रहा। इसका परिणाम एक महायुद्ध में तब्‍दील हो गया। यूक्रेन के बाद रूस ने फ‍िनलैंड और स्‍वीडन को भी सावधान किया था। इन दोनों मुल्‍कों ने भी नाटो में दिलचस्‍पी दिखाई थी।

NATO का इस युद्ध में आना तय

प्रो पंत ने कहा कि यूक्रेन जंग में यदि बेलारूस, रूसी सेना की मदद में आता है तो इससे सटे तीन नाटो देश प्रभावति होंगे। इस युद्ध की आंच इन नाटो मुल्‍कों तक आएगी और फ‍िर नाटो का इस युद्ध में आना तय माना जा रहा है। दरअसल, 1949 में शीत युद्ध के दौरान नार्थ एटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन यानी नाटो अस्तित्‍व में आया।

अमेरिका और उसके मित्र राष्‍ट्रों का यह एक सैन्य गठबंधन है। इसमें शुरुआत में 12 मुल्‍क ही शामिल थे। नाटो संगठन का मूल सिद्धांत यह है कि यदि किसी एक सदस्य देश पर हमला होता है तो बाकी देश उसकी मदद के लिए आगे आएंगे। इस संगठन का मूल उद्देश्‍य दूसरे विश्व युद्ध के बाद रूस के यूरोप में विस्तार को रोकना था।

खतरनाक हो सकता है नाटो और रूस के बीच रार

नाटो संगठन में अमेरिका के 13.50 लाख सैनिक तैनात हैं। नाटो संगठन में सर्वाधिक सैनिक अमेरिका के ही हैं। अगर नाटो यूक्रेन जंग में आगे आता है तो इसका सबसे ज्‍यादा प्रभाव अमेरिका पर ही पड़ेगा। ऐसे में यह जंग एक विश्‍व युद्ध में तब्‍दील हो सकता है। हालांक‍ि, नाटो के सदस्‍य देशों की सुरक्षा के नाम पर संगठन के सैनिकों ने रूस की पूरी घेराबंदी कर रखी है। रूस को सबसे बड़ी चिंता और डर यही है। ऐसे में रूस भी नाटो से सीधे पंगा नहीं लेना चाहेगा।

अमेरिका के अलावा इस संगठन में तुर्की के करीब साढ़े तीन लाख सैनिक मौजूद हैं। सैनिकों की संख्‍या के लिहाज से तीसरे स्‍थान पर फ्रांस है। फ्रांस के करीब दो लाख से ज्‍यादा सैनिक नाटो का हिस्‍सा हैं। इसके बाद चौथे नंबर पर जर्मनी है। इस मामले में पांचवे पर इटली और छठवें पर ब्रिटेन है। सेना की मौजूदगी के लिहाज से देखा जाए तो इस संगठन में अमेरिका का वर्चस्‍व है। 

NATO ने किया 8,500 सैनिकों को अलर्ट

प्रो पंत ने कहा कि यूक्रेन युद्ध के बाद NATO की पूर्वी सीमाओं को मजबूत करने के लिए संगठन ने पोलैंड और रोमानिया में तीन हजार से ज्‍यादा जवान तैनात किए हैं। दोनों देशों की सीमा बेलारूस से मिलती है। उन्‍होंने कहा कि इसके अलावा नाटो के 8,500 सैनिक हाई अलर्ट पर रहते हैं। यानी वह कभी भी मोर्चा संभालने की स्थिति में रहते हैं। नाटो सदस्‍य देश यूक्रेन को सैन्‍य समान भी मुहैया करा रहे हैं। करीब बीस करोड़ डालर से ज्‍यादा कीमत के हथियार भी नाटो ने यूक्रेन को भेजे हैं। इनमें जेवलिन एंटी टैंक मिसाइलें और स्टिंगर एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइलें हैं। इतना ही नहीं ब्रिटेन ने यूक्रेन को कम दूरी वाली दो हजार एंटी टैंक मिसाइलें दी हैं। ब्रिटेन ने पोलैंड में 350 सैनिक भेजे हैं।