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Russia Ukraine War: खार्किव में रूस पर भारी पड़ने लगी है यूक्रेन की सेना, एक माह में वापस लिया 3 हजार वर्ग किमी से अधिक का क्षेत्र

रूस की सेना खार्किव में पिछड़ती हुई दिखाई दे रही है। यहां पर यूक्रेनी सेना ने एक माह के दौरान करीब 3 हजार वर्ग किमी का इलाका रूस से दोबारा जीत लिया है। कुछ इलाकों से रूस की सेना के पीछे हटने की भी खबर है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 11 Sep 2022 04:24 PM (IST)
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यूक्रेन की सेना ने खोया हुआ इलाका खार्किव में लिया वापस
कीव (एजेंसी)। यूक्रेन को रूस के बीच छिड़ी जंग 7 माह में चल रही है। इस जंग की शुरुआत में यूक्रेन को जबरदस्‍त नुकसान उठाना पड़ा था, लेकिन अब यूक्रेन रूस पर भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। रूस की सेना को खार्किव में नुकसान होता दिखाई दे रहा है। यूक्रेन का कहना है कि इस महीने उसने करीब 3000 वर्ग किमी का अपना हारा हुआ इलाका रूस की सेना से वापस ले लिया है। कीव की तरफ से कहा है कि यूक्रेन की सेना न केवल खार्किव के उत्‍तर और दक्षिण में बल्कि पूर्व में भी बढ़त हासिल कर रही है। यूक्रेन के जनरल Valeriy Zaluzhny ने अपने बयान में बताया है कि अब उनकी सेना सीमा से केवल 50 किमी की दूरी पर है। कुछ खबरों में कहा गया है कि Izyum इलाके से रूस की सेना को वापस बुलाया गया है।

राष्‍ट्रपति जेलेंस्‍की का बयान 

इससे पहले यूक्रेन के राष्‍ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्‍की ने कहा था कि उनकी सेना ने रूस की सेना से करीब 2500 वर्ग किमी का इलाका दोबारा जीत लिया है। इन इलाकों से रूस की सेना भाग रही है। ब्‍लूमबर्ग की रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों ही सेनाओं की तरफ से अपनी-अपनी जीत के दावे किए जा रहे हैं। ये भी कहा जा रहा है कि उनकी सेना लगातार आगे बढ़ रही है। ब्‍लूंबर्ग ने यूक्रेन की तरफ से किए गए दावों की पुष्टि नहीं की है। बता दें कि यूक्रेन का खार्किव इलाका रणनीतिक दृष्टि से काफी अहम है।

रूस की सीमा से लगता है खार्किव

यूक्रेन का ये इलाका रूस की सीमा से लगता है। यहां तक रूस रेलवे लाइन, सड़क और हवाई जहाज के जरिए अपने सैनिकों को भेज रहा है। इस लिहाज से ये रूस के लिए लाजिस्टिक और ट्रांजिट हब बन चुका है। गौरतलब है कि खार्किव यूक्रेन का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। इसके अलावा रूस का इस शहर से एक करीब का नाता इसलिए भी है क्‍योंकि सोवियत संघ के जमाने में ये कुछ समय के लिए देश की राजधानी भी थी। इतना ही नहीं दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान ये सोवियत संघ और जर्मनी के बीच एक अहम कड़ी भी थी।

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