Tracking Spy Ship क्या है? चीन के ट्रैकिंग शिप से क्यों चिंतित हुआ भारत, किन मुल्कों के पास है ये क्षमता
india Spy Ship ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर किन देशों के पास ट्रैकिंग शिप है। क्या भारतीय नौसेना के पास ट्रैकिंग शिप है। चीन कितनी बार ट्रैकिंग शिप के जरिए भारत की जासूसी का प्रयास कर चुका है। दुनिया में किन मुल्कों के पास ट्रैकिंग शिप है।
By Ramesh MishraEdited By: Updated: Tue, 08 Nov 2022 08:01 PM (IST)
नई दिल्ली, जेएनएन। हिंद महासागर में चीन के जासूसी जहाज से एक बार फिर भारत की चिंता बढ़ी है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि चीन पहली बार जासूसी कर रहा है। इसके पूर्व भी चीन पर हिंद महासागर में भारत के साथ जासूसी के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर किन देशों के पास ट्रैकिंग शिप है। क्या भारतीय नौसेना के पास ट्रैकिंग शिप है। आइए जानते हैं कि चीन कितनी बार ट्रैकिंग शिप के जरिए भारत की जासूसी का प्रयास कर चुका है। दुनिया में किन मुल्कों के पास ट्रैकिंग शिप है। आखिर भारत ने ट्रैकिंग शिप के क्षेत्र में कब विकास किया।
भारत समेत पांच देशों के पास है सुविधा चीन ही नहीं दुनिया के इन मुल्कों के पास भी ट्रैकिंग शिप की सुविधा मौजूद है। अमेरिकी नौसेना के पास ट्रैकिंग शिप का बड़ा बेड़ा है। इनमें से कुछ का इस्तेमाल अमेरिका की अंतरिक्ष कंपनी नासा भी करती है। इसके साथ रूस के पास भी मार्शल क्रिलोव ट्रैकिंग शिप है। वर्ष 2018 में रूस ने इस जहाज को अपग्रेड किया था। फ्रांस की नौसेना के पास मोंज ट्रैकिंग जहाज एक्टिव है। फ्रांस की स्पेस एजेंसी भी इसका इस्तेमाल करती है। चीन की ट्रैकिंग शिप को युआन वांग क्लास शिप कहा जाता है। चीन अब तक इस क्लास की सात शिप लांच कर चुका है। भारत ने 10 सितंबर 2021 को पहला मिसाइल ट्रैकिंग शिप ध्रुव लांच किया था। न्यूक्लियर और बैलेस्टिक मिसाइल को ट्रैक करने वाला ये भारत का पहला शिप है।
भारत की मिसाइल ट्रैकिंग शिप
भारत के ट्रैकिंग शिप ध्रुव को डीआरडीओ और भारतीय नौसेना ने मिलकर बनाया है। इंटर कांन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल को ट्रैक करने में यह शिप काफी अहम है। भारत ने वर्ष 2021 में अपना पहला मिसाइल ट्रैकिंग शिप ध्रुव लांच किया था। ध्रुव नामक ट्रैकिंग शिप एक्टिव इलेक्ट्रानिक स्कैन्ड रडार से लैस है। यह दुश्मन की सैटेलाइट्स पर भी नजर रखता है। ध्रुव परमाणु मिसाइल को ट्रैक करने के साथ-साथ बैलिस्टिक मिसाइल और लैंड बेस्ड सैटेलाइट्स को भी ट्रैक कर सकता है। यह समुद्र में दो हजार किलोमीटर तक 360 डिग्री नजर रख सकता है। शिप में कई रडार का काम्बिनेशन सिस्टम लगा है जो एक साथ मल्टिपल टारगेट पर नजर रख सकता है। ध्रुव से चेतक और मल्टीरोल हेलीकाप्टर को भी आपरेट किया जा सकता है।
14 वर्ष से चीन के लिए जासूसी कर रहा वांग-6 चीन का वांग 6 वर्ष 2008 में लांच किया गया था। चीन का दावा है कि यह शोध करने वाला जहाज है, लेकिन यह जासूसी करता है। मौजूदा समय में यह हिंद महासागर में मौजूद है। इस शिप की चौड़ाई 25 मीटर है। इस जासूसी जहाज की गति 25 से 38 किलोमीटर प्रतिघंटे है। युआन वांग 6 जहाज में ऐसे रडार और एंटीना लगे हैं जो किसी भी मिसाइल और राकेट को ट्रैक कर सकते हैं। इसकी खास बात यह है कि यह जहाज करीब एक हजार किलोमीटर तक आसानी से निगरानी कर सकता है।
शोध के नाम पर चीन कई बार कर चुका है जासूसी आठ वर्ष में 5वीं बार चीन का यह जहाज भारत की जासूसी की फिराक में है। वर्ष 2014 चीनी पनडुब्बी चांगझेंग-2 कोलंबों के पास हंबनटोटा बंदरगाह के पास आ गया था। उस वक्त भी भारत सरकार ने चीन के इस कदम पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी। वर्ष 2019 में भारतीय नौसेना ने अंडमान द्वीप समूह के करीब आने पर चीनी नौसेना जहाज शी यान-1 को चेतावनी देते हुए वहां से जाने के लिए कहा था। वर्ष 2020 में भी चीन के जासूसी जहाज हिंद महासागर में देखे गए थे। वर्ष 2022 में चीन के जासूसी जहाज युआन वांग 5 श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर रुका था। उस वक्त भारत ने चीन और श्रीलंका के सामने अपना विरोध प्रगट किया था।
श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर रुका था युआन वांग-5अगस्त में चीन का युआन वांग-5 दक्षिण चीन सागर से लौटने से पहले श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर रुका था। चीन के इस जासूसी जहाज को लेकर भारत ने श्रीलंका से अपना विरोध दर्ज किया था। भारत सरकार के विरोध के बाद श्रीलंका ने यह भरोसा दिया था कि चीन का यह जहाज हंबनटोटा बंदरगाह पर नहीं आएगा। हालांकि, बाद में श्रीलंका सरकार ने चीन के इस जहाज को हंबनटोटा बंदरगाह पर रुकने की अनुमति दी थी। भारत ने यह भी चिंता जाहिर की थी कि चीन के इस जासूसी जहाज की पहुंच दक्षिण भारत के प्रमुख सैन्य और परमाणु ठिकाने तक होगी। साथ ही केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के कई पोर्ट यानी बंदरगाह चीन के रडार पर होंगे।