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जानिए पाकिस्तान के सेना प्रमुखों के बारे में, कोई ढाई महीने में हुआ रिटायर, तो कोई चीफ बनते ही हुआ गिरफ्तार

सरकार और प्रधानमंत्रियों के साथ अंदरूनी तौर पर मतभेद हों या प्रत्यक्ष समर्थन सेना प्रमुखों का नाम सैन्य मामलों के साथ-साथ राजनीति और सरकार से भी जुड़ा रहा है। जिनमे अय्यूब खान को सेना प्रमुख बनाने वाली घटना से लेकर और सेना प्रमुखों का नाम भी विवादों में आता हैं।

By Shashank MishraEdited By: Shashank MishraUpdated: Sun, 05 Feb 2023 07:46 PM (IST)
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जनरल की नियुक्ति पाकिस्तान के इतिहास में हमेशा से विवादों में घिरा रहा हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का लंबी बीमारी के चलते निधन हो गया है। उन्होंने आज, रविवार को दुबई के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। परवेज मुशर्रफ ने 79 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। मुशर्रफ पाकिस्तान की सेना के प्रमुख भी रह चुके थे और उनकी नियुक्ति भी पाकिस्तान के इतिहास की एक बड़ी और विवादों से भरी घटना रही है।

पाकिस्तान में सेना प्रमुख की नियुक्ति के महत्व का अंदाजा पिछले एक साल में इस मुद्दे पर हुई बहस और राजनीतिक नेताओं द्वारा दिए गए बयानों से लगाया जा सकता है। जनरल की नियुक्ति के लिए पाकिस्तान के इतिहास पर अगर नजर डालें तो थल सेनाध्यक्षों की नियुक्तियां और कार्यकाल अक्सर विवादों में घिरे रहे हैं। पाकिस्तानी सेना के पहले 'स्थानीय' कमांडर-इन-चीफ और फील्ड मार्शल अय्यूब खान से लेकर जनरल कमर जावेद बाजवा तक, लगभग सभी सेना प्रमुख किसी न किसी तरह के विवाद में जरूर उलझे हैं।

सेना के जनरल बने बिना, बने पाकिस्तान के सेना प्रमुख

सरकार और प्रधानमंत्रियों के साथ अंदरूनी तौर पर मतभेद हों या प्रत्यक्ष समर्थन, सेना प्रमुखों का नाम सैन्य मामलों के साथ-साथ राजनीति और सरकार से भी जुड़ा रहा है। जिनमे अय्यूब खान को सेना प्रमुख बनाने वाली घटना से लेकर, एक ऐसे सेना प्रमुख का भी जिक्र मौजूद है जो जनरल नहीं बने, लेकिन सेना प्रमुख बन गए।

वह घटना जिसने अय्यूब खान को सेना का प्रमुख बना दिया

12 दिसंबर, 1950 को लाहौर से उड़ान भरने वाला एक निजी विमान अपनी मंजिल (कराची) से लगभग 65 मील दूर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, उस विमान में सवार 26 लोगों में से कोई भी जिदा नहीं बच सका था। हालांकि, इन 26 लोगों में दो ऐसे लोग शामिल थे जिनकी मौत ने पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास का रुख बदल दिया था। वे थे मेजर जनरल मोहम्मद इफ्तिखार खान और ब्रिगेडियर शेर खान। मेजर जनरल इफ्तिखार सर्विस के लिहाज से अय्यूब खान से एक साल जूनियर थे, लेकिन उन्हें प्रोमोशन पहले मिला और लाहौर में डिवीजन की कमान सौंपी गई थी।

मेजर जनरल इफ्तिखार को पाकिस्तान के पहले स्थानीय कमांडर-इन-चीफ के पद के लिए चुन लिया गया था और इसलिए उन्हें इंपीरियल डिफेंस कोर्स के लिए ब्रिटेन भेजा जा रहा था। उनके साथ दुर्घटना में मारे गए ब्रिगेडियर शेर खान ने कश्मीर विवाद को लेकर पाकिस्तान और भारत के बीच हुए पहले युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी और सेना के बेहतरीन अधिकारियों में गिने जाते थे।

