सीरिया में अब जल्दी थम जाएगी बमों की आवाज और लोगों की चीख पुकार!
सीरिया को लेकर बीते एक सप्ताह में जिस तेजी से वैश्विक मंच पर राजनीतिक, कूटनीतिक और रणनीतिक हालात बदले हैं उनसे भविष्य में सकारात्मक परिणाम आने की उम्मीद जग गई है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। सीरिया को लेकर बीते एक सप्ताह में जिस तेजी से वैश्विक मंच पर राजनीतिक, कूटनीतिक और रणनीतिक हालात बदले हैं उनसे भविष्य में सकारात्मक परिणाम आने की उम्मीद जग गई है। बीते सप्ताह में अमेरिका ने सीरिया को लेकर बड़ा फैसला लिया और अपनी फौज को वहां से बाहर निकालने की घोषणा की। इसके अलावा दो दिन पहले ही दमिश्क और पूर्वी घोउटा को लेकर विद्रोही लड़ाकों और सरकार के बीच जो ऐतिहासिक समझौता हुआ उसके बाद यहां पर बंदूकों का शोर थम गया है। यहां के लिए दो खबरें ऐसी थीं जिसने यहां पर खुशहाली जगने की उम्मीद जगा दी है। लड़ाकों और सरकार के बीच हुए फैसले के बाद विद्रोहियों ने पूर्वी घोउटा से जाना भी शुरू कर दिया है। करीब 40 बसों में भरकर विद्रोही लड़ाके यहां से बाहर जा रहे हैं।
तुर्की, रूस और ईरान की अहम बैठक
इस बीच सीरिया को लेकर तीसरी बड़ी खबर यह सामने आई है कि तुर्की, ईरान और रूस के बीच इस सप्ताह एक अहम बैठक करने वाले हैं जिसमें सीरिया के भविष्य को लेकर चर्चा होनी है। यह बैठक इस लिहाज से भी बेहद खास है क्योंकि इसमें सीरिया में शांति स्थापना को लेकर बात होनी है। दूसरा यह तीनों देश ऐसे हैं जिन्होंने सीरिया में मोर्चा खोला हुआ है। यदि इस बैठक के दौरान तुर्की और ईरान युद्ध विराम और वहां से बाहर निकलने पर राजी हो जाते हैं तो यह सीरिया के पक्ष में बड़ा फैसला होगा। आपको बता दें कि इस बैठक में भाग लेने वाला तीसरा देश रूस, सीरियाई सरकार का बड़ा समर्थक रहा है और पिछले करीब 45 वर्षों से सीरिया में वहां की सरकार की मंजूरी के साथ मौजूद है।
सीरिया के लिए अच्छी और बड़ी खबरें
सीरिया को लेकर सामने आई इन तीनों खबरों पर दैनिक जागरण से बात करते हुए सीरिया के वरिष्ठ पत्रकार वईल अवाद ने माना कि यह तीनों खबरें सीरिया के लिए बेहद सकारात्मक हैं, जिनका परिणाम भी जल्द ही सामने दिखाई देगा। उनके मुताबिक ट्रंप ने अमेरिकी फौज को सीरिया से बाहर निकालने का जो फैसला लिया है उसके लिए वह बधाई के पात्र हैं। इससे यकीनन सीरिया में शांति होने की उम्मीद जगी है। दसरा विद्रोहियों के साथ हुआ फैसला भी शांति की राह में काफी बड़ा समझौता है। इसका असर भी दमिश्क और पूर्वी घोउटा में दिखाई देने लगा है। विद्रोहियों के जाने के साथ-साथ यहां बंदूकों का शोर थम रहा है। जबकि पहले यहां पर हर रोज एक रॉकेट लॉन्चर गिरता था और गोलियों की तो कोई गिनती ही नहीं थी। हर रोज यहां पर लोग मारे जाते थे। लेकिन अब शांति का माहौल है और स्थानीय लोग इस फैसले से बेहद खुश हैं।
ट्रंप का बड़ा फैसला
