मान्यता के लिए परेशान तालिबान के साथ इस मुल्क ने किया करार, अमेरिका-पश्चिमी देशों को बड़ा झटका
Taliban and Russia Relations तालिबान हुकूमत ने रूस से काफी सस्ते दर पर तेल एलपीजी गैस और गेहूं खरीदने का समझौता हुआ है। मान्यता के लिए बरकरार तालिबान हुकूमत के लिए यह बड़ी राहत है। रूस और तालिबान के इस करार से अमेरिका को जरूर झटका लगा होगा।
By Ramesh MishraEdited By: Updated: Fri, 30 Sep 2022 07:34 PM (IST)
नई दिल्ली, जेएनएन। Taliban and Russia Relations: यूक्रेन युद्ध में फंसा रूस अब अपने समर्थक देशों की सूची बढ़ाने की जुगाड़ में लगा है। इस क्रम में रूस तालिबान के निकट आ रहा है। अफगानिस्तान में सत्ता काबिज होने के बाद तालिबान का पहली बार किसी दूसरे देश से आर्थिक करार हुआ है। तालिबान हुकूमत ने रूस के साथ काफी सस्ते दर पर तेल, एलपीजी गैस और गेहूं खरीदने का समझौता किया है। मान्यता के लिए बरकरार तालिबान हुकूमत के लिए यह बड़ी राहत है। रूस और तालिबान के इस करार से अमेरिका को जरूर झटका लगा होगा। आइए जानते हैं कि पूरा क्या मामला है।
तालिबान हुकूमत के लिए बड़ी राहत गौरतलब है कि तालिबान सरकार को अब तक किसी देश ने मान्यता नहीं दी है। हालांकि, शुरुआत में चीन और पाकिस्तान ने इसमें बड़ी दिलचस्पी दिखाई थी। विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि रूस और अफगानिस्तान के इस करार के बाद तालिबान के दोनों हाथ में लड्डू हैं। इससे जहां एक ओर उसकी सत्ता को अंतरराष्ट्रीय जगत में बेवजह मान्यता की लाइन में खड़ा कर दिया है। वहीं दूसरी ओर तंग अफगानिस्तान को रूसी सहयोग से बड़ी राहत मिलेगी।
रूस और अमेरिका में बढ़ सकता है तनाव
प्रो पंत ने कहा कि यूक्रेन जंग को लेकर रूस पहले ही अमेरिका और पश्चिमी देशों से चिढ़ा बैठा है। अब तालिबान के साथ इस रूसी सौदे को लेकर रूस और अमेरिका के बीच तनाव और बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि फरवरी में भारत ने भी अफगानिस्तान को गेहूं और दवाइयां भेजी थी, लेकिन यह मदद किसी करार के तहत नहीं बल्कि मानवता के आधार पर दी गई थी। प्रो पंत ने कहा कि रूस और अफगानिस्तान के साथ बाकायदा समझौते के तहत यह व्यापार समझौता हुआ है।
तालिबान हुकूमत का पश्चिमी देशों से अनबन अफगानिस्तान में तालिबान हुकूमत के बाद से ही पश्चिमी देशों और अमेरिका ने वहां मानवता के हालात पर चिंता व्यक्त की थी। इतना ही नहीं अफगानिस्तान में महिलाओं की हालत पर चिंता जाहिर की गई थी। पश्चिमी देशों ने तालिबान पर महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के लिए दबाव बनाया था। गौरतलब है कि इस वक्त काबुल में कुछ देशों के एम्बेसीज जरूर है, लेकिन वहां कोई उच्च राजनयिक की तैनाती नहीं है।
अफगानिस्तान की बदहाल अर्थव्यवस्थागौरतलब है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद 15 अगस्त, 2021 को तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद बाइडन प्रशासन ने अपने यहां मौजूद करीब नौ अरब डालर के एसेट्स फ्रीज कर दिए थे। पश्चिमी देशों ने भी तालिबान हुकूमत को मान्यता देने से मना कर दिया था। उस वक्त पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के लिए दुनिया से कई बार मदद की गुहार लगाई, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।
अफगानिस्तान की बदहाल अर्थव्यवस्था 1- गौरतलब है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद 15 अगस्त, 2021 को तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद बाइडन प्रशासन ने अपने यहां मौजूद करीब नौ अरब डालर के एसेट्स फ्रीज कर दिए थे। पश्चिमी देशों ने भी तालिबान हुकूमत को मान्यता देने से मना कर दिया था। उस वक्त पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के लिए दुनिया से कई बार मदद की गुहार लगाई, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।
2- तालिबान अपने हिसाब-किताब का कोई ब्योरा प्रकाशित नहीं करता। उसकी कमाई और संपत्ति का सटीक पता लगाना मुश्किल है। 2016 में फोर्ब्स मैगजीन के मुताबिक तालिबान का वार्षिक कारोबार 2,968 करोड़ रुपए है। ऐसा अनुमान है कि सबसे ज्यादा पैसा ड्रग्स से आता है। इसके अलावा अवैध हथियार के जरिए भी तालिबान पैसा कमाता है।
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