अय्यूब खान खुद अपनी किताब 'फ्रेंड्स नॉट मास्टर्स' में लिखते हैं कि जनरल इफ्तिखार एक अच्छे अफसर थे और आम धारणा यह थी कि ब्रिटेन उनका समर्थन करता है। मैं नहीं जानता कि वह कैसे कमांडर इन चीफ बनते है।

अय्यूब खान के मुताबिक, उन्हें गुस्सा बहुत जल्दी आता था

शुजा नवाज अपनी किताब 'क्रॉस्ड स्वॉर्ड्स' में लिखते हैं जिस दिन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने मेजर जनरल इफ्तिखार को कमांडर इन चीफ के पद की जानकारी दी, उस दिन वे उनके साथ थे। मेजर जनरल शेर अली खान पटौदी के अनुसार, अय्यूब खान ने इस फैसले के बाद उनसे यह इच्छा जाहिर की कि वह जनरल इफ्तिखार से मिलना चाहेंगे क्योंकि वे कमांडर इन चीफ बनने वाले हैं।

शेर अली खान के अनुसार, जनरल इफ्तिखार एक शांत स्वाभाव के होशियार व्यक्ति थे जो इस फैसले के बाद खुश होने के बजाय परेशान दिख रहे थे। हालांकि, विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु के बाद, अय्यूब खान को कमांडर-इन-चीफ नियुक्त किया गया और आखिरकार देश के राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचे, और उनके कार्यकाल के दौरान सात प्रधानमंत्री बदले गए।

याहया खान पाकिस्तान के सैन्य और राजनीतिक इतिहास में एक विवादास्पद इंसान रहे हैं। उन्हें पूर्वी पाकिस्तान के अलगाव और 1971 के युद्ध में भारत से हुई हार के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। हालांकि, 16 दिसंबर, 1971 को ढाका में पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के बाद, याहया खान देश के राष्ट्रपति और सेना के कमांडर इन चीफ बने रहे।

'क्रॉस्ड स्वॉर्ड्स' में शुजा नवाज लिखते हैं कि 17 दिसंबर को जब यह खबर फैली कि याहया खान नया संविधान लाने की तैयारी कर रहे हैं तो सैन्य अधिकारियों में कड़ी प्रतिक्रिया हुई। इन अफसरों में गुजरांवाला में मौजूद ब्रिगेडियर फारुख बख्त अली भी शामिल थे। 'कंडक्ट इन बीकमिंग' में बख्त अली लिखते हैं कि 17 दिसंबर को मैं अपना इस्तीफा लिख चुका था लेकिन जब हमें 18 दिसंबर को पता चला कि याहया खान का इस्तीफा देने का कोई इरादा नहीं है तो हम हैरान रह गए।

उनके अनुसार, जब कई अन्य अधिकारियों ने भी संपर्क किया, तो 'मैंने अपने डिवीजन कमांडर को मनाने की कोशिश की कि वो जीएचक्यू में उच्च अधिकारियों को यह संदेश भिजवायें कि याहया खान को इस्तीफा देकर सत्ता सिविल राजनेताओं को हस्तांतरित कर देनी चाहिए। अगले दिन, यानी 19 दिसंबर को ब्रिगेडियर एफबी अली ने दो अधिकारियों को यह संदेश देकर जीएचक्यू भेजा कि याहया खान और उनके करीबी जनरल जो हार के लिए जिम्मेदार हैं, रात आठ बजे तक इस्तीफा दे देंगे।

