Ranil Wickremesinghe: श्रीलंका के नए राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के सामने क्या है बड़ी चुनौती? भारत-चीन के साथ कैसे रखेंगे तालमेल- एक्सपर्ट व्यू
ऐसे में सवाल उठता है कि नए राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के समक्ष आंतरिक और वैदेशिक स्तर पर बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में सवाल उठता है कि उनके समक्ष कौन सी बड़ी चुनौती होगी। आखिर इस चुनौती से वह कैसे निपटेंगे।
By Ramesh MishraEdited By: Updated: Wed, 20 Jul 2022 03:20 PM (IST)
नई दिल्ली, जेएनएन। रानिल विक्रमसिंघे ऐसे वक्त श्रीलंका के राष्ट्रपति बने हैं, जब देश सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। देश की आर्थिक व्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो गई है। जनता की बुनियादी जरूरतें पूरी कर पाने में सरकार असफल हो गई है। पेट्रोल-डीजल से लेकर दूध और दूसरी खाद्य सामग्रियां इतनी महंगी हो गई हैं कि लोग खरीद नहीं पा रहे हैं। श्रीलंका में हालात इतने बुरे हैं कि आजादी के बाद एक बार फिर श्रीलंका गृह युद्ध के मुहाने पर खड़ा है। ऐसे में सवाल उठता है कि नए राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के समक्ष आंतरिक और वैदेशिक स्तर पर बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में सवाल उठता है कि उनके समक्ष कौन सी बड़ी चुनौती होगी। आखिर इस चुनौती से वह कैसे निपटेंगे।
1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि श्रीलंका के राष्ट्रपति के समक्ष यह बड़ी चुनौती होगी कि वह बढ़ती खाद्य कीमतों, मुद्रा का लगातार मूल्यह्रास और तेजी से घटते विदेशी मुद्रा भंडार पर नियंत्रण के लिए क्या कदम उठाते हैं। उनके समक्ष देश के आर्थिक आपातकाल से निपटना एक बड़ी चुनौती होगी। क्या नए राष्ट्रपति वर्ष 2021 में सरकार के उस फैसले को पलटते हैं, जिसमें सभी उर्वरक आयातों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था। बता दें कि श्रीलंका में पूर्व की सरकार ने रातों-रात सौ फीसद जैविक खेती वाला देश बनाने की घोषणा कर दी थी। सरकार के इस प्रयोग ने खाद्य उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित किया। इसके अलावा देश की पर्यटन व्यवस्था को पटरी पर लाना होगा, जिससे देश की आर्थिक व्यवस्था को सुधारा जा सके। इसके अलावा उनको विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच तालमेल बिठाने की भी चुनौती होगी।
2- प्रो पंत ने कहा कि वर्ष 2019 में श्रीलंका में सत्ता परिवर्तन के बाद गोटाबाया राजपक्षे की सरकार ने निम्न कर दरों और किसानों के लिए व्यापक रियायत दी थी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नए राष्ट्रपति इन रियायतों को सीमित करेंगे या खत्म कर देंगे। श्रीलंका की इस दुर्दशा के लिए सरकार की इस नीति को भी जिम्मेदार माना गया है। कोरोना महामारी के दौरान चाय, रबर, मसालों और कपड़ों के निर्यात को कैसे पटरी पर लाएंगे यह भी एक बड़ी चुनौती होगी।
3- प्रो पंत का कहना है कि श्रीलंका के नए राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के समक्ष वैदेशिक संबंधों के स्तर पर एक बड़ी चुनौती होगी। देश की इस दुर्दशा के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा था, ऐसे में चीन के साथ वह किस तरह से संबंधों को आगे बढ़ाते हैं, यह देखना अहम होगा। उन्होंने कहा कि इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि चीन की नजदीकी श्रीलंका पर भारी पड़ी है। चीन की रणनीति ऐसी है कि जिस देश में उसने अपने निवेश बढ़ाए हैं, वहां राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता तेजी से बढ़ी है। ऐसे में वह चीन के साथ रिश्ते रखते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा। इसके अलावा भारत के साथ रिश्तों को किस तरह से आगे ले जाते हैं यह भी देखना होगा, क्योंकि भारत ने गाढ़े वक्त पर श्रीलंका का साथ दिया है। ऐसे में भारत के साथ वह किस तरह से दोस्ती को आगे ले जाते हैं।
4- इसके अलावा नए राष्ट्रपति के समक्ष देश की आंतरिक राजनीति को संतुलित रखना एक बड़ी चुनौती होगी। खासकर देश के विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच तालमेल रखना और सबको साथ लेकर चलना एक बड़ी समस्या होगी। हालांकि, उनके पास एक लंबा राजनीतिक अनुभव है और श्रीलंका एक कठिन दौर से गुजर रहा है ऐसे में राजनीतिक दलों को इस समस्या से मिलजुल कर ही निपटना होगा।
संकट से निपटने के लिए राष्ट्रपति चुनाव जरूरी प्रो पंत का कहना है कि श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव जरूरी था। उन्होंने कहा कि चुनाव के जरिए जहां एक ओर श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता को खत्म करने की पहल की गई है। वहीं दूसरी ओर मौजूदा सरकार के प्रति लोगों के अंदर उपजे विद्रोह को भी कम करने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि श्रीलंका की राजनीति परिवारवाद पर सीमिट गई थी। इसको लेकर भी लोगों के अंदर जबरदस्त आक्रोश था। उन्होंने कहा कि श्रीलंका में प्रदर्शनकारी पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफे की मांग कर रहे थे। उन्होंन कहा कि इसका प्रमुख कारण परिवारवाद है।