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भारत के लिए क्यों खास है बांग्लादेश का चुनाव, यूएस और चीन की भी लगी है निगाह

बांग्लादेश में होने वाले आम चुनाव भारत के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। चीन और अमेरिका समेत कई देशों की इस चुनाव पर नजर है। भारत में जारी हुआ अलर्ट। भेजे गए हैं तीन पर्यवेक्षक।

By Amit SinghEdited By: Updated: Fri, 28 Dec 2018 10:33 AM (IST)
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भारत के लिए क्यों खास है बांग्लादेश का चुनाव, यूएस और चीन की भी लगी है निगाह
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। बांग्लादेश में 30 दिसंबर को होने जा रहे 11वें संसदीय चुनावों से ठीक पहले काफी गहमागहमी है। बांग्लादेश के अंदर ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस चुनाव को लेकर राजनीतिक और कूटनीतिक उठा-पटक जारी है। बांग्लादेश का चुनाव केवल भारत और पाकिस्तान के लिए ही नहीं बल्कि अन्य पड़ोसी देशों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है। यही वजह है कि यहां के चुनाव पर चीन और अमेरिका की भी निगाहें टिकी हुई हैं।

बांग्लादेश में राजनीतिक रस्साकसी के बीच पुलिस, चुनाव से ठीक पहले 10,500 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है। विपक्षी दलों का आरोप है कि गिरफ्तार किए गए लोग उनके कार्यकर्ता हैं। ये राजनैतिक गिरफ्तारियां हैं, जो बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार के इशारे पर चुनावों में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी फैलाने के लिए की गई हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस चुनाव में लगातार चौथी बार जीत की उम्मीद है। वहीं विपक्षी पार्टियों का कहना है कि चुनाव में डर का माहौल पैदा करने के लिए उनके कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की गई है।

पहली बार होगा ईवीएम का इस्तेमाल
देश में पहली बार छह सीटों के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल किया जाएगा। जातीय संसद (हाउस ऑफ द नेशन) बांग्लादेश का शीर्ष कानून बनाने वाला निकाय है। इसके कुल 350 सदस्य हैं, जिनमें से 300 सदस्य निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान करके चुने जाते हैं। महिलाओं के लिए आरक्षित 50 सीटें आनुपातिक रूप से चुनाव लड़ने वाली पार्टियों के बीच वोट शेयर के हिसाब से बंट जाती हैं। इसलिए चुनाव जीतने के लिए किसी राजनीतिक दल या मोर्चे को 151 सीटें जीतने की जरूरत होती है। संसदीय चुनाव हर पांच साल में होते हैं।

बांग्लादेश में मतदाता
बांग्लादेश में 5.16 करोड़ महिलाओं सहित लगभग 10.42 करोड़ लोग मतदाता के रूप में पंजीकृत हैं। देशभर के 40,199 मतदान केंद्रों पर वोट डाले जाएंगे। बांग्लादेश एक मुस्लिम बहुल देश है, धर्मनिरपेक्षता उसके संविधान के चार मूलभूत सिद्धांतों में से एक है। बांग्लादेश की 16.47 करोड़ आबादी में से 10 फीसद अल्पसंख्यक हैं। हिंदू लगभग 8-9 फीसद हैं, ईसाई 0.5 फीसद, जबकि शेष बौद्ध हैं।

चीन और अमेरीका की भी है नजर
बांग्लादेश का चुनाव अंतरराष्ट्रीय राजनीति व कूटनीति के लिहाज से भी काफी अहम है। यही वजह है कि अमेरीका ने भी बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार से स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित कराने का आग्रह किया था। वहीं चीन भी बांग्लादेश के चुनावों पर नजर बनाए हुए है। क्योंकि बांग्लादेश उसके लिए कूटनीतिक और भौगोलिक एंगल से काफी महत्वपूर्ण है। खास तौर पर भारत के खिलाफ, चीन को पड़ोसी देशों पाकिस्तान व बांग्लादेश आदि की जरूरत है। मालूम हो कि बांग्लादेश में कट्टरपंथी संगठन खालिदा जिया के समर्थक माने जाते हैं, जो भारत विरोधी भी हैं।

जेल में हैं मुख्य विपक्षी पार्टी की नेता
वहीं बांग्लादेश की मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की नेता और देश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया भ्रष्टाचार के एक मामले में 17 साल कैद की सजा काट रही हैं। उनके बेटे तारिक रहमान को शेख हसीना को जान से मारने के षड्यंत्र में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है और वे लंदन में आत्म निर्वासन में रह रहे हैं। खालिदा जिया ने दावा किया है कि उनकी पार्टी के 7,021 कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया है। बीएनपी की सहयोगी पार्टी जमात-ए-इस्लामी ने भी अपने 3500 कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिए जाने की बात कही है।

