SCO vs NATO: क्यों की जा रही NATO से एससीओ की तुलना? आखिर चीन की क्या है बड़ी साजिश, क्या एससीओ का चार्टर- एक्सपर्ट व्यू
SCO vs NATO चीन जिस तरह से अमेरिका विरोधी ईरान को इस संगठन से जोड़ना चाहता है उससे यह आशंका प्रबल हो गई है वह एक नाटो के सामांतर एक पूर्वी नाटो की स्थापना करना चाहता है। क्या शंघाई सहयोग संगठन आखिर किस दिशा की ओर बढ़ रहा है।
By Ramesh MishraEdited By: Updated: Fri, 16 Sep 2022 05:00 PM (IST)
नई दिल्ली, जेएनएन। SCO vs NATO: रूस यूक्रेन युद्ध और ताइवान में जंग जैसे हालात के मध्य चीन-रूस के नेतृत्व वाले शंघाई सहयोग संगठन की 15 सितंबर को उज्बेकिस्तान के समरकंद शहर में शिखर बैठक हो रही है। इस आर्थिक और सुरक्षा से जुड़े गठबंधन की दो दिवसीय बैठक में भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी भी हिस्सा लेंगे। एससीओ की यह बैठक ऐसे समय पर हो रही है, जब भारत और चीन के बीच सीमा तक तनाव चरम पर है। दोनों ही देशों के सैनिक सीमा पर जमे हुए हैं। लद्दाख के कई इलाकों में चीनी सेना ने अपनी घुसपैठ की है और कई दौर की बातचीत के बाद अब जाकर पीपी-15 को लेकर समझौता हुआ है। इसके अलावा चीन जिस तरह से अमेरिका विरोधी ईरान को इस संगठन से जोड़ना चाहता है, उससे यह आशंका प्रबल हो गई है वह एक नाटो के सामांतर एक 'पूर्वी नाटो' की स्थापना करना चाहता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि शंघाई सहयोग संगठन आखिर किस दिशा की ओर बढ़ रहा है। इस बैठक में पूरी दुनिया की नजर भारत के रुख पर क्यों टिकी हुई हैं।
क्या अमेरिका के खिलाफ खड़ा हो सकता है एससीओ एससीओ के कुल आठ सदस्य देश हैं जिसमें भारत, पाकिस्तान, रूस, चीन, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान शामिल हैं। ईरान और बेलारूस भी शामिल हो सकते हैं। इसमें अधिकतर देश अमेरिका या पश्चिमी देशों के विरोधी हैं। ऐसे में चीन व रूस एससीओ को अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो के खिलाफ खड़ा करने के फिराक में है। इस बीच अमेरिका को झटका देने के लिए चीन ईरान को सदस्य बनाने पर पूरा जोर दिए हुए है। रक्षा मामलों के जानकार डा अभिषेक प्रताप सिंह (दिल्ली विश्वविद्यालय) का कहना है कि यह नया वारसा या नाटो के खिलाफ खड़ा किया जा सकता है। इसे पूर्वी देशों का नाटो भी कहा जा सकता है। यही कारण है कि भारत इस बैठक में पूरी सावधानी से आगे बढ़ रहा है। उधर, अमेरिका की भी इस बैठक पर पूरी नजर है।
मोदी और चीनी राष्ट्रपति चिनफिंग के बीच वार्ता की उम्मीद यह उम्मीद की जा रही है कि बैठक के दौरान पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति चिनफिंग के बीच वार्ता हो सकती है। चीनी पक्ष इसकी तैयारी कर रहा है, लेकिन भारत ने कोई आधिकारिक ऐलान नहीं किया है। शुक्रवार को भारत ने ऐलान किया कि गोगरा-हाट स्प्रिंग इलाके के पेट्रोलिंग प्वाइंट 15 से दोनों ही देशों की सेनाएं हट रही हैं। भारत ने कहा कि यह प्रक्रिया 12 सितंबर तक पूरी होगी। ऐसी अटकलें हैं कि यह सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया अगर पूरी हो जाती है तो समरकंद में पीएम मोदी और शी चिनफिंग के बीच मुलाकात हो सकती है। रूस की कोशिश है कि एससीओ के जरिए भारत और चीन को एक साथ लाकर पश्चिमी देशों के खिलाफ एकजुटता का संदेश दिया जाए। यूक्रेन युद्ध के बीच जहां पश्चिमी देशों में एकजुटता बढ़ी है, वहीं रूस अलग-थलग पड़ा है और केवल चीन ही उसकी खुलकर मदद कर रहा है।
नाटो का विरोधी क्यों नहीं हो सकता है एससीओ इस संगठन में दुनिया की दो सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन और भारत शामिल हैं। इससे यह संगठन विश्व में सबसे ज्यादा आबादी को अपने दायरे में लाता है। भारत वर्ष 2017 में इस संगठन का सदस्य बना था। भारत के लिए एससीओ का महत्व मुख्य तौर पर आर्थिक और भू-राजनीतिक है। एससीओ एक ऐसा संगठन है जिसके जरिए भारत ऊर्जा से समृद्ध मध्य एशियाई देशों में अपनी नीतियों को बढ़ा सकता है। डा अभिषेक सिंह का कहना है कि एससीओ नाटो के खिलाफ खड़ा नहीं हो सकता है। इसके पीछे वह कई कारण बताते हैं। एसीसीओ का चार्टर है कि संगठन किसी दूसरे देश या अंतरराष्ट्रीय संगठनों के खिलाफ नहीं है। इसके अलावा नाटो की तरह से एससीओ देशों के बीच कोई सामूहिक सुरक्षा संधि नहीं है। इसके तहत नाटो के एक देश पर विदेशी हमला पूरे संगठन पर हमला माना जाता है।