S-400 vs B-21 Bomber: अमेरिकी बाम्बर B-21 रूसी डिफेंस सिस्टम S-400 को चकमा देने में सक्षम, इस युद्धक विमान की किन क्षमताओं से चिंतित हुआ चीन
S-400 vs B-21 Bomber इस क्रम में अमेरिका आस्ट्रेलिया को अपना खतरनाक बाम्बर बी-21 दे सकता है। यह वही बाम्बर है जिसका जिक्र यूक्रेन युद्ध में हुआ। इसका नाम आते ही रूस के होश उड़ गए थे। इसकी किन खूबियों के कारण चीन की चिंता बढ़ गई है।
By Ramesh MishraEdited By: Updated: Wed, 24 Aug 2022 10:26 AM (IST)
नई दिल्ली, जेएनएन। S-400 vs B-21 Bomber: अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया के बीच हुए आकस समझौते के बाद अमेरिका के इस कदम से चीन के होश उड़ गए है। हिंद प्रशांत महासागर और दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते खतरे को देखते हुए अमेरिका ने एक ऐसा कदम उठाया है, जिससे चीन को मिर्ची लगी है। अमेरिका अपना एक महाविनाशक हथियार आस्ट्रेलिया को देने की योजना बना रहा है। परमाणु-संचालित पनडुब्बियों के निर्माण के बाद दोनों देश एक बड़े रक्षा सौदे की ओर आगे बढ़ सकते हैं। इस क्रम में अमेरिका, आस्ट्रेलिया को अपना खतरनाक बाम्बर बी-21 दे सकता है। यह वही बाम्बर है जिसका जिक्र यूक्रेन युद्ध में हुआ। इसका नाम आते ही रूस के होश उड़ गए थे। ऐसे में सवाल उठता है कि इसकी किन खूबियों के कारण चीन की चिंता बढ़ गई है।
1- यूक्रेन युद्ध में अमेरिका का B-21 खूब सुर्खियों में रहा। यह एक नया हाई-टेक बाम्बर है। इसे अमेरिका का अत्याधुनिक बाम्बर कहा जा सकता है। अमेरिकी वायु सेना ने इस बाम्बर के पुराने बेड़े को बदलने के लिए तैयार किया है। अमेरिका ने इन बाम्बर को 30 वर्ष पूर्व डिजाइन किया था। यह बाम्बर लंबी दूरी तक परमाणु बमों और पारंपरिक बमों के साथ हमला करने में सक्षम है। यह अमेरिका के न्यूक्लिर ट्रायड का भी हिस्सा है। जल-थल और नभ से परमाणु हमला करने की क्षमता को न्यूक्लिर ट्रायड कहा जाता है। इस श्रेणी में दुनिया के चुनिंदा देश ही शामिल हैं, जिसमें अमेरिका, भारत, चीन, रूस और फ्रांस शामिल हैं।
2- B-21 बाम्बर अपने साथ 13 हजार किलोग्राम से अधिक तक के पेलोड को लेकर उड़ान भरने में सक्षम होगा। इसमें एक बड़ा हिस्सा इंटरनल फ्यूल का होगा, जबकि, बाकी बचे हिस्से में बम और मिसाइलें लगी होंगी। B-21 पारंपरिक हथियारों के साथ परमाणु बमों के साथ हमला करने में सक्षम है। इसमें लाकहीड मार्टिन के एवियानिक्स, एपेरचर्स और F-35 में लगे कुछ सेंसर्स का भी इस्तेमाल किया गया है। अमेरिका का दावा है कि इसको रूस का एस-400 मिसाइल सिस्टम (S-400 Missile System) भी डिटेक्ट नहीं कर पाएगा। अमेरिकी वायु सेना ने इस बाम्बर के पहले उड़ान परीक्षण के लिए दो अलग-अलग फ्लाइंग विंग भी स्थापित कर दिए हैं। बी-21 बाम्बर अमेरिकी वायु सेना के बी-2 बाम्बर को रिप्लेस करने जा रहा है।
