एशिया में लंबे ख्वाब संजोए चीन के हाथों से कहीं निकल न जाए हांगकांग
चीन के खिलाफ यहां पर प्रदर्शनों का सिलसिला काफी पुराना है। स्वायत्त क्षेत्र हांगकांग में फिर हजारों लोगों ने पूर्ण लोकतंत्र और मौलिक अधिकारों की मांग को लेकर चीन के खिलाफ प्रदर्शन किया।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Thu, 03 Jan 2019 07:23 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। चीन जहां पूरी दुनिया खासकर एशिया में अपने पांव पसारने में लगा हुआ है वहीं उसका अपना हांगकांग उसके पहलू से बाहर खिसक रहा है। आलम ये है कि हांगकांग उसके गले की फांस बन चुका है, जिसको न तो वो निगल सकता है और न ही उगल ही सकता है। करीब सौ वर्षों तक ब्रिटिश हुकूमत के झंडे तले सांस लेने हांगकांग के लोग भी खुद की चीनी नागरिक कहने से परहेज करते हैं। वह अपने को ब्रिटिश ज्यादा मानते हैं, चीनी कम। चीन की वर्तमान सरकार के लिए अब ये समस्या नासूर बन रही है। जहां तक चीन की कम्यूनिस्ट सरकार की बात है तो वह अपने खिलाफ होने वाले सभी तरह के प्रदर्शनों का पूरे दम के साथ दमन करती आई है, लेकिन यहां पर उसे इस काम में भी मुश्किल हो रही है।
प्रदर्शनों का लंबा इतिहास
चीन के खिलाफ यहां पर प्रदर्शनों का सिलसिला काफी पुराना है। स्वायत्त क्षेत्र हांगकांग में फिर हजारों लोगों ने पूर्ण लोकतंत्र और मौलिक अधिकारों की मांग को लेकर चीन के खिलाफ प्रदर्शन किया। कुछ प्रदर्शनकारियों ने चीन से पूरी तरह आजादी की मांग भी की। हांगकांग में पिछले साल मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में डालने, आजादी समर्थक राजनीतिक दल पर प्रतिबंध लगाने और ब्रिटिश पत्रकार विक्टर मैलेट को हांगकांग से निकालने जैसी घटनाएं हुईं। अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई देशों ने इन पर चिंता जताई। ये घटनाएं जाहिर करती हैं कि चीन के प्रभाव के कारण हांगकांग की स्वायत्तता और आजादी कमजोर हुई है। इस प्रदर्शन के आयोजक जिम्मी शेम ने कहा, ‘नए साल के दिन प्रदर्शन में करीब 5800 लोग इकट्ठा हुए। हमने लोकतांत्रिक सुधार और चीन के राजनीतिक दमन के खिलाफ लड़ने की अपील की।’ ब्रिटेन ने वर्ष 1997 में एक देश दो प्रणाली के तहत हांगकांग को चीन को सौंपा था।
चीन के खिलाफ यहां पर प्रदर्शनों का सिलसिला काफी पुराना है। स्वायत्त क्षेत्र हांगकांग में फिर हजारों लोगों ने पूर्ण लोकतंत्र और मौलिक अधिकारों की मांग को लेकर चीन के खिलाफ प्रदर्शन किया। कुछ प्रदर्शनकारियों ने चीन से पूरी तरह आजादी की मांग भी की। हांगकांग में पिछले साल मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में डालने, आजादी समर्थक राजनीतिक दल पर प्रतिबंध लगाने और ब्रिटिश पत्रकार विक्टर मैलेट को हांगकांग से निकालने जैसी घटनाएं हुईं। अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई देशों ने इन पर चिंता जताई। ये घटनाएं जाहिर करती हैं कि चीन के प्रभाव के कारण हांगकांग की स्वायत्तता और आजादी कमजोर हुई है। इस प्रदर्शन के आयोजक जिम्मी शेम ने कहा, ‘नए साल के दिन प्रदर्शन में करीब 5800 लोग इकट्ठा हुए। हमने लोकतांत्रिक सुधार और चीन के राजनीतिक दमन के खिलाफ लड़ने की अपील की।’ ब्रिटेन ने वर्ष 1997 में एक देश दो प्रणाली के तहत हांगकांग को चीन को सौंपा था।
कौन है मैलेट
