Russia-Ukraine War: यूक्रेन को 130 मिलियन डॉलर की अतिरिक्त सहायता देगा दक्षिण कोरिया
रूस के आक्रमण की पहली वर्षगांठ के अवसर पर दक्षिण कोरिया ने यूक्रेन को मानवीय सहायता में 130 मिलियन डॉलर प्रदान करने की योजना बनाई है। योनहाप समाचार एजेंसी के मुताबिकमंत्रालय ने एक बयान के जरिए बताया कि यूक्रेन की संप्रभुता क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता का सम्मान किया जाना चाहिए।
By Nidhi AvinashEdited By: Nidhi AvinashUpdated: Sat, 25 Feb 2023 02:14 PM (IST)
सियोल, एजेंसी। रूस के आक्रमण की पहली वर्षगांठ के अवसर पर दक्षिण कोरिया ने यूक्रेन को मानवीय सहायता में 130 मिलियन डॉलर प्रदान करने की योजना बनाई है।
सियोल के विदेश मंत्रालय ने इसकी घोषणा की है। योनहाप समाचार एजेंसी के मुताबिक, 24 फरवरी को मंत्रालय ने एक बयान के जरिए बताया कि 'यूक्रेन की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता का सम्मान किया जाना चाहिए।'
वित्तीय सहायता की हुई घोषणा
मंत्रालय के अनुसार, इस लेटेस्ट पैकेज में वित्तीय सहायता, मानवीय सहायता, बुनियादी ढांचे के निर्माण में सहायता जैसे पावर ग्रिड की बहाली और आधिकारिक विकास सहायता (ODA) परियोजनाओं के माध्यम से पुनर्निर्माण के प्रयासों में सहायता देना शामिल होगा। बता दें कि वर्ष 2022 में, दक्षिण कोरिया ने यूक्रेन को मानवीय सहायता के रूप में कुल 100 मिलियन डॉलर की सहायता प्रदान की है।North Korea में खाद्य संकट, अधिकारियों ने कहा- 'भुखमरी से हो रही मौतें लेकिन अभी नहीं पड़ा अकाल'
नाटो ने की सैन्य समर्थन बढ़ाने की अपील
पिछले महीने नाटो के सेक्रेटरी जनरल जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने दक्षिण कोरिया से यूक्रेन के लिए सैन्य समर्थन बढ़ाने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि इस युद्ध में यूक्रेन को गोला-बारूद की तत्काल आवश्यकता है। स्टोलटेनबर्ग ने कहा कि वे दक्षिण कोरिया से यूक्रेन को सैन्य समर्थन के विशिष्ट मुद्दे पर कदम उठाने का आग्रह करते हैं।दक्षिण कोरिया ने भेजे है कई हथियार
रूस-यूक्रेन युद्ध के शुरू होने के बाद दक्षिण कोरिया ने नाटो सदस्य पोलैंड को सैकड़ों टैंक, विमान और अन्य हथियार देने वाले प्रमुख सौदों पर हस्ताक्षर किए हैं। लेकिन साउथ कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक-योल ने कहा है कि उनका कानून संघर्ष के दौरान देशों को हथियार मुहैया कराने के खिलाफ है। जिससे यूक्रेन को हथियार आपूर्ति करना मुश्किल है। इसपर, स्टोलटेनबर्ग ने कहा कि जर्मनी, स्वीडन और नॉर्वे जैसे देशों में भी इस तरह की नीतियां थी लेकिन, उन्हें बदल दिया गया।
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