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70 साल पहले बना दुनिया का सबसे आधुनिक मॉल, जिसके नाम से कांप जाती है लोगों की रूह

70 वर्ष पहले बने इस मॉल के प्रति लोगों में ऐसा डर बैठ चुका है कि वह यहां आने की सोचते भी नहीं है। ये मॉल वेनेजुएला के मौजूदा राजनैतिक संकट की भी मूक गवाह है।

By Amit SinghEdited By: Updated: Wed, 30 Jan 2019 10:24 AM (IST)
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70 साल पहले बना दुनिया का सबसे आधुनिक मॉल, जिसके नाम से कांप जाती है लोगों की रूह

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। ये कहानी एक ऐसे मॉल की है जो दुनिया के सबसे आधुनिक मॉल में शुमार है। आधुनिकता के प्रतीक के तौर पर बनाया गया ये मॉल अब लोगों के डर का सबब बन चुका है। लोग इसका नाम सुनकर भी कांप जाते हैं। अब यहां लोगों को पकड़-पकड़ कर लाया जाता है, जिसके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन भी आवाज उठा चुके हैं।

हम बात कर रहे हैं वेनेजुएला की राजधानी कराकस के केंद्र में बने एल हेलिकॉएड नाम के मॉल की। आधुनिकता का प्रतीक मानी जाने वाली ये इमारत आसपास की झुग्गियों के बीच सिर ऊंचा किए हुए नजर आती है। इस मॉल को कभी यहां की आर्थिक समृद्धि और विकास के प्रतीक के तौर पर बनाया गया था। आज ये मॉल देश की सबसे खतरनाक जेल में तब्दील हो चुका है। यही इमारत अब इस देश के मौजूदा संकट की मूक गवाह भी बनी हुई है। ये इमारत इतनी बड़ी है कि इसे कराकस शहर के किसी भी कोने से देखा जा सकता है।

70 साल पहले बना था ये मॉल
ये आधुनिक मॉल करीब 70 वर्ष पहले, 1950 के दशक में बना था। उस वक्त वेनेजुएला के पास तेल से आने वाली अकूत संपत्ति थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था उछाल पर थी और यहां के तानाशाह मार्कोस पेरेज जिमेनेज, वेनेजुएला को पूरी दुनिया में आधुनिकता की मिसाल बनाना चाहते थे। 1948 में वेनेजुएला में सैन्य शासन लगने के बाद ऐसी धारणा बन गई कि आधुनिक निर्माण के जरिए ही विकास की राह पर आगे बढ़ा जा सकता है।

इसलिए सबसे आधुनिक मॉल था
इस मॉल को वेनेजुएला के सबसे बड़े व्यावसायिक केंद्र के तौर पर बनाया गया था। यहां 300 से अधिक दुकानें थीं और पूरे मॉल में तकरीबन चार किलोमीटर लंबा रैंप बना था। इस रैंप के जरिए लोग अपनी कार से मॉल की सबसे ऊपरी मंजिल तक शॉपिंग करने जा सकते थे। साथ ही इसमें अत्याधुनिक तकनीक के होटल, थिएटर और ऑफिस भी बनाए जाने थे। गुंबदाकार इस इमारत में उस वक्त हैलिपैड और खास तरह की लिफ्ट लगाई गई थीं।

सुनसान खंडहर से बना डरावनी जगह
इससे पहले की ये आधुनिक मॉल मूर्त रूप ले पाता, वर्ष 1958 में पेरेज जिमेनेज की सत्ता बदल गई और योजना अधूरी रह गई। बीबीसी की एक रिपोर्ट में ‘डाउनवार्ड स्पाइरलः एल हेलिकॉएड्स डिसेंट फ्रॉम मॉल टू प्रिजन’ की सह लेखिका और यूके के एसैक्स विश्वविद्यालय में लैटिन अमरीकन स्टडीज की निदेशक डॉ लीजा ब्लैकमोर के अनुसार आधुनिकता के इस सपने (आधुनिक मॉल) में काफी पैसा लगाया गया था। ये इमारत वास्तुकला का शानदार नमूना है और उस वक्त पूरे लातिन अमरीका में ऐसी कोई दूसरी इमारत नहीं थी।

