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आने वाले पांच वर्षों में बढ़ेगा धरती का तापमान, लक्ष्‍य पाना होगा मुश्किल

विश्‍व का तापमान बढ़ने की वजह से क्‍लाइमेट चेंज को लेकर बनाए गए लक्ष्‍यों को पूरा करना मुश्किल है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Thu, 09 Jul 2020 10:30 PM (IST)
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आने वाले पांच वर्षों में बढ़ेगा धरती का तापमान, लक्ष्‍य पाना होगा मुश्किल

जिनेवा (यूएन)। आने वाले पांच वर्षों में वार्षिक वैश्विक तापमान, पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में कम से कम 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की आशंका है। इसकी वजह से वैश्विक जलवायु परिवर्तन के लक्ष्य खटाई में पड़ सकते हैं। ये आशंका विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के नए आंकड़ों के सामने आने के बाद जताई गई है। यूएन एजेंसी की जिनेवा में जारी रिपोर्ट - Global Annual to Decadal Climate Update में ये पूर्वानुमान लगाया गया है कि वर्ष 2024 तक किसी एक वर्ष के दौरान, तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 1850-1900 तक मानी जाने वाली पूर्व-औद्योगिक अवधि की तुलना में पृथ्वी का औसत तापमान पहले से ही 1 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ चुका है। इसके अलावा बीते पांच वर्ष भी काफी गर्म रहे हैं। विश्‍व मौसम विज्ञान संगठन के डायरेक्‍टर जनरल पैट्टेरी तालस के मुताबिक दुनिया के टॉप वैज्ञानिकों द्वारा किये गए इस अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते को पूरा करने की बड़ी चुनौती पूरी दुनिया के सामने है। इसके अलावा वैश्विक तापमान को इस सदी के पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस नीचे रखने के प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए इसको 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना भी बेहद चुनौतीपूर्ण है।

डब्‍ल्‍यूएमओ के इस नए अध्ययन में प्राकृतिक बदलाव और जलवायु पर मानव प्रभाव को ध्यान में रखा गया है। हालांकि कोरोनोवायरस महामारी के दौरान लॉकडाउन के कारण ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और वायु में हुए परिवर्तनों को इससे बाहर रखा गया है। मौसम संगठन की तरफ से कहा गया है कि महामारी के कारण औद्योगिक व आर्थिक गतिविधियों में हुई मंदी, निरंतर और समंवित जलवायु कार्रवाई का विकल्प नहीं है। पैट्टेरी तालस की मानें तो वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड बहुत लंबे समय तक रहती है। इसलिये इस वर्ष उत्सर्जन में हुई गिरावट के कारण वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता में कमी होने की उम्मीद नहीं की जा सकती है, जो वैश्विक तापमान में वृद्धि के लिये जिम्मेदार होती है।

उन्होंने कहा है कि क्‍योंकि कोविड-19 की वजह से एक गंभीर अंतरराष्‍ट्रीय राष्ट्रीय स्वास्थ्य और आर्थिक संकट पैदा हो गया है। जलवायु परिवर्तन से निपटने में विफलता - सदियों के लिए मानव कल्याण, पारिस्थितिकी तंत्र और अर्थव्यवस्थाओं के लिए ख़तरा बन सकती है। सरकारों को इस अवसर का उपयोग करते हुए जलवायु कार्रवाई को पुनर्बहाली कार्यक्रमों में शामिल करना चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित हो कि हम भविष्य में संकट से बेहतर तरीके से उबरें। ये अध्ययन, अन्तरराष्ट्रीय स्तर के जलवायु वैज्ञानिकों और दुनिया भर के अग्रणी जलवायु केन्द्रों के सर्वश्रेष्ठ कंप्यूटर मॉडल की मदद से किया गया है। मौसम संगठन के मुतबिक किसी एक स्रोत से प्राप्त नतीजों के मुकाबले दुनिया भर के कई पूर्वानुमानों को मिलाकर हासिल किये गये निष्कर्ष ज्‍यादा भरोसे के लायक होते हैं।