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Ukraine Crisis : यूक्रेनी सेना के डॉक्टर फ्रंट लाइन पर जान बचाने के लिए कर रहे संघर्ष

सैनिकों के खून की कमी को सीमित करने के लिए युद्ध के मैदान में कसकर बंधे हुए क्षतिग्रस्त अंगों को बचाना ओलेक्सी की प्राथमिकता है। उन्होंने कहा हम मुख्य रूप से रोगी को स्थिर करते हैं और घायल के अंग या अंग के हिस्से को बचाने की कोशिश करते है।

By AgencyEdited By: Ashisha Singh RajputUpdated: Mon, 12 Dec 2022 06:28 PM (IST)
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इस लड़ाई में यूक्रेनी सेना के तमाम सैनिक गंभीर रूप से घायल हुए।
कीव, रायटर। रूस-यूक्रेन युद्ध लंबे समय से जारी है। दिन-ब-दिन इस युद्ध का रूप और भी भीषण होता जा रहा है। इस लड़ाई में रूस यूक्रेन पर ताबड़तोड़ हमले कर रहा है। रूस और यूक्रेन के बीच में युद्ध को 10 महीने हो चुके हैं। अभी भी स्थिति विस्फोटक बनी हुई है और दोनों तरफ से आक्रमण का सिलसिला चल रहा है। इस लड़ाई में यूक्रेनी सेना के तमाम सैनिक गंभीर रूप से घायल हुए। वहीं ऐसे में पूर्वी यूक्रेन में लड़ाई के सबसे भारी दिनों में, फ्रंट लाइन के पास सेना के डॉक्टरों की टीम कम होने के करण जान बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

गंभीर रूप से घायल सैनिकों के इलाज की सुविधा

देश के डोनेट्स्क क्षेत्र के एक सैन्य अस्पताल में कोई भी दो दिन एक जैसे नहीं बीतते हैं, जहां रूसी सेना के साथ लगभग 10 महीनों के युद्ध में कुछ भयंकर युद्धों में घायल हुए सैनिकों का इलाज किया जाता है। 35 वर्षीय आर्मी डॉक्टर ओलेक्सी ने कहा, 'ऐसे दिन होते हैं जब कई सैनिक गंभीर रूप से घायल होते हैं। कभी-कभी दो, तीन, चार घंटे के लिए कोई डॉक्टर नहीं होता है।' उन्होंने कहा, 'कोई दिन दूसरे की तरह नहीं है। निश्चित रूप से मुश्किल दिन हैं, खासकर जब हमारे (सैनिक) हमला कर रहे हों। फिर काम सीधे पांच, छह, सात घंटे तक चलता है।'

क्षतिग्रस्त अंगों को बचाना डोक्टरों की पहली प्राथमिकता

सैनिकों के खून की कमी को सीमित करने के लिए युद्ध के मैदान में कसकर बंधे हुए क्षतिग्रस्त अंगों को बचाना ओलेक्सी की पहली प्राथमिकता है। उन्होंने कहा, 'हम मुख्य रूप से रोगी को स्थिर करते हैं। मुझे लगता है कि हमारे काम का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा घायल के अंग या अंग के हिस्से को बचाना है। ब्रिगेड मिलिट्री सर्विस के प्रमुख 36 वर्षीय ओलेक्सी नाजरीशिन के लिए, मुख्य लक्ष्य केवल लोगों की जान बचाना है। उन्होंने कहा, 'हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि लड़के मरें नहीं।'

वहीं एक 24 वर्षीय इंटर्न ने कहा, 'ईमानदारी से कहूं तो जब युद्ध में घायल बहुत छोटे लड़कों को लाया जाता है तो यह मानसिक रूप से बहुत कठिन होता है। जब आप अकेले होते हैं तो आप रो सकते हैं, लेकिन जब आप दरवाजे से गुजरते हैं तो आपको मुस्कुराना पड़ता है क्योंकि वे (घायल) आपको देख रहे हैं और कह रहे हैं 'मैं पहले से बेहतर कर रहा हूं।' इसके साथ ही उन्होंने सैनिकों के साहस और दृढ़ संकल्प की प्रशंसा की।

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