Move to Jagran APP

Pakistan: पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने 44 साल बाद मानी अपनी गलती, ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा - भुट्टो के साथ न्‍याय नहीं हुआ

सैन्य तानाशाह जनरल मुहम्मद जिया-उल हक द्वारा भुट्टो को सत्ता से हटाए जाने के दो साल बाद फांसी दी गई थी। उल्लेखनीय है कि साल 2011 में तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने अपने ससुर जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी को हत्या बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति ईसा ने चीफ जस्टिस बनने के बाद 2023 में इस मुकदमे पर सुनवाई शुरू की।

By Jagran News Edited By: Siddharth Chaurasiya Updated: Wed, 03 Apr 2024 12:30 AM (IST)
Hero Image
पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी को उनकी मौत के 44 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने गलत ठहराया है।
इस्लामाबाद (पाकिस्तान)। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी को उनकी मौत के 45 साल बाद पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने गलत ठहराया है। पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को हत्या के एक मामले में निष्पक्ष सुनवाई नहीं दी गई, जिसके कारण 44 साल पहले उन्हें फांसी दे दी गई थी।

मुख्य न्यायाधीश काजी फैज ईसा ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के संस्थापक को दी गई मौत की सजा से संबंधित राष्ट्रपति के संदर्भ की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत की नौ सदस्यीय पीठ की सर्वसम्मति वाली इस राय की जानकारी दी। 12 साल पहले दायर एक राष्ट्रपति संदर्भ का जवाब देते हुए मुख्य न्यायाधीश काजी फैज ईसा ने कहा, "हमने नहीं पाया कि निष्पक्ष सुनवाई और उचित प्रक्रिया आवश्यकताओं को पूरा किया गया था।"

अल जज़ीरा के मुताबिक, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के संस्थापक भुट्टो को सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की हत्या की साजिश रचने का दोषी पाए जाने के दो महीने बाद चार अप्रैल, 1979 को रावलपिंडी की जेल में फांसी दे दी गई थी।

यह भी पढ़ें: Pakistan: खतरे में इमरान की बीवी की जान? खान ने लगाया बुशरा को खाने में जहर देने का आरोप

सैन्य तानाशाह जनरल मुहम्मद जिया-उल हक द्वारा भुट्टो को सत्ता से हटाए जाने के दो साल बाद फांसी दी गई थी। उल्लेखनीय है कि साल 2011 में तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने अपने ससुर जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी को हत्या बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति ईसा ने चीफ जस्टिस बनने के बाद 2023 में इस मुकदमे पर सुनवाई शुरू की।

बहरहाल, शीर्ष अदालत के सर्वसम्मत फैसले से बुधवार को आसिफ अली जरदारी द्वारा दायर संदर्भ पर एक साल लंबी सुनवाई समाप्त हो गई, जिन्होंने 2011 में देश के राष्ट्रपति के रूप में अदालत से पूछा था कि क्या भुट्टो की हत्या के मुकदमे में "उचित प्रक्रिया और निष्पक्ष सुनवाई का पालन किया गया।"

जरदारी भुट्टो की बेटी और दो बार प्रधानमंत्री रहीं बेनजीर भुट्टो के पति हैं, जिनकी 2007 में एक राजनीतिक रैली के दौरान हत्या कर दी गई थी। भुट्टो की फांसी की निंदा पाकिस्तान के अधिकांश कानूनी विशेषज्ञों ने एक सैन्य शासन के इशारे पर की गई "न्यायिक हत्या" के रूप में की थी।

ईसा ने अपने फैसले में कहा कि देश के न्यायिक इतिहास में अतीत में ऐसे मामले सामने आए हैं जिन्होंने एक सार्वजनिक धारणा बनाई कि या तो भय या पक्षपात न्यायपालिका के प्रदर्शन को बाधित करता है।

यह भी पढ़ें: पाकिस्तान के पूर्व पीएम इमरान खान को मिली बड़ी राहत, पत्नी के साथ इस केस में 14 साल जेल की सजा हुई निलंबित

उन्होंने कहा, "इसलिए हमें आत्मजवाबदेही की भावना के साथ विनम्रता के साथ अपने अतीत के गलत कदमों और अचूकता का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए और यह सुनिश्चित करने की हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण होना चाहिए कि न्याय कानून के प्रति अटूट, अखंडता और निष्ठा के साथ काम करेगा।"

फैसला सुनाए जाने के समय भुट्टो के पोते भुट्टो जरदारी अदालत में मौजूद थे। उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, "हमारे परिवार ने इन शब्दों को सुनने के लिए 3 पीढ़ियों का इंतजार किया है।" उन्होंने अदालत के बाहर संवाददाताओं से भी बात की और कहा कि अदालत का विस्तृत फैसला आने पर वह औपचारिक बयान जारी करेंगे।

भुट्टो जरदारी ने कहा, "इस फैसले ने पाकिस्तान के लोगों के लिए अदालत में विश्वास रखना या यहां से न्याय प्राप्त करना मुश्किल बना दिया, खासकर अगर किसी (पूर्व) प्रधानमंत्री को न्याय नहीं मिला।