सत्ता परिवर्तन के बाद ये मॉल वर्षों तक सुनसान खंडहर की तरह पड़ा रहा। इसे फिर से मूर्त रूप देने के लिए कई बार प्रयास किया गया, लेकिन सब नाकाम साबित हुआ। इसके बाद 1980 के दशक में सरकार ने खाली पड़े एल हेलिकॉएड में सरकारी ऑफिस खोलने की योजना बनाई। इसके साथ ही यहां पर बोलिवारियन इंटेलिजेंस सर्विस (सेबिन) का भी ऑफिस खोल दिया गया। यहीं से इस इमारत के भयावह बनने की कहानी शुरू होती है।

ऐसे बना सबसे खतरनाक यातना केंद्र
बोलिवारियन इंटेलिजेंस सर्विस का ऑफिस खुलने के बाद ये आधुनिक मॉल दुनिया का सबसे खतरनाक यातना केंद्र (जेल) बन गया। यहां साधारण कैदियों और राजनैतिक कैदियों को न केवल रखा जाता है, बल्कि उन्हें ऐसी यातनाएं दी जाती हैं जो सुनने वालों की भी रूह कंपा देती है। इसके बाद लोग इसे एक ऐसी डरावनी जगह मानने लगे, जहां लोग सपने में भी जाने की नहीं सोच सकते थे।

पूर्व कैदियों और पहरेदारों ने बताई दर्द भरी दास्तां
एल हेलिकॉएड कितनी डरावनी जगह और किस तरह का यातना केंद्र है, इसका अंदाजा यहां रह चुके कैदियों, उनके परिवारों, कानूनी सलाहकारों, एनजीओ और जेल के पुराने पहरेदारों के अनुभवों से लगाया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया के अनुसार मई 2014 में 32 वर्षीय मन्टिला को सरकार विरोधी प्रदर्शन में शामिल 3000 से ज्यादा अन्य राजनैतिक कैदियों के साथ इस यातना केंद्र में लाया गया था। उन पर सरकार विरोधी प्रदर्शन के लिए धन जुटाने का आरोप था। वह हमेशा इन आरोपों से इनकार करते रहे हैं। उन्होंने इस जेल में डर के साए में रहते हुए करीब ढाई साल बिताए हैं।

नर्क से कम नहीं थी ये सेल
मन्टिला के अनुसार वर्ष 2014 में जब वह एल हेलिकॉएड के यातना केंद्र में पहुंचे तो वहां केवल 50 कैदी थे। दो साल में कैदियों की संख्या 300 से ज्यादा हो गई थी। कैदियों की संख्या बढ़ने के साथ इमारत में खाली पड़े दफ्तरों, सीढ़ियों, शौचालयों समेत सभी जगहों की घेराबंदी की जाने लगी, ताकि ज्यादा से ज्यादा कैदी रखे जा सके। जेल कि इन सेल को अलग-अलग नाम दिए गए, जैसे फिस टैंक, लिटिल टाइगर और लिटिल हॉल आदि।इनमें सबसे डरावना कमरा था ग्वांतानामो। ये 12×12 मीटर का एक छोटा कमरा था, जिसमें 50 कैदी रखे जाते थे। पहले इस कमरे को साक्ष्य रखने के लिए प्रयोग में लाया जाता था। इस कमरे में न हवा आती थी, न रोशनी थी, न शौचालय, न साफ-सफाई और न ही कैदियों के सोने की जगह। इस सेल की दीवारें कैदियों के खून और मल से सनी हुई थीं। इस सेल में कैदियों को प्लास्टिक बोतल में पेशाब करना होता था और छोटे से प्लास्टिक बैग में मल करना होता था। उन्हें हफ्तों नहाने नहीं दिया जाता था। ग्वांतानामों सेल किसी नरक से कम नहीं थी।

ऐसी दी जाती थीं यातनाएं
एल हेलिकॉएड जेल में रह चुके एक अन्य कैदी ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया से बातचीत में बताया कि उनके मुंह को एक बैग से ढक दिया जाता था। इसके बाद उनकी बेरहमी से पिटाई होती थी। इस दौरान उनके सिर, गुप्तांगों और पेट में करंट लगाया जाता था। इसकी पीड़ा बर्दाश्त से बाहर होती थी। हर दिन आखिरी दिन की तरह लगता था। कई बार यहां कैदियों के सिर को ढक कर जेल के पहरेदार और अधिकारी बंदूक में एक गोली डालकर उसका भाग्य आजमाते थे। कई बार ये मल से भरा बैग कैदियों के सिर पर बांध देते थे। ऐसे में कैदी सांस तक नहीं ले पाता था। यहां अमानवीय यातनाओं के ऐसे तरीके अपनाए जाते थे, जिनके बारे में सोचना या यकीन करना भी मुश्किल है। जेल के पूर्व पहरेदारों ने भी अंतरराष्ट्रीय मीडिया से बातचीत में इस तरह की यातनाओं की पुष्टि की है।