जहां तक ब्रिटिश पत्रकार विक्टर मैलेट को हांगकांग से निकालने की बात है तो ब्रिटेन ने इस पर चीन की सरकार से स्पष्टीकरण भी मांगा है। वह फाइनेंशियल टाइम्स के एशिया समाचार संपादक थे। उनकी गलती सिर्फ इतनी ही थी कि उन्होंने आजादी समर्थक राजनीतिक दल के नेता एंडी चान के भाषण का आयोजन किया था, जिसके बाद चीन की सरकार ने उनसे आंखें तरेर ली थीं। चान ने अपने भाषण में वहां की सरकार की कलई खोलते हुए हांगकांग पर कब्जा और उसे बर्बाद करने की कोशिश करने को लेकर हमला बोला था। यहां का इतिहास
हांगकांग में हो रहे विरोध प्रदर्शनों और यहां की सियासत की समझने के लिए यहां के इतिहास को भी समझना बेहद जरूरी है। आपको बता दें कि हांगकांग एक वैश्विक महानगर और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय केंद्र होने के साथ-साथ एक उच्च विकसित पूंजीवादी अर्थव्यवस्था है। एक देश, दो नीति के अंतर्गत और बुनियादी कानून के अनुसार, इसे सभी क्षेत्रों में उच्च स्तर की स्वायत्तता हासिल है। केवल विदेशी मामलों और रक्षा को छोड़कर अन्य चीजें यहां की सरकार ही देखती है। हांगकांग को अपनी मुद्रा, कानून प्रणाली, राजनीतिक व्यवस्था है। सौ वर्षों तक चीन का औपनिवेश बने रहने के चलते यहां पर ब्रिटिश तौर तरीकों की झलक बखूबी दिखाई देती है। आपको बता दें कि एक व्यापारिक बंदरगाह के रूप में आबाद होने के बाद हांगकांग को 1842 में ब्रिटेन का उपनिवेश घोषित किया गया था। 1983 में इसे एक ब्रिटिश निर्भर क्षेत्र के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया गया। 1997 में इसको चीन को हस्तांतरित कर दिया गया। हांगकांग दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है। 19 दिसंबर, 1984 को चीन और ब्रिटेन के बीच हांगकांग ट्रांसफर एक्सचेंज (चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा) पर हस्ताक्षर किए गए।
जहां तक ब्रिटिश पत्रकार विक्टर मैलेट को हांगकांग से निकालने की बात है तो ब्रिटेन ने इस पर चीन की सरकार से स्पष्टीकरण भी मांगा है। वह फाइनेंशियल टाइम्स के एशिया समाचार संपादक थे। उनकी गलती सिर्फ इतनी ही थी कि उन्होंने आजादी समर्थक राजनीतिक दल के नेता एंडी चान के भाषण का आयोजन किया था, जिसके बाद चीन की सरकार ने उनसे आंखें तरेर ली थीं। चान ने अपने भाषण में वहां की सरकार की कलई खोलते हुए हांगकांग पर कब्जा और उसे बर्बाद करने की कोशिश करने को लेकर हमला बोला था। यहां का इतिहास
हांगकांग में हो रहे विरोध प्रदर्शनों और यहां की सियासत की समझने के लिए यहां के इतिहास को भी समझना बेहद जरूरी है। आपको बता दें कि हांगकांग एक वैश्विक महानगर और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय केंद्र होने के साथ-साथ एक उच्च विकसित पूंजीवादी अर्थव्यवस्था है। एक देश, दो नीति के अंतर्गत और बुनियादी कानून के अनुसार, इसे सभी क्षेत्रों में उच्च स्तर की स्वायत्तता हासिल है। केवल विदेशी मामलों और रक्षा को छोड़कर अन्य चीजें यहां की सरकार ही देखती है। हांगकांग को अपनी मुद्रा, कानून प्रणाली, राजनीतिक व्यवस्था है। सौ वर्षों तक चीन का औपनिवेश बने रहने के चलते यहां पर ब्रिटिश तौर तरीकों की झलक बखूबी दिखाई देती है। आपको बता दें कि एक व्यापारिक बंदरगाह के रूप में आबाद होने के बाद हांगकांग को 1842 में ब्रिटेन का उपनिवेश घोषित किया गया था। 1983 में इसे एक ब्रिटिश निर्भर क्षेत्र के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया गया। 1997 में इसको चीन को हस्तांतरित कर दिया गया। हांगकांग दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है। 19 दिसंबर, 1984 को चीन और ब्रिटेन के बीच हांगकांग ट्रांसफर एक्सचेंज (चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा) पर हस्ताक्षर किए गए।