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इस देश के राष्ट्रपति ने पूरी कैबिनेट को किया बर्खास्त, जानिए इसके पीछे की पूरी कहानी

केन्या में न्यू टैक्स वृद्धि के खिलाफ सरकार विरोधी प्रदर्शनों में अब तक 39 लोगों ने अपनी जान गवां दी। इस बीचकेन्याई राष्ट्रपति विलियम रुटो ने बड़ा एक्शन लेते हुए अपने पूरे मंत्रिमंडल को बर्खास्त कर दिया है। उप राष्ट्रपति रिगाथी गचागुआ और प्रधानमंत्री कैबिनेट सचिव मुसालिया मुदवादी ही अपने-अपने पदों पर बने हुए हैं।माना जा रहा है कि यह कदम उन्होंने जनता का विश्वास जीतने के लिए किया है।

By Agency Edited By: Babli Kumari Updated: Thu, 11 Jul 2024 10:21 PM (IST)
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केन्या के राष्ट्रपति रुटो ने नए करों के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के बाद मंत्रिमंडल को बर्खास्त कर दिया (फोटो/रॉयटर्स)
एएनआई, नैरोबी [केन्या]। केन्याई राष्ट्रपति विलियम रुटो ने सरकार विरोधी प्रदर्शनों की श्रृंखला के बाद अपने लगभग पूरे मंत्रिमंडल को बर्खास्त कर दिया है। न्यूज एजेंसी सीएनएन ने गुरुवार को इसकी जानकारी दी। रूटो ने पुष्टि की कि केवल उप राष्ट्रपति रिगाथी गचागुआ और प्रधानमंत्री कैबिनेट सचिव मुसालिया मुदवादी ही अपने-अपने पदों पर बने हुए हैं।

उन्होंने स्टेट हाउस नैरोबी से संवाददाताओं को बताया कि यह निर्णय उनके मंत्रिमंडल के 'चिंतन और समग्र मूल्यांकन' के बाद लिया गया है। सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा कि हमने जो प्रगति की है, उसके बावजूद मैं इस बात से पूरी तरह अवगत हूं कि केन्या के लोगों को मुझसे बहुत अधिक उम्मीदें हैं और उनका मानना ​​है कि यह प्रशासन हमारे देश के इतिहास में सबसे व्यापक परिवर्तन कर सकता है।"

देश में देखे गए सरकार विरोधी प्रदर्शन

मई में करों में वृद्धि और केन्या के भारी कर्ज को कम करने के उद्देश्य से एक विधेयक पेश किए जाने के बाद, देश में सरकार विरोधी प्रदर्शनों की लहर देखी गई। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया कि केन्या राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा दर्ज किए गए अनुसार, जून में पुलिस के साथ झड़पों में कम से कम 39 लोगों की मौत हो गई।

कई व्यक्तियों को लिया गया हिरासत में 

मानवाधिकार पर्यवेक्षकों और कई कार्यकर्ताओं (जिनमें से पांच ने अपने अनुभव बताए हैं) ने खुलासा किया है कि कार्यकर्ताओं, चिकित्सा कर्मियों और सोशल मीडिया प्रभावितों सहित कम से कम 32 व्यक्तियों को या तो अपहरण कर लिया गया या बिना किसी कारण के हिरासत में लिया गया। हाल ही में, एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने इन घटनाओं की निंदा करते हुए इन्हें 'अपहरण' बताया और पुलिस और राष्ट्रीय खुफिया सेवा (जिसकी देखरेख राष्ट्रपति करते हैं) को संवैधानिक उल्लंघनों का हवाला देते हुए ऐसी कार्रवाइयों को रोकने का आदेश दिया।

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