चीन के सामने नए नक्शे का मुद्दा उठाएंगे पीएम प्रचंड; कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को बताया भारतीय क्षेत्र
सीपीएन-माओवादी सेंटर के प्रवक्ता अग्नि सप्कोटा ने कहा कि चीन द्वारा इसी सप्ताह जारी नक्शे से संबंधित मुद्दा कूटनीतिक चैनल के माध्यम से उठाए जाने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री प्रचंड 15 सितंबर को पहले अमेरिका और उसके बाद चीन की यात्रा के लिए रवाना होंगे। चीन यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री एवं पार्टी चेयरमैन प्रचंड चीनी नेतृत्व के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे।
By AgencyEdited By: Amit SinghUpdated: Sat, 02 Sep 2023 02:08 AM (IST)
काठमांडू, पीटीआई: नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ''प्रचंड'' आगामी बीजिंग यात्रा के दौरान चीन द्वारा जारी नए नक्शे का मुद्दा उठाएंगे। चीन के नए नक्शे में कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को भारतीय क्षेत्र के रूप में दर्शाया गया है। सीपीएन-माओवादी सेंटर के एक वरिष्ठ नेता ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
सीपीएन-माओवादी सेंटर के प्रवक्ता अग्नि सप्कोटा ने कहा कि चीन द्वारा इसी सप्ताह जारी नक्शे से संबंधित मुद्दा कूटनीतिक चैनल के माध्यम से उठाए जाने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री प्रचंड 15 सितंबर को पहले अमेरिका और उसके बाद चीन की यात्रा के लिए रवाना होंगे। चीन यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री एवं पार्टी चेयरमैन प्रचंड चीनी नेतृत्व के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे।
नेपाल द्वारा 2020 में जारी नए राजनीतिक मानचित्र के बाद नई दिल्ली और काठमांडू के बीच कई बार संबंधों में तनाव आया। नेपाली नक्शे में तीन भारतीय क्षेत्रों लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को नेपाल का हिस्सा दर्शाया गया है। उसी वर्ष तत्कालीन राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने देश के नए राजनीतिक मानचित्र को लेकर संविधान संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर किए थे।
कई देश करते हैं चीन का विरोध
भारत के बाद अब अमेरिका, यूरोप, जापान, आस्ट्रेलिया समेत कई देश चीन की इस योजना का ठीक उसी आधार पर विरोध करते हैं जिस आधार पर भारत करता है। फिलीपींस के विदेश मंत्रालय ने गुरुवार (31 अगस्त, 2023) को एक विस्तृत बयान जारी कर कहा है कि चीन की तरफ से फिलीपींस के ऊपर चीन की अपनी संप्रभुता व कानून लागू करने की ताजी कोशिश का कोई कानूनी आधार नहीं है।फिलीपींस ने चीन को दिलाया UN का आदेश
फिलीपींस ने चीन को याद दिलाया है कि उसे इस बारे में संयुक्त राष्ट्र के संबंधित आदेश (वर्ष 2016) का पालन करना चाहिए और उत्तरदायित्व से काम लेना चाहिए। दरअसल, पहले ही समुद्री मामले में संयुक्त राष्ट्र के तहत हुए समझौते (यूएनक्लोज) के तहत पूरे हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की विस्तारवादी नीतियों को खारिज किया जा चुका है। चीन इस बारे में आदेश का पालन नहीं करता है।