Move to Jagran APP

चीनी, रूसी या फिर अमेरिकी, दारा आदमखेल में बिकता है एक से बढ़कर एक हथियार

यहां आपको रिवॉल्‍वर, राइफल, स्‍नाइपर राइफल से लेकर एके 47 और रॉकेट लॉन्‍चर तक खुलेआम बिकता है। इसके अलावा यहां आपको इटालियन राइफल, रशियन कलाकोव, अमेरिकन म्‍यूजेलाइट, 9एमएम हैंडगन भी आसानी से ले सकते हैं।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 01 Jan 2019 10:38 AM (IST)
Hero Image
चीनी, रूसी या फिर अमेरिकी, दारा आदमखेल में बिकता है एक से बढ़कर एक हथियार
नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में जानकर आप हैरान हो जाएंगे। यहां पर आपको रिवॉल्‍वर, राइफल, स्‍नाइपर राइफल से लेकर एके 47 और रॉकेट लॉन्‍चर तक खुलेआम बिकता है। इसके अलावा यहां पर आप इटालियन राइफल, रशियन कलाकोव, अमेरिकन म्‍यूजेलाइट, 9एमएम हैंडगन भी आसानी से ले सकते हैं। बस कीमत चुकाइये और ले जाएं जो आपको चाहिए। दरअसल, जिस जगह की हम बात कर रहे हैं वह जगह पाकिस्‍तान के खैबरपास इलाके के दारा आदमखेल में स्थित है। आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां पर चल रहे इस कारोबार को सरकारी संरक्षण तक प्राप्‍त है। इससे भी ज्‍यादा हैरानी की बात ये है कि यहां के लोगों की आजीविका का ये सबसे बड़ा जरिया है। इससे भी बड़ी बात ये है कि यहां पर इस कारोबार में बच्‍चों से लेकर बड़े तक सब शामिल हैं।

संवेदनशील इलाको में गिनती 
खैबरपास से की पहाडि़यां पार कर यह इलाका काफी संवेदनशील इलाको में गिना जाता है। यहां पर पाकिस्‍तान सेना की गार्जियन यूनिट का हैडक्‍वार्टर भी है। इस पूरे इलाके में सैकड़ों दुकानें हैं जहां पर आपको एक से बढ़कर एक हथियार शॉकेस में टंगा हुआ दिखाई दे जाएगा। हर तरह के ऑटोमैटिक वैपन को जांचने के लिए यहां पर बाकायदा शूटिंग रेंज भी बनी है जो यहां पर तैनात फोर्स की देखरेख में रहती है। यहां से आप किसी भी तरह के हथियार को चलाकर देख सकते हैं। यहां पर रोजाना गोलियों की आवाजें आना बेहद आम बात है। यहां की हर दुकान पर सैकड़ों हथियार बाकायदा पैक तरीके से हिफाजत के साथ रखे जाते हैं। लेकिन ध्‍यान रहे यहां आने वालों पर पाकिस्‍तान सेना की पूरी निगाह रहती है। कुछ हथियार जैसे एके-47, अमेरिकी या रशियन राइफल दुकान के बाहर तो लैथेल वैपन जैसे रॉकेट लॉन्‍चर आदि आपको दुकान के बेसमेंट में मिल जाएंगे। इस पूरे इलाके की अर्थव्‍यवस्‍था केवल इसी कारोबार पर टिकी है।

दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी अवैध हथियार मार्किट
यहां पर आपके लिए यह भी जानना बेहद जरूरी है कि यहां की मार्किट दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी अवैध हथियार मार्किट है। यहां के कारीगर हथियारों को बनाने में इतने दक्ष हैं कि आप असली और नकली में कोई फर्क नहीं कर सकेंगे। यहां तक की इन कारीगरों की बनाया हर हथियार किसी मल्‍टीनेशनल कंपनी के हथियार की बराबर ही खरा उतरता है। यहां की यह मार्किट काफी पुरानी है और हथियार माफिया समेत आतंकियों की पसंदीदा मार्किट भी है। यहां के बनाए हथियार कई जगहों पर कहर बरपा रहे हैं। पाकिस्‍तान के प्रमुख अंग्रेजी अखबार डॉन के मुताबिक यहां के शाहनवाज अफरीदी जो अफरीदी कबीले से ताल्‍लुक रखते हैं इस कारोबार से करीब 35 वर्षों से जुड़े हैं। यहां पर हथियारों के कारखाने में हर तरह का हथियार बनाने के लिए आज भी परंपरागत तरीके का ही इस्‍तेमाल किया जाता है। कई दुकानें और कारखाने यहां पर पीढ़ी दर पीढ़ी दादा-बाप-पोते चला रहे हैं।