3- यह बाम्बर दुश्मन के इलाके में घुसकर आसानी से लक्ष्य पूरा करके वापस लौट सकता है। अपनी इन खूबियों के कारण इसे इसे रेडर जेट भी कहा जा रहा है। इस बाम्बर प्लेन को JASSM-ER पारंपरिक क्रूज मिसाइल से लैस किया जाएगा। साथ ही इसमें ज्वाइंट अटैक डायरेक्टेड अटैक सैटेलाइट गाइडेड बम भी फिट किया जाएगा ताकि किसी भी एयरस्ट्राइक को सफलता से पूरा किया जा सके। अमेरिकी वायु सेना की तरफ से इसकी स्पीड और रेंज को गोपनीय रखा गया है। यह बाम्बर वर्ष 2023 में पहली उड़ान पर रवाना होगा। इस बाम्बर का मकसद जासूसी करना, युद्ध में दुश्मन पर हमला करना और दुश्मन के एयरक्राफ्ट को इंटरसेप्ट करना है।
4- अमेरिका का यह नया बी-21 बाम्बर अपनी संरचना में बी-2 जैसा ही है, लेकिन दोनों की खासियत में बहुत अंतर है। यह अत्याधुनिक और स्टेट आफ आर्ट फैसिलिटी से लैस हैं। वर्ष 2022 में बी-21 बाम्बर की पहली उड़ान को आयोजित किया गया। अमेरिका की वायु सेना इसे कैलिफोर्निया के एडवर्ड्स एयरफोर्स बेस पर टेस्ट करने की तैयारी कर रही है। इसके बाद 420 वें फ्लाइट टेस्ट स्क्वाड्रन इस विमान को व्यापक परीक्षणों के लिए टेकओवर कर लेगा।
अंतरराष्ट्रीय शक्ति संतुलन से बदला समीकरण 1- हाल में अमेरिकी वायुसेना के सेक्रेटरी फ्रैंक केंडल ने कहा है कि अगर आस्ट्रेलिया की तरफ से अनुरोध किया जाता है तो अमेरिका अपना खतरनाक बाम्बर B-21 उसे देने पर विचार कर सकता है। उन्होंने कहा कि आस्ट्रेलिया को इस समय इस हथियार की सख्त जरूरत है, ताकि वह अपनी सुरक्षा कर सके। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि अमेरिका हर तरह से आस्ट्रेलिया की मदद करना चाहेगा। उसके हितों के लिए आगे आएगा। हालांकि, रक्षा विशेषज्ञों ने इस बात पर हमेशा आशंका जताई थी कि अमेरिका अपने मित्र आस्ट्रेलिया को इस तरह के हथियार नहीं सौंपेगा, जो परमाणु क्षमता से लैस हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय शक्ति संतुलन में आए बदलाव से यह संभव हुआ है।
2- आकस समझौते के बाद अमेरिका अपनी परमाणु पनडुब्बी की तकनीक और खतरनाक फाइटर जेट एफ-22 आस्ट्रेलिया को देने पर राजी हुआ है। आकस समझौता के बाद स्थिति पूरी तरह से बदल गई। इस समझौते के बाद ब्रिटेन और अमेरिका के लिए आस्ट्रेलिया की मदद करने वाले रास्ते खुल गए। चीन से निपटने के लिए अमेरिका ने क्वाड और आकस समझौता किया है। इन संगठनों का मकसद दक्षिण चीन सागर एवं हिंद प्रशांत महासागर में चीन के बढ़ते दखल को नियंत्रित करना है। क्वाड के सदस्य देशों में भारत भी शामिल है।
आकस से लगी थी चीन को मिर्ची चीन ने अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया के बीच हुए ऐतिहासिक सुरक्षा समझौते आकस की निंदा करते हुए इसे बेहद गैर जिम्मेदाराना बताया था। चीन ने कहा था कि यह छोटी सोच का उदाहरण है। चीन ने रक्षा समझौते की निंदा करते हुए कहा था कि यह शीत युद्ध की मानसिकता को दर्शाता है। इससे पहले ब्रिटेन, अमेरिका और आस्ट्रेलिया ने एक विशेष सुरक्षा समझौते की घोषणा की थी। इस समझौते के तहत अमेरिका, आस्ट्रेलिया को न्यूक्लियर पन्नडुबी की तकनीक भी मुहैया कराएगा। इस नए सुरक्षा समझौते को एशिया पैसेफिक क्षेत्र में चीन के प्रभाव से मुकाबला करने के लिए बनाया गया है।