मुख्य विपक्षी पार्टी पर लगा है प्रतिबंध
बांग्लादेश में मुख्य विपक्षी पार्टी, जमात-ए-इस्लामी के चुनाव लड़ने पर रोक है। तकरीबन दो माह पहले जमात-ए-इस्लामी का पंजीकरण रद किया जा चुका है। लिहाजा इसके प्रत्याशी बीएनपी के साथ निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ रहे हैं। जमात-ए-इस्लामी के महासचिव शफीकुर रहमान का कहना है कि हर रोज देश भर में 80 से 90 कार्यकर्ता गिरफ्तार किए जा रहे हैं। इन गिरफ्तारियों से कार्यकर्ताओं में डर का माहौल पैदा किया है। बीएनपी ने भी 2014 में चुनाव नहीं लड़ा था और उस फैसले में तारिक रहमान की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी। 2014 के चुनाव में भागीदारी के लिए पार्टी के भीतर से मजबूत आवाज के बावजूद जिया और उनके बेटे ने चुनाव से बाहर रहने का फैसला किया था।

इसलिए भारत के लिए महत्वपूर्ण है ये चुनाव
बांग्लादेश का चुनाव भारत के लिए काफी अहम है। बांग्लादेश और भारत 4,000 किमी लंबी सीमा साझा करते हैं। रणनीतिक रूप से भारत के लिए यह पड़ोसी मुल्क बड़ा ही महत्वपूर्ण है। भारत की पूर्व की ओर देखो नीति का यह देश एक प्रमुख घटक है। शेख हसीना के शासन में नई दिल्ली ने द्विपक्षीय संबंधों में सुधार देखा है। सीमा विवादों का सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटारा किया गया है। दोनों के बीच मजबूत सुरक्षा सहयोग स्थापित किया गया है। तीस्ता नदी जल बंटवारे को लेकर मतभेदों को निपटाने में प्रगति हुई है। बांग्लादेश में भारत का निवेश भी बढ़ा है।

प्रधानमंत्री के रूप में अपने दो कार्यकालों के दौरान खालिदा जिया के भारत के साथ संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। ध्यान रहे कि बांग्लादेश में कई छोटे दल और खासकर कट्टरपंथी तत्व भारत विरोध का परचम उठाए रहते हैं। इनमें से कई ऐसे हैं जिनके तार पाकिस्तानी कट्टरपंथी तत्वों से जुड़े हैं। एक तथ्य यह भी है कि ऐसे कट्टरपंथी तत्व खालिदा जिया के समर्थक के तौर पर जाने जाते हैं।

यही वजह है कि बांग्लादेश के चुनाव भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। इसलिए भारत अपनी तटस्थता की नीति पर कायम रहते हुए वहां के राजनीतिक हालात पर नजर बनाए हुए है। भारत, बांग्लादेश के चुनावों पर कोई प्रतिक्रिया इसलिए नहीं दे रहा, क्योंकि ये चुनावी मुद्दा बन सकता है। जैसा कि पिछले संसदीय चुनावों में हो चुका है। भारत यह नहीं चाहता कि शेख हसीना की छवि भारत समर्थक नेता के तौर पर उभरे। 

दो बेगमों के बीच है बांग्लादेश की राजनीति
सिंगापुर की नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी में विजिटिंग फेलो राजीव रंजन चतुर्वेदी के अनुसार बांग्लादेश की राजनीति लंबे अर्से से शेख हसीना और खालिदा जिया के इर्द-गिर्द ही घूम रही है। चुनावों में जंग भी इन्हीं के बीच होती है। राजनीतिक लाभ के लिए जांच में हस्तक्षेप की समस्या दक्षिण एशिया में व्यापक है और बांग्लादेश निश्चित रूप से अपवाद नहीं है। दक्षिण एशिया में एक और आम धारणा है कि राजनीतिक दिग्गज कानून तोड़ने और सार्वजनिक भरोसे का उल्लंघन करने के बावजूद कानून के शिकंजे से बच सकते हैं। हालांकि मध्य वर्ग की संख्या में बढ़ोतरी और लोगों की बढ़ती आकांक्षाओं के साथ दक्षिण एशिया में राजनीति भी बदल रही है। आशा और निराशा के बीच बांग्लादेश की राजनीति भी करवट ले रही है।