बिजली की नहीं सुचारू व्‍यवस्‍था
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस पूरे इलाके में लाइट की व्‍यवस्‍था आज तक भी बेहतर नहीं है। ऐसे में भी हथियारों की यह मार्किट जस की तस काम करती है। यहां पर बने हथियारों पर बाकायदा एक वर्ष की गारंटी दी जाती है। और ऑर्डर देने के एक सप्‍ताह के अंदर आप सामान की डिलीवरी भी ले सकते हैं। यहां पर कमाई का और दूसरा कोई जरिया न होने के कारण और अशिक्षा के कारण भी यहां के ज्‍यादातर लोग इसी पेशे से जुड़े हैं। यहां पर आर्मी के कुछ न कुछ ऑपरेशन हर समय ही चलते रहते हैं। इस पूरे इलाके में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब आठ दुकाने और कारखाने हथियार बनाने के कारोबार में लगे हैं। इसके अलावा भी कुछ छोटे कारखाने भी यहां पर हैं जो इस काम में लगे हैं।

यहां पर है सबसे अधिक खपत
यहां के लोगों को स्‍थानीय भाषा में हिंदुस्‍तानी कहा जाता है। लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि इनका भारत से नाता है। इस कारोबार से जुड़े ज्‍यादातर कारोबारी लोग पंजाबी और सिंघ प्रांत के हैं और वर्षों से इस कारोबार में लगे हुए हैं। वहीं आर्म्‍स डीलकर की बात करें तो इनमें ज्‍यादातर अफरीदी समुदाय से ताल्‍लुक रखते हैं। यहां के हथियारों का ज्‍यादातर हिस्‍सा भी इन्‍हीं इलाकों में खपता भी है। अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक यह काफी मुनाफे का कारोबार है। यहां के कारोबारियों को अकसर पंजाब समेत अलग अलग सूबों से हथियारों के बड़े ऑर्डर मिलते रहते हैं। यहां पर यदि आपको टीटी पिस्‍तौल चाहिए तो दो दिन का वक्‍त लगेगा और यदि 9एमएम पिस्‍तौल चाहिए तो इसके लिए एक सप्‍ताह का समय लगेगा। इसके अलावा और दूसरे बड़े और ऑटोमैटिक हथियारों के लिए भी इसी तरह से कुछ वक्‍त और लगता है। आर्डर देने के साथ ही कुछ रकम पेशगी के तौर पर और बाकी रकम आर्डर मिलने पर अदा करनी होती है।

ओसामा की थी पसंदीदा मार्किट
शाहनवाज की मानें तो अफगान जिहाद के दौरान यहां पर बड़े हथियार भी बनाए जाते थे लेकिन फिलहाल अब ये नहीं बनाए जाते हैं। 1980 के दशक में ओसामा बिन लादेन के लिए भी यहां की मार्किट बेहद खास थी। वह यहां से भारी मात्रा में हथियारों की खरीद करता था। उस दौर में यह मार्किट खूब परवान चढ़ी थी। यहां पर 9एमएम पिस्‍तौल और एके 47 की सबसे ज्‍यादा मांग रहती है। मौजूदा समय में यहां पर एके 47 की कीमत महज 12 हजार रुपये है। अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में चीन और रशियन राइफल्‍स जहां 2 लाख रुपये में मिलती है उसके लिहाज से यह कीमत काफी कम है। यहां जितने लोग इस कारोबार में लगे हैं वह हथियार बनाने के लिए उत्‍तम क्‍वालिटी का स्‍टील इस्‍तेमाल करते हैं।

रोज लड़ते हैं बर्फ से ताकि चलती रहे जिंदगी, ये है सेना की ग्रेफ विंग के जांबाजों की कहानी 
वर्ष 2018 में सोशल मीडिया ने इन 10 लोगों को रातोंरात बना दिया स्‍टार, डालें एक नजर
Year Enders 2018: इस साल भारत में सुर्खियों में बनी रहीं ये 10 Fake News, आप भी डालें एक नजर
समय के साथ कम हो रही है मेघालय की खदान में फंसे 15 लोगों बचे होने की उम्‍मीद
पूरी दुनिया में अब भी जहां-तहां दबे हो सकते हैं द्वितीय विश्‍व युद्ध के जिंदा बम, कहीं हो न जाए हादसा
Year Enders 2018: ऐसी भारतीय महिलाएं जिनका लोहा पूरी दुनिया ने माना