भगत सिंह की फांसी के 92 साल बाद पाकिस्तान में मची हलचल, केस को दोबारा खोलने पर लाहौर हाई कोर्ट ने जताई आपत्ति
लाहौर हाई कोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगत सिंह को 1931 में दी गई सजा का मामला फिर से खोलने और उन्हें मरणोपरांत सरकारी सम्मान दिए जाने की मांग करने वाली याचिका पर शनिवार को आपत्ति जताई है। दरअसल 23 मार्च 1931 को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध षडयंत्र रचने के आरोप में ब्रिटिश शासकों ने भगत सिंह उनके साथी राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी थी।
By AgencyEdited By: Shalini KumariUpdated: Sun, 17 Sep 2023 09:10 AM (IST)
लाहौर, प्रेट्र। लाहौर हाई कोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगत सिंह को 1931 में दी गई सजा का मामला फिर से खोलने और उन्हें मरणोपरांत सरकारी सम्मान दिए जाने की मांग करने वाली याचिका पर शनिवार को आपत्ति जताई है। कोर्ट का कहना है कि यह मामला सुनवाई के योग्य नहीं है।
वहीं, याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि वे भगत सिंह को सांडर्स हत्या मामले में निर्दोष प्रमाणित कराने के लिए अडिग हैं।
1931 में दी गई फांसी
दरअसल, 23 मार्च, 1931 को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध षडयंत्र रचने के आरोप में ब्रिटिश शासकों ने भगत सिंह, उनके साथी राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी थी। इस मामले में भगत सिंह को शुरू में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी, लेकिन बाद में एक मनगढ़ंत मामले में फांसी की सजा दी गई।यह भी पढ़ें: PM Modi 73rd Birthday: पीएम मोदी को जन्मदिन पर आप भी दे सकते हैं 'गिफ्ट', NaMo app के जरिए बस करना होगा ये काम
कई सालों से लंबित है मामला
याचिकाकर्ताओं में शामिल भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने कहा कि वरिष्ठ वकीलों के समूह की याचिका लाहौर हाई कोर्ट में एक दशक से लंबित थी। उन्होंने कहा, "जस्टिस शुजात अली खान ने 2013 में वृहद पीठ के गठन के लिए मामला मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया था। राष्ट्रीय महत्व के इस मामले को पूरी पीठ के सामने रखना चाहिए।"यह भी पढ़ें: New Parliament Building: उपराष्ट्रपति धनखड़ नए संसद भवन पर आज फहराएंगे तिरंगा, सोमवार से शुरू होगा विशेष सत्रलाहौर हाईकोर्ट ने इस पर शीघ्र सुनवाई और बड़ी पीठ के गठन पर आपत्ति जताई है और कहा कि यह याचिका बड़ी पीठ के गठन के लिए सुनवाई योग्य नहीं है। याचिकाकर्ता कुरैशी ने कहा कि वरिष्ठ वकीलों के एक पैनल ने लाहौर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पैनल में वे भी शामिल थे। यह याचिका साल 2013 से लंबित है।