पाक में अल्पसंख्यकों पर निशाना बनाने के लिए ईशनिंदा कानून का दुरुपयोग, मानवाधिकार कार्यकर्ता ने उठाया मुद्दा
पाकिस्तान लंबे समय से विविधता को स्वीकार करने के लिए संघर्ष कर रहा है। देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए अक्सर ईशनिंदा कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है। अल्पसंख्यक अधिकारों की वकालत करने वाले नेशनल कमीशन फार जस्टिस एंड पीस के आंकड़ों के अनुसार 2022 में पाकिस्तान में चौंकाने वाले 253 लोगों पर ईशनिंदा का आरोप लगाया गया था।
By AgencyEdited By: Sonu GuptaUpdated: Mon, 28 Aug 2023 03:00 AM (IST)
इस्लामाबाद, एएनआई। पाकिस्तान लंबे समय से विविधता को स्वीकार करने के लिए संघर्ष कर रहा है। देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए अक्सर ईशनिंदा कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है।
हाल ही में फैसलाबाद के जारनवाला में भीड़ ने जमकर उत्पात मचाया। वहां भीड़ ने चर्चों में आग लगा दी, जिसके कारण पूरा चर्च राख में तब्दील हो गया। साथ ही वहां के ईसाइयों के घरों में भी आग लगा दी। कथित तौर पर आरोप था कि वहां पवित्र पुस्तक कुरान को अपवित्र किया गया था।
मानवाधिकार कार्यकर्ता साइमा विलियम ने क्या कहा?
डान के एक संपादकीय में मानवाधिकार कार्यकर्ता साइमा विलियम लिखती हैं कि जरनवाला घटना उस दुखद घटना के दो साल बाद हुई, जिसमें ईशनिंदा के आरोपित एक श्रीलंकाई व्यक्ति को सियालकोट में भीड़ ने पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दिया था। इन घटनाओं के लिए चिंता के कारणों पर प्रकाश डालते हुए साइमा ने लिखा कि यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि अल्पसंख्यक समुदाय का कोई भी व्यक्ति पवित्र कुरान का अपमान करने के बारे में कभी नहीं सोचेगा।साल 2022 में 253 लोगों पर लगे ईशनिंदा के आरोप
डान की रिपोर्ट के अनुसार, अल्पसंख्यक अधिकारों की वकालत करने वाले नेशनल कमीशन फार जस्टिस एंड पीस के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में पाकिस्तान में चौंकाने वाले 253 लोगों पर ईशनिंदा का आरोप लगाया गया था। उनमें तीन ईसाई थे, साथ ही 48 अहमदी, 196 मुस्लिम, एक हिंदू और पांच अज्ञात लोग थे।
स्थायी भय पैदा करती है भीड़ की हिंसा
उन्होंने लिखा कि हमारी कानूनी व्यवस्था में खामियों का फायदा उठाकर अपराधी अक्सर व्यक्तिगत हमलों के बजाय भीड़ के हमलों को प्राथमिकता देते हैं। इस तरह के हमले पाकिस्तान की व्यवस्था की कमजोरी को उजागर करता है। भीड़ द्वारा हमले की रणनीति का उपयोग अपराधियों को सुरक्षा का स्थान देता है। भीड़ की हिंसा स्थायी भय पैदा करती है, जिससे आरोपित अपने घरों के अंदर फंस जाते हैं।पाकिस्तान में बढ़ी हिंसा
उन्होंने लिखा कि जब से पाकिस्तान ने ईशनिंदा को गंभीर अपराध बनाया है, धार्मिक रूप से प्रेरित हिंसा की आवृत्ति बढ़ गई है, जो अफसोस की बात है। धार्मिक और सांप्रदायिक अल्पसंख्यक समूहों के खिलाफ हिंसा, असहिष्णुता और शत्रुता बढ़ रही है और इसमें तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है।