यह पूछे जाने पर कि अमेरिका की पूर्व सरकारों ने ट्रंप की तरह बोल्ड डिसीजन क्यों नहीं लिया तो अवाद का कहना था कि ट्रंप से पहले की सरकारें बार-बार सीरिया में सत्ता परिवर्तन की बात कहती थीं। उन्होंने अमेरिका की पूर्व की सरकारों पर सीधा आरोप लगाते हुए यहां तक कहा कि उन्होंने कतर, सऊदी अरब और तुर्की को समर्थन दिया और सीरिया में अशांति फैलाई। आतंकियों को फंडिंग से लेकर उन्हें प्रशिक्षण देने का काम अमेरिकी पूर्व सरकारों ने किया था। इतना ही नहीं सीरिया उन देशों की लिस्ट में शामिल हो गया था जो दुनिया में सबसे खतरनाक जगह हैं।
अमेरिका का झूठ
उनका यह भी कहना था कि अमेरिका पूर्व में कहता रहा था कि सीरिया में लड़ने वाला अलकायदा है, लेकिन इतने वर्षों में उन्होंने एक इंच भी जगह खाली नहीं की थी। लेकिन रूस के आने के बाद उन जगहों को पूरी तरह से आतंकियों से खाली करवा लिया गया। वह मानते हैं कि पूर्व की अमेरिकी सरकारों के लिए आतंकवाद सीरिया में सत्ता परिर्वतन का एक बड़ा जरिया था। मौजूदा समय में भी सीरिया में अमेरिका के करीब बीस मिलिट्री बेस हैं जो पूरी तरह से गैर कानूनी हैं, सीरिया की सरकार ने कभी भी अपनी परेशानी को हल करने के लिए अमेरिका या उनकी सेना को यहां नहीं बुलाया था। उनके मुताबिक सीरिया की सरकार बार-बार अमेरिका को देश छोड़ने के लिए कहती आई है। सरकार ने यहां तक भी कहा है कि यदि वह आसानी से नहीं जाएंगे तो उन्हें फिर भगाया जाएगा। सीरिया की सरकार बार-बार अमेरिका पर अंतरराष्ट्रीय नियमों की अवहेलना करने का आरोप लगाती आई है।
क्या है अमेरिका की रणनीति
उनका कहना था कि ट्रंप ने अपने फैसले को हकीकत में बदलने की क्या रणनीति बनाई है यह देखना दिलचस्प होगा। उनके मुताबिक अभी दो से तीन महीने में कुछ चीजें सामने आ जाएंगी, जो उनकी रणनीति का खुलासा करने में सहायक साबित होंगी। हम आपको बता दें कि पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक रैली में कहा था कि सीरिया में अमेरिकी फौज को रखने से उन्हें कोई फायदा नहीं हो रहा है, लिहाजा अब सीरिया की परेशानी को खुद वहां की सरकार दूर करेगी और जल्द ही अमेरिकी फौज को वापस बुला लिया जाएगा।
क्या सीरिया से बाहर जाएंगी रूसी फौज
सीरिया को लेकर तीन देशों की आगामी बैठक के मद्देनजर एक बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या अमेरिका की तर्ज पर क्या रूस भी अपनी सेनाओं को सीरिया से हटा लेगा। इससे वईल अवाद साफतौर पर इंकार करते हैं। उनका कहना है कि सीरिया में रूसी फौज का इतिहास काफी पुराना है। सीरियाई सरकार ने हालात काबू करने के लिए रूस की फौज को अपने यहां बुलाया था। वह अमेरिकी फौज की तरह सीरिया में गैरकानूनी रूप से नहीं हैं। उन्होंने यहां पर शांति लाने की कोशिश की है और सीरियाई सरकार का पूरा साथ दिया है।
आतंकियों का सरेंडर
सीरिया में शांति को लेकर जो दोबारा विचार किया गया उसकी बदौलत वहां पर आम लोग बाहर आए और काफी संख्या में आतंकियों और विद्रोहियों ने आत्मसमर्पण किया है। हालांकि उन्होंने यह भी माना है कि शांति प्रक्रिया में शामिल होने के लिए फिलहाल सऊदी अरब ने मना कर दिया है, लेकिन उनके साथ भी इसको लेकर वार्ता चल रही है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि वह भी इस पर राजी हो जाएगा। अवाद का यह भी कहना था कि दमिश्क में सरकार ने इस जंग से लोगों को निजात दिलाने के लिए बड़ी पहल की थी।
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