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Saint Martin Island: कहां है सेंट मार्टिन द्वीप जिसपर अमेरिका की नजर; शेख हसीना ने इसी आईलैंड को बताया सत्ता छोड़ने की वजह

बंगाल की खाड़ी के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित मात्र 3 वर्ग किलोमीटर में फैला सेंट मार्टिन द्वीप (Saint Martin Island) बांग्लादेश में शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार के पतन के साथ ही चर्चा का विषय बन गया है। शेख हसीना ने रविवार को अपने एक इंटरव्यू के दौरान दावा किया कि यदि उन्होंने सेंट मार्टिन को अमेरिका को दे दिया होता तो वह सत्ता में बनी रह सकती थीं।

By Babli Kumari Edited By: Babli Kumari Updated: Sun, 11 Aug 2024 04:11 PM (IST)
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Saint Martin Island: कहां है सेंट मार्टिन द्वीप और क्यों है इसपर अमेरिका की नजर?
ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली। बांग्लादेश की अपदस्थ पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना (Ousted former Bangladesh prime minister Sheikh Hasina) ने आरोप लगाया कि यदि उन्होंने बंगाल की खाड़ी में स्थित सेंट मार्टिन द्वीप की संप्रभुता संयुक्त राज्य अमेरिका को सौंप दी होती तो वे सत्ता में बनी रह सकती थीं। एक अग्रेंजी अखबार को दिए गए इंटरव्यू में शेख हसीना ने इसका उल्लेख किया।

आइए जानते हैं क्यों इतना महत्वपूर्ण है यह सेंट मार्टिन द्वीप जिसे अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश भी बांग्लादेश से पाना चाहता था जिसकी वजह से बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता से हाथ धोना पड़ गया। 

सेंट मार्टिन द्वीप के बारे में

सेंट मार्टिन द्वीप, जिसे नारिकेल जिंजीरा (नारियल द्वीप) या दारुचिनी द्वीप (दालचीनी द्वीप) के नाम से भी जाना जाता है। बंगाल की खाड़ी के उत्तरपूर्वी भाग में स्थित यह द्वीप केवल 3 किमी वर्ग क्षेत्र में फैला एक छोटा आइलैंड है। यह कॉक्स बाजार-टैंकफ प्रायद्वीप के सिरे से लगभग 9 किमी दक्षिण में स्थित है। बांग्लादेश का एकमात्र प्रवाल द्वीप होने के कारण (यह अपनी मनमोहक प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है) जिसमें साफ नीला पानी और प्रवाल जैसे विविध समुद्री जीवन शामिल हैं।

आइलैंड पर रहते हैं लगभग 3700 निवासी 

इस द्वीप का क्षेत्रफल केवल तीन वर्ग किलोमीटर है और इसमें लगभग 3,700 निवासी रहते हैं। जो मुख्य रूप से मछली पकड़ने, चावल की खेती, नारियल की खेती और समुद्री शैवाल की कटाई का काम करते हैं। इन सभी फसलों को यह आइलैंड म्यांमार को निर्यात किया जाता है।

क्या है सेंट मार्टिन द्वीप का इतिहास? 

इस द्वीप को बंगाली में 'नारिकेल जिंजीरा' या नारियल द्वीप के नाम से भी जाना जाता है। बताया जाता है कि यहां नारियल के पेड़ों की बहुतायत है। इसे 'दारुचिनी द्वीप' या दालचीनी द्वीप के नाम से भी जाना जाता है। यह द्वीप कभी टेकनाफ प्रायद्वीप का विस्तार था, लेकिन प्रायद्वीप के एक हिस्से के जलमग्न होने के कारण अलग हो गया। हालांकि, इसने प्रायद्वीप के सबसे दक्षिणी हिस्से को एक द्वीप में बदल दिया, जो अब  बांग्लादेश की मुख्य भूमि से अलग हो गया।

कैसे पड़ा इस आइलैंड का सेंट मार्टिन नाम?

इस द्वीप का इतिहास बहुत समृद्ध है, जो अठारहवीं शताब्दी से शुरू होता है जब अरब व्यापारियों ने इसे पहली बार बसाया था, जिन्होंने इसका नाम 'जजीरा' रखा था। 1900 में, एक ब्रिटिश भूमि सर्वेक्षण दल ने सेंट मार्टिन द्वीप को ब्रिटिश भारत के हिस्से के रूप में शामिल किया और इसका नाम सेंट मार्टिन नामक एक ईसाई पादरी के नाम पर रखा। हालांकि, ऐसी रिपोर्टें हैं कि इस द्वीप का नाम चटगांव के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर, मार्टिन के नाम पर रखा गया है।

  • 1937 में म्यांमार के अलग होने के बाद यह द्वीप ब्रिटिश भारत का हिस्सा बना रहा।
  • 1947 के विभाजन तक यह ऐसा ही रहा, जब यह पाकिस्तान के नियंत्रण में चला गया।
  • बाद में, 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद यह कोरल द्वीप बांग्लादेश का हिस्सा बन गया।
  • 1974 में, बांग्लादेश और म्यांमार के बीच एक समझौता हुआ कि कोरल द्वीप बांग्लादेशी क्षेत्र का हिस्सा होगा।

सेंट मार्टिन का क्या है भू-राजनीतिक महत्व?

सेंट मार्टिन द्वीप 1971 में देश के अस्तित्व में आने के बाद से बांग्लादेश की राजनीति पर हावी रहा है। बंगाल की खाड़ी से इसकी निकटता और म्यांमार के साथ समुद्री सीमा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर (विशेष रूप से अमेरिका और चीन) इस आइलैंड के प्रति इन देशों की रुचि बढ़ी। अमेरिका और चीन इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को मजबूत करने के लिए द्वीप पर अपना दबदबा बनाने की कोशिश की।

पिछले साल जून में, शेख हसीना ने आरोप लगाया था कि अमेरिका ने चुनावों में बीएनपी की जीत के बदले में सेंट मार्टिन द्वीप पर कब्जा करने और एक सैन्य अड्डा बनाने का इरादा जताया था। उन्होंने यह भी दावा किया कि अगर बीएनपी सत्ता में आती है, तो वह इस द्वीप को अमेरिका को बेच देगी।

इस आइलैंड की मदद से अमेरिका दिखा सकता है चीन को आंखें 

अमेरिकी इस द्वीप पर अपना कब्जा इसलिए भी चाहता है क्योंकि अमेरिका इस आइलैंड पर बेस बनाकर चीन को चुनौती देना चाहता है। साथ ही अमेरिका चीन के बढ़ते खतरे के खिलाफ भी इस इलाके में अपनी उपस्थिति चाहता हैं। अमेरिका की सैन्य मौजूदगी अगर इस क्षेत्र में हो जाती है तो उसे चीन पर बढ़त दिलाने में मदद करेगी।

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