पाकिस्तान के पूर्व सैन्य अफसरों ने भारत व पाकिस्तान के बीच 1999 में हुए कारगिल युद्ध को अपने देश की एक रणनीतिक भूल करार दिया है। पूर्व कर्नल अशफाक हुसैन कहते हैं कि कारगिल में घुसपैठ एक बड़ी भूल और विफलता थी। यह पाकिस्तान के लिए आपदा साबित हुई। पूर्व कर्नल अशफाक हुसैन कहते हैं- कारगिल ऑपरेशन 1971 के आत्मसमर्पण से भी कहीं बड़ी भूल थी।
आइएएनएस, इस्लामाबाद। पाकिस्तान के पूर्व सैन्य अफसरों ने भारत व पाकिस्तान के बीच 1999 में हुए कारगिल युद्ध को अपने देश की एक रणनीतिक भूल करार दिया है। जिसे इसके साजिशकर्ता और पाकिस्तानी सैन्य तानाशाह दिवंगत जनरल परवेज मुशर्रफ ने सफलता की कहानी के रूप में सराहा था।
कारगिल में घुसपैठ थी बड़ी भूलः पूर्व कर्नल अशफाक हुसैन
पूर्व कर्नल अशफाक हुसैन कहते हैं कि कारगिल में घुसपैठ एक बड़ी भूल और विफलता थी। यह पाकिस्तान के लिए आपदा साबित हुई। इसने भारत व पाकिस्तान के बीच लाहौर शिखर सम्मेलन समझौते का भी उल्लंघन किया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया। यहां तक कि उसने अपने सैनिकों के शवों को भी स्वीकार नहीं किया। बाद में इन शवों को भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा दफनाया गया, जो पाकिस्तानी सेना के लिए अत्यंत अपमानजनक था।
गिने चुने कुछ वरिष्ठ सैन्य अफसरों ने लिया था निर्णय
उन्होंने कहा कि मई-जुलाई 1999 के दौरान हुआ कारगिल युद्ध पाकिस्तान के कुछ वरिष्ठ सैन्य अफसरों का निर्णय था। इन अधिकारियों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पूरी तरह से विश्वास में लिए बिना ही ऑपरेशन शुरू किया था। ऑपरेशन का मुख्य लक्ष्य कश्मीर और लद्दाख के बीच संपर्क काटना, राष्ट्रीय राजमार्ग-1 को बाधित करना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से पीछे हटने को मजबूर करना था।
साजिशकर्ताओं का मानना था कि यह ऑपरेशन भारत को पीछे हटने और इस्लामाबाद की शर्तों पर कश्मीर विवाद को सुलझाने के लिए बातचीत की मेज पर आने के लिए मजबूर करेगा।
एक तरफ पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय दबाव का सामना करना पड़ा और दूसरी तरफ चीन ने इस्लामाबाद के मन मुताबिक सहयोग नहीं किया। तत्कालीन पाक विदेश मंत्री सरताज अजीज के प्रयासों को भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समर्थन नहीं मिला। उस समय, जनरल मुशर्रफ ऑपरेशन का नेतृत्व कर रहे थे। उनकी टीम में चीफ आफ जनरल स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल अजीज खान, कमांडर 10 कोर लेफ्टिनेंट जनरल महमूद अहमद और फोर्सेज कमांडर उत्तरी क्षेत्र मेजर जनरल जावेद हसन शामिल थे। कारगिल ऑपरेशन कुछ सैन्य प्रमुखों के दिमाग की उपज थी।- अशफाक हुसैन, पूर्व कर्नल
जानते हुए भी अनजान बने रहे नवाज शरीफ
1999 में पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सैनिकों से पहले ही कारगिल, द्रास और बटालिक की रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चौकियों पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद भारतीय सेनाओं ने अपनी चौकियों पर दोबारा काबिज होने के लिए 'ऑपरेशन विजय' शुरू किया।
पाकिस्तानी सैन्य अफसरों को उम्मीद थी कि कारगिल की ऊंची चोटियों पर उसके कब्जे से भारतीय सेना सियाचिन से हट जाएगी और अंतरराष्ट्रीय समुदाय स्थिति को सामान्य करने के लिए हस्तक्षेप करेगा। इससे एलओसी पर पाकिस्तान को फायदा होगा।
शुरू में हमले से अनभिज्ञ होने का दावा करने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को इसकी जानकारी थी, लेकिन इसके परिणाम का उन्हें अंदाजा नहीं था। शरीफ का विचार रहा होगा कि यदि ऑपरेशन सही चलता है, तो वह कश्मीर के विजेता के रूप में इसे स्वीकार लेंगे। लेकिन योजना पर उनकी सीमित जानकारी और भारत की जवाबी आक्रामक रणनीति का सही आकलन नहीं होने के कारण शरीफ ने घटनाक्रम से अनजान बने रहना पसंद किया। पूर्व कर्नल अशफाक हुसैन कहते हैं, ''कारगिल ऑपरेशन 1971 के आत्मसमर्पण से भी कहीं बड़ी भूल थी।''
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