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पाकिस्‍तानी मीडिया ने अपने हुक्‍मरानों की ठोंकी पीठ, लोगों के सामने परोसे झूठ

UNSC की बैठक को लेकर पाकिस्‍तानी अखबार अपने मुल्‍क की जनता के सामने झूठ परोसने में लगे हुए हैं ताकि देश के हुक्‍मरानों की इज्‍जत नीलाम होने से बच सके।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Updated: Sat, 17 Aug 2019 03:05 PM (IST)
पाकिस्‍तानी मीडिया ने अपने हुक्‍मरानों की ठोंकी पीठ, लोगों के सामने परोसे झूठ
इस्‍लामाबाद, एजेंसियां। भारत और पाकिस्‍तान के बीच जारी तनाव के बीच जम्‍मू-कश्‍मीर के मसले पर शुक्रवार को हुई संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्‍थाई सदस्‍य देशों के प्रतिनिधियों की बैठक हुई। स्‍थाई सदस्‍य देश चीन की मांग पर बुलाई गई इस बैठक से पाकिस्‍तान ने काफी उम्‍मीदें लगा रखी थीं लेकिन वे चूर चूर हो गईं। इस बैठक में भारत और पाकिस्‍तान के बीच जारी तनाव को लेकर चिंता जताते हुए दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की गई। हालांकि, पाकिस्‍तान इस बैठक को अपनी जीत बता रहा है। पाकिस्‍तानी अखबार अपने मुल्‍क की जनता के सामने झूठ परोसने में लगे हुए हैं ताकि देश के हुक्‍मरानों की इज्‍जत नीलाम होने से बच सके।

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जनता की आंखों में झोंकी धूल 
पाकिस्‍तानी अखबार डॉन ने अपने मुल्‍क की जनता को खुश करने की कवायद के तहत लिखा है कि साल 1965 के बाद से पहली बार ऐसा हुआ है कि संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद ने जम्‍मू-कश्‍मीर के मसले पर बैठक की। डॉन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सुरक्षा परिषद ने कथित तौर पर भारत के उस दावे को अमान्‍य कर दिया कि जम्‍मू-कश्‍मीर पर हालिया फैसला उसका आंतरिक मामला है। हालांकि, सच्‍चाई यह है कि संयुक्‍त राष्‍ट्र में भारत के स्‍थाई प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने साफ कर दिया था कि जम्‍मू-कश्‍मीर भारत का अभिन्‍न अंग है और वहां का मसला भारत का अंदरूनी मामला है।

बैठक बुलाने को लेकर ठोंकी पीठ 
पाकिस्‍तानी अखबार द नेशन ने अपनी रिपोर्ट में मलीहा लोधी के हवाले से लिखा है कि सुरक्षा परिषद के सदस्‍य देशों ने 72 घंटे के भीतर ही पाकिस्‍तान की आवाज सुनी और सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाकर भारत की कोशिशों को झटका दिया है। द एक्‍सप्रेस ट्रिब्‍यून ने भी मलीहा लोधी के बयान को ही लीड स्‍टोरी के रूप में रखा है। अखबार ने लिखा है कि सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाया जाना ही इस बात का सुबूत है कि कश्मीर भारत का आंतरिक नहीं है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा है। मलीहा लोधी ने कल कहा था कि भारत ने इस बैठक के न होने को लेकर काफी कोशिशें की थी लेकिन हम इसे लेकर सुरक्षा परिषद के सदस्‍य देशों को मनाने में सफल रहे।

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रूस ने दिखाया आइना 
पाकिस्‍तानी अखबार डॉन का दावा है कि संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की बैठक में जम्‍मू-कश्‍मीर में मानवाधिकारों की स्थितियों और अनुच्‍छेद-370 को खत्‍म करने की एकतरफा कार्रवाई पर चिंता जताई गई। अखबार डॉन ने पाकिस्‍तानी राजदूत मलीहा लोधी के हवाले से लिखा है कि इस बैठक ने कश्मीर विवाद को दुनिया के सबसे प्रभावशाली पैनल के समक्ष एकबार फि‍र वापस ला दिया है। हालांकि सच्‍चाई यह है कि रूस जैसे स्‍थाई देश के स्‍थाई प्रतिनिधि दिमित्री पोलयांस्‍की ने साफ शब्‍दों में कहा है कि जम्‍मू-कश्‍मीर भारत का द्विपक्षीय मसला है। सदस्‍य देशों को यह बात बखूबी समझनी होगी की जम्‍मू-कश्‍मीर में नया क्‍या हुआ है। 

दावे हुए फुस्‍स, यह है सच्‍चाई 
इन सबके बीच सच्‍चाई यह है कि बंद दरवाजे में हुई इस बैठक को लेकर सुरक्षा परिषद की ओर से कोई बयान जारी नहीं किया गया था। पाकिस्‍तानी अखबार भले ही अपने हुक्‍मरानों की पीठ ठोकने में लगे हैं लेकिन यह बात जग जाहिर है कि पूरी दुनिया में पाकिस्‍तान की कहीं भी सुनवाई नहीं हो रही है। यहां तक कि संयुक्‍त राष्‍ट्र के महासचिव एंटोनियों गुतेरस यह पहले ही साफ कर चुके हैं कि जम्‍मू-कश्‍मीर का मसला भारत और पाकिस्‍तान को शिमला समझौते के अनुरूप ही निपटाना है। यहां तक कि रूस ने कल ही साफ कर दिया था कि जम्‍मू-कश्‍मीर के मसले को भारत और पाकिस्‍तान ही निपटाएंगे। रूस अपनी नीति में कोई बदलाव नहीं करेगा।

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चीन ने भी माना आतंकवाद का शिकार है भारत
इस बीच चीन द्वारा ‘वोकेशनल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग इन झिजियांग’ शीर्षक से तैयार एक श्वेतपत्र में चीन ने इस बात को स्वीकार किया है कि भारत आतंकवाद का शिकार है। चीन के स्टेट काउंसिल इंफॉरमेशन ऑफिस द्वारा जारी श्वेतपत्र में भारत को उन देशों की सूची में शामिल किया गया है जो आतंकी हमलों से प्रभावित हुए हैं। इसके मुताबिक, ‘1990 से आतंकवाद और चरमपंथ के वैश्विक प्रसार ने जमकर कहर बरपाया है। श्वेतपत्र के अनुसार, ‘विश्व शांति पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है और मानवता का भविष्य अंधकार में है।’

ये हैं सुरक्षा परिषद के सदस्य देश
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को दुनिया की सर्वाधिक शक्तिशाली संस्था माना जाता है। अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन इसके स्थायी सदस्य हैं। जबकि बाकी के दस अस्थायी सदस्यों को चुनाव के जरिये सीमित कार्यकाल के लिए चुना जाता है। इस समय बेल्जियम, जर्मनी, पोलैंड, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया, कुवैत, पेरू, इक्वेटोरियल गुयाना, डोमिनिकन रिपब्लिक और कोट डी आइवरी अस्थायी सदस्य हैं।