वास्तव में यह सेना के भीतर एक प्रकार का विद्रोह था

शुजा नवाज ने अपनी किताब में लिखा है कि इस संदेश के बाद सेना के आलाकमान में हड़कंप मच गया था और याहया खान के करीबी सहयोगी और मेजर जनरल मिट्ठा ने एसएसजी से संपर्क किया ताकि इस्लामाबाद की ओर आने वाले सैन्य काफिले को किसी तरह रोका जा सके। शुजा नवाज लिखते हैं कि मेजर जनरल मिट्ठा ने ब्रिगेडियर एफबी अली को फोन किया और पूछा कि क्या याहया खान की जगह जनरल अब्दुल हमीद खान को कमांडर-इन-चीफ के रूप में स्वीकार कर लिया जायेगा, जिसका उन्होंने नही में जवाब दिया।

शुजा नवाज के अनुसार, अगले दिन जनरल हमीद ने जीएचक्यू में मौजूद अधिकारियों को इकठ्ठा किया ताकि यह अंदाजा लगाया जा सके कि क्या वह याहया खान की जगह स्वीकार्य होंगे, लेकिन सैन्य अधिकारियों ने वर्तमान नेतृत्व पर पूर्ण अविश्वास व्यक्त किया। यह स्पष्ट करते हुए कि उनको भी जाना होगा।

जब याहया खान को स्थिति का एहसास हुआ, तो उन्होंने खुद कई अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन चीफ ऑफ जनरल स्टाफ जनरल गुल हसन और वायु सेना प्रमुख ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए मना लिया और इस तरह पाकिस्तान सेना के पांचवें कमांडर और देश के तीसरे राष्ट्रपति की सत्ता का सूर्य अस्त हो गया।

भुट्टो को मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर बनने का भी मिला था सम्मान

शुजा नवाज क्रॉस्ड स्वॉर्ड्स में लिखते हैं कि याहया खान ने बाद में लाहौर हाई कोर्ट में एक मुकदमे के दौरान अपने जवाब में दावा किया कि ज़ुल्फिकार अली भुट्टो, जनरल गुल हसन खान और वायु सेना प्रमुख रहीम खान ने उनके खिलाफ उस समय साजिश रची थी जब भारत के साथ युद्ध के दौरान उन तीनों को उन्होंने चीन भेजा था।

कुछ साल बाद ब्रिगेडियर एफबी अली पर भुट्टो की नागरिक सरकार के तख्तापलट की साजिश रचने का मुकदमा चला था। और कोर्ट मार्शल करने वाले बोर्ड का नेतृत्व आने वाले समय में सेना प्रमुख बनने वाले जनरल जिया-उल-हक कर रहे थे।

कुछ साल बाद, ब्रिगेडियर एफबी अली कोट लखपत जेल में एकांत कारावास की सजा काट रहे थे। ज़ुल्फिकार अली भुट्टो ने असाधारण परिस्थितियों में पाकिस्तान की सत्ता संभाली। देश के दो टुकड़े हो गए थे और सेना को जनता के गुस्से का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में ज़ुल्फिकार अली भुट्टो को पाकिस्तान के पहले नागरिक मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर बनने का सम्मान भी मिला था।

इन असाधारण परिस्थितियों में उन्होंने असाधारण फैसले लिए, जिनमें से एक यह भी था कि पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार किसी लेफ्टिनेंट जनरल को सेना प्रमुख बनाया गया था।

यह गुल हसन खान थे जिन्होंने भुट्टो की सत्ता संभालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। गुल हसन खान पाकिस्तानी सेना के अंतिम कमांडर-इन-चीफ थे, जिसकी वजह यह थी कि बाद में इस पद का नाम बदलकर चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ कर दिया गया था। हालांकि, यह मामला भी विवादास्पद है कि उन्हें लेफ्टिनेंट जनरल की रैंक पर होते हुए सेना प्रमुख क्यों नियुक्त किया गया था।

