विटामिन डी हार्ट के लिए भी जरूरी, कमी से कार्डियोवस्कुलर डिजीज होने के मिले आनुवंशिक प्रमाण
दुनियाभर के अधिकांश हिस्से की आबादी में विटामिन डी की कमी पाई जाती है। इस अध्ययन में शामिल 55 प्रतिशत लोगों में विटामिन डी का स्तर 50 नैनोमोल्स प्रति लीटर (एनएमओएल/लीटर) से कम पाया गया। जबकि 13 प्रतिशत प्रतिभागियों में गंभीर कमी (25 एनएमओएल/लीटर से भी कम) पाई गई।
By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Updated: Wed, 08 Dec 2021 07:44 AM (IST)
एडिलेड (आस्ट्रेलिया), एएनआइ। विटामिन डी को लेकर एक व्यापक मान्यता रही है कि यह हड्डी को मजबूत बनाने के लिए जरूरी है। इसका मुख्य प्राकृतिक स्रोत धूप को माना जाता है। लेकिन एक हालिया शोध में इस बात की पुष्टि हुई है कि यह विटामिन न सिर्फ हड्डी बल्कि हार्ट (हृदय) की सेहत के लिए जरूरी है। यूनिवर्सिटी आफ साउथ आस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं का यह अध्ययन यूरोपियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
शोधकर्ताओं ने हृदय रोग पैदा करने में विटामिन डी की कमी की भूमिका के आनुवंशिक प्रमाण की खोज की है। अध्ययन में यह बात सामने आई है कि विटामिन डी की कमी वाले लोगों को हार्ट डिजीज और हाई ब्लड प्रेशर का खतरा विटामिन डी के सामान्य स्तर वाले लोगों की तुलना में दोगुना तक ज्यादा होता है।बता दें कि कार्डियोवस्कुलर डिजीज (सीवीडी) दुनियाभर में लोगों की मौतों का एक बड़ा कारण है। हर साल इन रोगों से लगभग 1.79 करोड़ लोगों की मौत होती है। एक अनुमान के अनुसार, भारत में भी इन रोगों से सालाना करीब 47.7 लाख लोगों की मौतें होती हैं। आस्ट्रेलिया में तो हर चौथी मौत सीवीडी से होती है और उसकी अर्थव्यवस्था को हर साल पांच अरब डालर से ज्यादा का नुकसान होता है।
दुनियाभर के अधिकांश हिस्से की आबादी में विटामिन डी की कमी पाई जाती है। इस अध्ययन में शामिल 55 प्रतिशत लोगों में विटामिन डी का स्तर 50 नैनोमोल्स प्रति लीटर (एनएमओएल/लीटर) से कम पाया गया। जबकि 13 प्रतिशत प्रतिभागियों में गंभीर कमी (25 एनएमओएल/लीटर से भी कम) पाई गई।वैसे, विटामिन डी का सामान्य स्तर 50 एनएमओएल/लीटर माना जाता है। भारत में लगभग 80-90 प्रतिशत लोगों में इसकी कमी पाई जाती है। शोधकर्ताओं ने आस्ट्रेलिया में 23 प्रतिशत और अमेरिका में 24 प्रतिशत और कनाडा में 37 प्रतिशत लोगों में विटामिन डी का कम होना माना है।
हृदय की सेहत पर होने वाले नकारात्मक प्रभावों से बचा जा सकता हैयूनिवर्सिटी आफ साउथ आस्ट्रेलिया की मुख्य शोधकर्ता प्रोफेसर एलिना हाइपोनेन का कहना है कि विटामिन डी की कमी को दूर कर दुनियाभर में कार्डियोवस्कुलर डिजीज में कमी लाई जा सकती है। उनके मुताबिक, विटामिन डी की गंभीर कमी वैसे तो बहुत ही विरले होती है। लेकिन इतनी कमी वाले क्षेत्रों में सक्रियता से कदम उठाकर हृदय की सेहत पर होने वाले नकारात्मक प्रभावों से बचा जा सकता है।
उन्होंने बताया कि वैसे तो विटामिन डी का सबसे अच्छा स्त्रोत धूप है, लेकिन यह मछली, अंडा, फोर्टिफाइड फूड तथा कुछेक पेय में भी पाया जाता है। लेकिन खाद्य पदार्थो में यह बहुत कम मात्रा में पाई जाती है। ऐसे में धूप ज्यादा जरूरी है। उन्होंने बताया कि अध्ययन से यह बात सामने आई है कि यदि विटामिन डी का स्तर सामान्य हो जाए तो कार्डियोवस्कुलर डिजीज में 4.4 प्रतिशत की कमी लाई जा सकती है।
उन्होंने बताया कि जीनेटिक एप्रोच वाले इस अध्ययन से टीम को यह जानने में मदद मिली कि विटामिन डी के बढ़ते स्तर का सीवीडी पर क्या असर होता है। इसमें 267,980 लोगों की सूचनाएं शामिल की गईं। देखा गया कि विटामिन डी की कमी वाले लोगों में जैसे-जैसे उसकी कमी दूर होती गई, उनमें कार्डियोवस्कुलर डिजीज का खतरा भी कम होता गया।