विपक्षी गठबंधन में शामिल हैं 20 दल
इस बार भी बांग्लादेश चुनाव से पहले काफी गतिरोध रहा है। हालांकि, आखिरी समय में खालिदा जिया की बीएनपी और उसके सहयोगी दल गठबंधन कर चुनाव लड़ने को तैयार हो गए। इस गठबंधन में करीब 20 राजनीतिक दल शामिल हैं। शेख हसीना की पार्टी बांग्लादेश अवामी लीग के साथ भी लगभग एक दर्जन दल हैं। तीसरे मोर्चे या तीसरी ताकत के रूप में आठ वामपंथी दलों का भी एक गठबंधन है। हालांकि सीधा मुकाबला, अवामी लीग और बीएनपी के नेतृत्व वाले गठबंधनों के ही बीच है।

खालिदा जिया के नेतृत्व में सबसे भ्रष्ट देश था बांग्लादेश
सिंगापुर की नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी में विजिटिंग फेलो राजीव रंजन चतुर्वेदी के अनुसार खालिदा जिया के नेतृत्व वाले बीएनपी के शासनकाल में भ्रष्टाचार विरोधी निगरानी संस्था ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल द्वारा लगातार पांच वर्षों तक बांग्लादेश को दुनिया में सबसे भ्रष्ट देश के रूप में स्थान दिया गया था। उस दौरान बांग्लादेश में कट्टरवाद फला-फूला, राजनीतिक विरोधियों और देश के अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा की तमाम घटनाएं भी हुईं। भ्रष्टाचार के मामले में खालिदा जिया को दोषी ठहराने का बांग्लादेश के न्यायालय का निर्णय इस मिथक पर प्रहार साबित हुआ कि राजनीतिक दिग्गज कानून तोड़ने के बाद भी बच सकते हैं। इस फैसले से बांग्लादेश की जनता को भी यह संदेश गया कि शक्तिशाली नेताओं को भ्रष्टाचार के लिए दंडित किया जा सकता है। हालांकि विपक्ष इस सजा को भी राजनीतिक साजिश करार देता रहा है।

बांग्लादेश में चुनाव से भारत में अलर्ट
बांग्लादेश में आम चुनाव को देखते हुए भारत भी अलर्ट हो गया है। चुनाव से कुछ घंटे पहले त्रिपुरा की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर हाई अलर्ट रहेगा। बांग्लादेश में किसी भी ‘अप्रिय स्थिति’ से बचने के लिए बीएसएफ ने यह कदम उठाया है। बीएसएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार त्रिपुरा से बांग्लादेश की 856 किलोमीटर सीमा लगती है। चुनाव के दौरान किसी भी घुसपैठ की कोशिश को नाकाम करने के लिए सीमा क्षेत्रों में सुरक्षा पहले ही कड़ी कर दी गई है। कार्यवाहक महानिरीक्षक एके यादव ने कहा कि हमारा मुख्य उद्देश्य असमाजिक तत्वों का प्रवेश रोकना है। चुनाव प्रक्रिया से गुजरने वाले बांग्लादेश में किसी भी अप्रिय स्थिति को रोकने के लिए हम सीमा पर कानून-व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए काम करेंगे।

भारत से भेजे जा रहे हैं तीन पर्यवेक्षक
मालूम हो कि बांग्लादेश निर्वाचन आयोग ने कई देशों से चुनाव पर्यवेक्षक आमंत्रित किए हैं। उसके अनुरोध पर भारत भी अपने तीन पर्यवेक्षकों को भेज रहा है, जो मतदान के दौरान पूरी प्रक्रिया पर नजर रखेंगे। ये पर्यवेक्षक चुनाव के दौरान 28 दिसंबर से 31 दिसंबर तक बांग्लादेश में रहेंगे। इसके अलावा भारतीय चुनाव आयोग ने निष्पक्ष चुनावों के लिए बांग्लादेश चुनाव आयोग को आवश्यक दिशा-निर्देश भी दिए हैं, ताकि उसके चुनावों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हो सके।

भारतीय चुनाव आयोग के अनुसार, वह निष्पक्ष चुनावों के लिए केवल बांग्लादेश चुनाव आयोग की मदद कर रहे हैं। चुनाव प्रक्रिया में उनकी सीधे तौर पर कोई भूमिका नहीं है। इससे पहले 29 नवंबर को भारतीय चुनाव आयोग ने बांग्लादेश से आए 23 वरिष्ठ अधिकारियों के एक दल को निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने के लिए दिल्ली स्थित अपने मुख्यालय पर विशेष प्रशिक्षण भी दिया था। दो दिसंबर को भारत में सुनील अरोरा को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया था। इसके बाद 12 दिसंबर को बांग्लादेश के उच्चायुक्त सय्यद मुआज्जेम अली ने उनसे वार्ता की थी।

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