इस प्रकार वह न केवल लेफ्टिनेंट जनरल की रैंक के साथ सेना प्रमुख बनने वाले पहले अधिकारी बने, बल्कि एक नागरिक शासक द्वारा समय से पहले बर्खास्त किए जाने वाले पहले सेना प्रमुख भी बने। गुल हसन खान के नाम यह रिकार्ड भी है कि वो पाकिस्तान आर्मी के सबसे कम समय तक सेवा देने वाले प्रमुख हैं, जिनका कार्यकाल केवल ढाई महीने का था। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को घर भेजने वाले सेना प्रमुख जिन्होंने एक्सटेंशन को ठुकरा दिया था।

जनरल आसिफ नवाज जंजुआ, जिन्होंने गुल हसन के बाद थोड़े समय के लिए पाकिस्तानी सेना का नेतृत्व किया, उन्होंने सेना प्रमुख के रूप में केवल एक वर्ष और पांच महीने का समय बिताया। ड्यूटी पर रहते हुए ही 8 जनवरी, 1993 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई थी। यह देश में राजनीतिक कशमकश का दौर था और प्रत्यक्ष रूप से सैन्य हस्तक्षेप की अफवाहें अपनी बुलंदी पर थी। नवाज शरीफ प्रधानमंत्री थे और गुलाम इसहाक खान देश के राष्ट्रपति थे।

अब्दुल वहीद काकड़ पर मार्शल लॉ लगाने का था बहुत दबाव

जनरल आसिफ नवाज के भाई शुजा नवाज अपनी किताब में लिखते हैं कि गुलाम इसहाक खान लेफ्टिनेंट जनरल फारुख खान को सेना प्रमुख बनाना चाहते थे लेकिन नवाज शरीफ इसके पक्ष में नहीं थे। लेफ्टिनेंट जनरल अब्दुल वहीद काकड़ क्वेटा कोर की कमान संभाल रहे थे. ब्रायन क्लाफले ने अपनी किताब 'पाकिस्तान आर्मी: ए हिस्ट्री ऑफ वॉर एंड इंसरेक्शन्स' में लिखा है कि अब्दुल वहीद काकड़ को लगा कि यह उनकी आखिरी पोस्टिंग है और वह रिटायर होकर घर जाने की तैयारी कर रहे थे।

हालांकि राष्ट्रपति गुलाम इसहाक खान और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच मतभेदों के बाद सेना के नेतृत्व के लिए लॉटरी में उनका नाम निकला। शुजा नवाज क्रॉस्ड स्वॉर्ड्स में लिखते हैं कि जनरल अब्दुल वहीद काकड़ पर मार्शल लॉ लगाने का बहुत दबाव था लेकिन वह देश में राजनीतिक तनाव का राजनीतिक समाधान खोजना चाहते थे।

देश के राष्ट्रपति के पास संविधान के आठवें संशोधन के तहत विधानसभा को भंग करने का अधिकार था, जिसका गुलाम इसहाक खान बेनजीर भुट्टो के पहले प्रधानमंत्री पद को समाप्त करने के लिए एक बार इस्तेमाल कर चुके थे। जब 1993 में उन्होंने नवाज शरीफ की सरकार के खिलाफ दूसरी बार इस अधिकार का इस्तेमाल किया, तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे अवैध घोषित कर दिया और नवाज शरीफ की सरकार बहाल हो गई।

शुजा नवाज लिखते हैं कि अदालत के इस फैसले के बाद नवाज शरीफ ने पंजाब में पीपुल्स पार्टी की सरकार को गिराने के लिए रेंजर्स की मदद लेने की कोशिश की, लेकिन सेना प्रमुख जनरल अब्दुल वहीद ने उनका रास्ता रोक दिया।

शुजा नवाज के अनुसार, जनरल अब्दुल वहीद काकड़ ने देश में बढ़ते तनाव के संदर्भ में, राष्ट्रपति गुलाम इसहाक खान और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को इस्तीफा देने के लिए राजी किया ताकि नए चुनाव हो सकें, जिसके नतीजे में बेनजीर भुट्टो की दूसरी सरकार बनी। वह तीन साल पूरे करने के बाद पद छोड़ने वाले पहले सेना प्रमुख थे।

