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पहले से कितना बदला तालिबान, कैसा होगा अफगानिस्‍तान का भविष्‍य, जानें क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ

क्‍या वाकई तालिबान ने अपनी आतंकी और क्रूर छवि को बदल दी है। तालिबान पहले की तुलना में कितना बदला है और आने वाले वक्‍त में अफगानिस्‍तान में परिस्‍थ‍ितियां कैसी होंगी। आइए जानते हैं इस मसले पर क्‍या है विशेषज्ञों की राय...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Updated: Tue, 31 Aug 2021 12:22 AM (IST)
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आने वाले वक्‍त में अफगानिस्‍तान में परिस्‍थ‍ितियां कैसी होंगी। आइए जानते हैं इस मसले पर क्‍या है विशेषज्ञों की राय...
काबुल, एजेंसियां। अफगानिस्‍तान की सत्‍ता पर बंदूकों की नोक पर कब्‍जा जमाने के बाद तालिबान विश्‍व समुदाय के सामने अपनी छवि को चमकाने की कोशिशों में जुटा हुआ है। वह दुनिया के समाने अपने भीतर आए बदलावों की दुहाई दे रहा है। वह भारत समेत दुनिया के तमाम मुल्‍कों से दोस्‍ताना ताल्‍लुकात बनाने की बातें कह रहा है। ऐसे में देखना जरूरी हो जाता है कि क्‍या वाकई तालिबान ने अपनी आतंकी और क्रूर छवि को बदल दी है। तालिबान पहले की तुलना में कितना बदला है और आने वाले वक्‍त में अफगानिस्‍तान में परिस्‍थ‍ितियां कैसी होंगी। आइए जानते हैं इस मसले पर क्‍या है विशेषज्ञों की राय...

नहीं बदला तालिबान की हिंसक चेहरा 

समाचार एजेंसी एएनआइ के मुताबिक विशेषज्ञों का स्‍पष्‍ट तौर पर कहना है कि तालिबान भले ही दुनिया के सामने अपनी अच्‍छी तस्‍वीर को पेश करने की कोशिशें कर रहा है लेकिन काबुल एयरपोर्ट पर आतंकी हमले के खौफनाक दृश्य इस बात की तस्‍दीक करते हैं कि यह आतंकी समूह अपनी पुरानी कट्टरपंथी और हिंसक मानसिकता के साथ एकबार फि‍र अफगानिस्‍तान की सत्‍ता पर वापस आ गया है। लेखक सर्जियो रेस्टेली कहते हैं कि एक तस्वीर जिसमें तालिबान का एक प्रवक्ता स्थानीय टीवी की एक महिला रिपोर्टर को साक्षात्कार दे रहा है... दुनिया के सामने केवल छवि गढ़ने की कवायद भर है।

दुनिया देख रही कारिस्‍तानी 

पाकिस्तानी इस्लामी स्कूलों में कट्टरपंथियों द्वारा प्रशिक्षित तालिब महिला अधिकारों को लेकर अब भी उदार नहीं हैं। ना ही इनकी दिलचस्‍पी 'पख्तून कोड ऑफ ऑनर' का सम्मान करने में है। अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात के हिमायती ये आतंकी खुलेआम समझौतों का उल्लंघन कर रहे हैं। दो साल पहले दोहा में हस्ताक्षरित 'शांति समझौते' को दरकिनार करना इस बात की गवाही दे रहा है कि आतंकी अपने हिंसक रास्ते पर लौट आए हैं। रेस्टेली कहते हैं कि पाकिस्‍तान ने तालिबान के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसे नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

तालिबान का गठन आइएसआइ की साजिश

दरअसल तालिबान का गठन ही आइएसआइ की एक सो‍ची समझी साजिश का हिस्‍सा है। बाकौल रेस्टेली इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए ही पाकिस्‍तान ने रणनीतिक योजना के तहत तालिबान को काबुल में बैठाया है। दुनिया जानती है और ऐसी कई रिपोर्टें हैं जो दावा करती हैं कि आईएसआई ने तालिबान के साथ अपने 'एजेंटों' को तैनात किया था। ये एजेंट अफगानिस्तान की सत्‍ता के अधिग्रहण में शामिल रहे हैं। इसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता है कि पिछले कार्यकाल में हिंसा तालिबान की बुनियादी वसूल थी।

तालिबान राज में खतरे में महिलाओं का भविष्‍य 

इनसाइड ओवर की रिपोर्ट कहती है कि काबुल में बिना रक्तपात के सत्ता का तथाकथित हस्तांतरण केवल दुनिया के सामने अच्छी छवि को चमकाने की कवायद के अलावा कुछ भी नहीं है। तालिबान ने 20 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद एकबार फि‍र अफगानिस्तान की सत्‍ता पर काबिज हुआ है। ऐसे में अफगानिस्‍तान में आने वाले वक्‍त में महिला अधिकारों को लेकर दुनियाभर में चिंता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें कोई संशय नहीं कि तालिबान के शासन में अफगान महिलाओं को अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ेगा। 

नई पीढ़ी देखने जा रही 1990 का दशक

पश्चिम में एक प्रमुख महिला पत्रिका फोर नाइन की रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्‍तान में महिलाएं तालिबान की दहशतगर्दी वाली सोच से डरी हुई हैं। इस रिपोर्ट में सुरक्षा और आतंकवाद विश्लेषक सज्जन गोहेल कहते हैं कि जिन अफगान महिलाओं से मैंने बात की है उनका जवाब अविश्वसनीय रूप से दर्दनाक है। आप उस पीढ़ी को देख रहे हैं जो केवल किताबों में तालिबान के बारे में पढ़ी है। अब इस पीढ़ी को महिला विरोधी सोच रखने वाले तालिबान के साथ रहना पड़ रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि हमने 1990 के दशक में जो कुछ भी देखा उसे एकबार फि‍र देखने जा रहे हैं।

दहशत में अफगानिस्‍तान की युवा पीढ़ी

इस मसले पर समाचार एजेंसी रायटर ने भी अपगान युवाओं से बात की। एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में स्‍पष्‍ट तौर पर कहा है कि अफगानिस्‍तान की सत्‍ता पर तालिबान के कब्‍जे के बाद से वहां की युवा पीढ़ी काफी डरी हुई है। तालिबान ने महिलाओं पर प्रतिबंधों की शुरुआत भी कर दी है। तालिबान ने फरमान जारी किया है कि किसी भी कालेज में लड़के और लड़कियां एक साथ नहीं पढ़ाई करेंगे। लड़कियों की कक्षाएं अलग लगाई जाएंगी। ऐसे में अफगानिस्‍तान में शिक्षा की स्थिति और ज्‍यादा खराब होने वाली है। युवाओं का कहना है कि बेहतर भविष्‍य को लेकर उनकी उम्‍मीदें जवाब देने लगी हैं...

अपने हक की मांग करने वाली महिलाओं पर संकट

वहीं समाचार एजेंसी ANI की एक अन्‍य रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद तालिबान अब ऐसी महिलाओं को पकड़ने की कोशिश कर रहा है जो समाज में महिला अधिकारों के लिए काम कर रही थीं। ऐसी ही महिला अधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार ने सायरा सलीम ने अपनी आपबीती बताई है। न्यूयार्क पोस्ट के अनुसार सायरा ने बताया कि पूर्व में वह महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ती रही हैं। अब तालिबान उन जैसी महिलाओं की सूची बनाकर उनको तलाश रहा है। पढ़ें यह रिपोर्ट- अधिकारों के लिए सक्रिय रहीं महिलाओं को तलाश रहा तालिबान