Bangladesh Unrest: बांग्लादेश की मुक्ति और अधूरा वादा… बड़ा सवाल- हसीना के देश छोड़ने बाद किस दिशा में जाएगा पड़ोसी देश
बांग्लादेश के जनक मुजीबुर रहमान ने ऐसे देश की कल्पना की थी जो धर्मनिरपेक्ष होगा। वह देश को इस दिशा में आगे बढ़ाते इससे पहले 1975 में उनकी हत्या कर दी गई। फिर उनकी बेटी शेख हसीना ने देश को आर्थिक रूप से आगे बढ़ाया। मगर कट्टपरंथियों और देश विरोधी ताकतों ने उन्हें देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया है। अब देखना है कि किस दिशा में जाएगा बांग्लादेश।
By Shashank Shekhar Bajpai Edited By: Shashank Shekhar Bajpai Updated: Wed, 14 Aug 2024 03:39 PM (IST)
शशांक शेखर बाजपेई। पड़ोसी देश बांग्लादेश के लिए 1971 के दशकों बाद भी लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिए चुनौतियां बनी हुई हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना हाल ही में इस्तीफा देने के बाद देश छोड़ने को मजबूर हो गईं। निर्वासित होकर वह फिलहाल भारत में शरण लिए हुए हैं। ऐसे में अब साल 1971 में अपनी मुक्ति के बाद से बांग्लादेश को खुद अपनी प्रगति का पुनर्मूल्यांकन करना होगा।
आर्थिक वृद्धि और विकास के बावजूद, बांग्लादेश बढ़ती नफरत भरी भाषा, भ्रष्टाचार और लोकतंत्र के लिए चुनौतियों से जूझ रहा है। दरअसल, भारत का विभाजन होने के बाद 1947 में पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान बने थे।
साल 1970 के चुनावों में शेख मुजीबुर रहमान की भारी जीत ने संयुक्त पाकिस्तान की उम्मीद जगाई। मगर, राजनीतिक तनाव और सैन्य हस्तक्षेप के कारण क्रूर दमन हुआ।
मुक्ति वाहिनी ने दिलाई आजादी
ऐसे समय में छात्रों, युवाओं और किसानों की गुरिल्ला सेना ने मिलकर मुक्ति वाहिनी बनाई। आजाद बांग्लादेश की लड़ाई में मुक्ति वाहिनी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और साल 1971 में बांग्लादेश का जन्म हुआ।इस युद्ध में भारत ने बांग्लादेश का साथ दिया था। तब देश के पहले नेता शेख मुजीबुर रहमान को युद्ध, अकाल और भ्रष्टाचार से तबाह हुए देश को फिर से अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
मुजीबुर रहमान की हत्या ने बदला भविष्य
इससे पहले कि चीजें पटरी पर आतीं, साल 1975 में मुजीबुर रहमान की हत्या कर दी गई। उस वक्त उनके परिवार के कई लोगों का भी कत्ल कर दिया गया। हालांकि, उस दौरान उनकी बेटी शेख हसीना विदेश में होने की वजह से जिंदा बच गई थी। मगर, इस घटना ने इतिहास को एक महत्वपूर्ण मोड़ दे दिया। इस घटना से धर्मनिरपेक्ष, सहिष्णु बांग्लादेश बनाने का मुजीबुर रहमान का सपना खतरे में पड़ गया। वो सपना आज तक परवान नहीं चढ़ सका है। यह भी पढ़ें- पड़ोस की चुनौतियां: पाकिस्तान में भुखमरी और बांग्लादेश में हिंसा की वजह से क्यों चिंता में है भारतघर में मचा था मौत का तांडव
- युद्ध से बर्बाद हो चुके बांग्लादेश को पटरी पर लाने में लगे थे बंग बंधु।
- साल 1975 आते-आते चीजें मुजीबुर के हाथ से बाहर जाने लगी थीं।
- देश में भ्रष्टाचार बढ़ने लगा और भाई-भतीजावाद के आरोप लगने लगे।
- इसे लेकर आम लोगों के साथ ही सेना में भी असंतोष बढ़ने लगा था।
- 15 अगस्त को सेना के जूनियर जवानों ने उनके घर पर धावा बोला।
- मुजीबुर ने गोलियों की आवाज सुनकर सेनाध्यक्ष को फोन किया।
- उन्होंने जनरल शफीउल्लाह से सैनिकों को वापस बुलाने को कहा।
- थोड़ी देर बार सेना के जवानों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।
- बेगम मुजीब और फिर उनके दूसरे बेटे जमाल की हत्या की गई।
- फिर दोनों बहुओं और 10 साल के छोटे बेटे को भी मार दिया गया।