वह दुर्घटना जिसके कारण असलम बेग सेना प्रमुख बने

17 अगस्त 1988 का दिन था जब पाकिस्तान के वाइस चीफ ऑफ स्टाफ जनरल असलम बेग विमान में बैठकर ऊपर से घटना स्थल का दौरा कर रहे थे। असलम बेग अपनी आत्मकथा 'इक्तिदार की मजबूरियां' में लिखते हैं कि 'सामने धुंआ दिखाई दे रहा था, अगले ही पल हमारा विमान उसके नजदीक पहुंच गया था। वहां एक हेलीकॉप्टर भी उतर रहा था, हेलीकॉप्टर के पायलट से संपर्क किया गया तो उसने बताया कि 'पाकिस्तान वन' (C130) दुर्घटनाग्रस्त हो गया है और कोई दिखाई नहीं दे रहा है। ऐसे हालात में मुझे अहम फैसला करना था। अगर मैं दुर्घटनास्थल पर पहुंच भी जाता, तो भी मैं कुछ नहीं कर सकता था।

इसलिए मैंने पायलट से सीधे रावलपिंडी चलने को कहा। यह वह जगह थी जहां कुछ समय पहले सी-130 विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था जिसमें पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक सहित अन्य लोग भी सवार थे। असलम बेग कहते हैं, 'जब जीएचक्यू से संपर्क किया गया तो वहां स्थिति शांत थी। फॉर्मेशंस को रेड अलर्ट का आदेश दिया गया और अगले आदेश का इंतजार करने के लिए कहा गया, मेरे साथ विमान में बैठे अधिकारी मुझे देख रहे थे और मैं गहरी सोच में डूबा हुआ था।

मुझे फैसला करना था कि सत्ता अपने हाथ में लेनी है या उसे देनी है जिसका हक है। और फिर एक विमान दुर्घटना में जिया-उल-हक की मौत के बाद जनरल असलम बेग सेना के प्रमुख बने। जनरल जिया की मृत्यु और असलम बेग के सेना प्रमुख बनने के तीन घंटे के भीतर, संविधान बहाल हो चुका था, सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया शुरू हुई जिसे 90 दिनों में पूरा किया जाना था।

1999 के आखिर में 12 अक्टूबर को नवाज शरीफ ने एक दिन अचानक तत्कालीन आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जियाउद्दीन को अचानक प्रधानमंत्री आवास बुलाया और उन्हें बताया कि उन्हें सेना प्रमुख बनाने का फैसला हो चुका है। उनको नवाज शरीफ ने तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल मुशर्रफ की इच्छा के विरुद्ध आईएसआई प्रमुख बनाया था और यह माना जाता था कि वह नवाज शरीफ के काफी करीबी थे।

हालांकि, खुद जनरल जियाउद्दीन के मुताबिक वह नवाज शरीफ से पहली बार तभी मिले थे, जब उनका आईएसआई प्रमुख के लिए इंटरव्यू हुआ था। उनके दावे अपनी जगह हैं, लेकिन 12 अक्टूबर के दिन उनकी इस तरह अचानक हुई नियुक्ति पर सेना की प्रतिक्रिया ने लोकतंत्र की बिसात को लपेट कर ही रख दिया था।

एक ओर प्रधानमंत्री आवास में जनरल जियाउद्दीन को प्रधानमंत्री के सैन्य सचिव की वर्दी से बैज उतार कर लगाये गए, वहीं दूसरी ओर तत्कालीन सेना प्रमुख के करीबी जनरल हरकत में आ गए, जो खुद उस समय श्रीलंका से पाकिस्तान लौट रहे थे।

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जनरल मुशर्रफ से पहले सेना प्रमुख जनरल जहांगीर करामत भी नवाज शरीफ से मतभेदों के कारण कार्यकाल पूरा होने से कुछ समय पहले ही इस्तीफा दे चुके थे।

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