मन्टिला को तड़पा-तड़पा कर मारना चाहते थे
मन्टिला के अनुसार एल हेलिकॉएड में ढाई साल बिताने के बाद अक्टूबर 2016 में वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। सर्जरी के लिए उन्हें दूसरी जेल में भेज दिया गया। बावजूद सेबिन के अधिकारी मन्टिला को अस्पताल से घसीट कर ले आए और फिर से एल हेलिकॉएड के एक एकांत कमरे में फेंक दिया। वह उस कमरे में अकेले थे। उनसे कहा गया था कि वह कभी रिहा नहीं किए जाएंगे। मन्टिला के अनुसार जेल अधिकारी उन्हें तड़पा-तड़पा कर मारना चाहते थे, वो भी बिना किसी सजा और कानूनी सुनवाई के।

मन्टिला पर हुए जुल्मों का एक वीडियो किसी तरह इंटरनेट पर लीक हो गया। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने उनकी रिहाई की मांग शुरू कर दी। जल्द ही इसका असर भी देखने को मिला और उन्हें इलाज के लिए एक सैन्य अस्पताल में भर्ती करा दिया गया, जहां उनका ऑपरेशन हुआ। इसके बाद नवंबर 2016 में उन्हें रिहा किया गया। जेल से रिहाई के बाद मन्टिला कांग्रेसमैन के रूप में राजनीति में सक्रिय हो गए। साथ ही उन्होंने एल हेलकॉएड में होने वाली यातनाओं के खिलाफ गवाही देनी शुरू कर दी।

जेल से छूटने के बाद भी मन्टिला खुद को वेनेजुएला में कभी सुरक्षित महसूस नहीं करते थे। लिहाजा, जुलाई 2017 में वह वेनेजुएला छोड़ फ्रांस जा बसे। वह अब भी वेनेजुएला की गतिविधियों पर नजर रखते हैं और इस उम्मीद में जी रहे हैं कि एक दिन वहां हालात सामान्य होंगे और वह वापस अपने वतन लौट सकेंगे। उनकी तरह इस खतरनाक जेल से छूटने वाले कई और कैदी भी वेनेजुएला छोड़कर दूसरे देशों में शरण ले चुके हैं।

इसलिए एक मॉल बना डर का केंद्र
अंतरराष्ट्रीय मीडिया से बातचीत में जेल के एक पूर्व पहरेदार, जो कि मन्टिला को अच्छी तरह से जानते हैं का कहना है कि उन्हें उस जेल में होना ही नहीं चाहिए था। उन्हें गलत तरह से पकड़ा गया था, ये बात सभी जानते थे। इस पूर्व पहरेदार के अनुसार उस वक्त अधिक से अधिक लोगों को पकड़कर इस जेल में रखने की एक मुहिम सी चलाई गई थी। इसका मकसद था, लोगों के दिलों में डर बैठाना। सरकार इसमें सफल भी रही, क्योंकि अब वेनेजुएला में बहुत से लोग सरकार विरोधी प्रदर्शनों में इस डर से हिस्सा नहीं लेते, क्योंकि उन्हें गिरफ्तार कर उस यातना केंद्र में रखे जाने का भय होता है।

एल हेलिकॉएड के लिए ये अव्यवस्था का वक्त था, जो अब भी बरकरार है। उस वक्त यहां बसों में भर-भर कर सैकड़ों की संख्या में राजनैतिक कैदी लाए जाते थे। इनमें छात्र, राजनीतिक कार्यकर्ता से लेकर आम लोग तक सब शामिल थे। कई बार इन लोगों को केवल इसलिए गिरफ्तार कर लिया जाता था, क्योंकि ये गलत वक्त पर गलत जगह मौजूद थे। यहां आने वाले कैदियों को सुनवाई के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता था। इस जेल के पूर्व पहरेदार बताते हैं कि सेबिन का मुख्य काम खुफिया जानकारी एकत्र करना था, लेकिन काफी वक्त तक यह एजेंसी अपनी भूमिका निभाने की जगह, सत्ता को बचाने में लगी रही।

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