Move to Jagran APP

भुट्टो ने जिया उल हक को बनाया था सेनाध्‍यक्ष बाद में उसने ही दी उन्‍हें फांसी

पाकिस्‍तान के इतिहास में 4 अप्रैल का दिन बेहद बुरा है। बुरा इसलिए क्‍योंकि इसी दिन 1979 को पाकिस्‍तान के पूर्व राष्‍ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो को रावलपिंडी की सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Thu, 05 Apr 2018 09:46 AM (IST)
भुट्टो ने जिया उल हक को बनाया था सेनाध्‍यक्ष बाद में उसने ही दी उन्‍हें फांसी

नई दिल्‍ली [स्‍पेशल डेस्‍क]। पाकिस्‍तान के इतिहास में 4 अप्रैल का दिन बेहद खास है। खास इसलिए क्‍योंकि इसी दिन 1979 को पाकिस्‍तान के पूर्व राष्‍ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो को रावलपिंडी की सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी। विडबंना यह भी है कि जिसने इस फांसी की सजा पर अंतिम मुहर लगाई थी वह कोई और नहीं बल्कि तत्‍कालीन सैन्‍य तानाशाह जनरल जिया उल हक था। इन्‍ही जिया उल हक को कभी भुट्टो ने ही सेनाध्‍यक्ष के पद पर बिठाया था।

अंतिम पलों का जिक्र

बेनेजीर ने अपनी आत्मकथा 'डॉटर ऑफ द ईस्ट' में अपने पिता के उन आखिरी पलों को याद करते हुए लिखा है कि उनकी मां ने उनसे कहा था कि कोई आया है जो उन्‍हें तुरंत जेल में उनके पिता से मिलने के लिए वहां ले जाना चाहता है। वह लिखती हैं कि उन्‍हें और उनकी मां को इस बात का अंदेशा था कि क्‍या होने वाला है लेकिन दोनों ही इसको स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। घर पर आए लोग दोनों को ही साथ ले जाने की जिद कर रहे थे, इसका एक ही मतलब था कि ज़िया मेरे पिता की हत्या करने के लिए तैयार थे। इसके बाद में बेनेजरी और उनकी मां को रावलपिंडी की जेल में ले जाया गया। तलाशी के बाद दोनों भुट्टो से कुछ दूरी पर खड़े थे। उन्‍हें मिलने के लिए महज आधा घंटा ही दिया गया था जबकि मुलाकात का समय अंतिम समय में करीब एक घंटा होता है।

बेनेजीर को सौंपी घड़ी और सिगार

बेनेजीर को भुट्टो ने अपनी कुछ चीजें सौंपी। इसके बाद बेनेजीर ने वहां मौजूद अधिकारी से अपने पिता को गले लगाने की इजाजत मांगी थी, लेकिन उसने साफ इंकार कर दिया। इसके बाद न चाहते हुए भी जबरदस्‍ती जुल्फिकार अली भुट्टो के हाथ और पांव रस्‍सी से बांधे गए और उन्‍हें फांसी के फंदे तक ले जाया गया। इसके बाद जल्‍लाद ने लीवर खींच दिया। भुट्टो की इस तरह की मौत पर उस वक्‍त पाकिस्‍तान में दबी जुबान में काफी विरोध हुआ था। लेकिन तानाशाह के सामने किसी की हिम्‍मत इसको उजागर करने की नहीं हुई।

जिया उल हक ने किया सबसे लंबे समय तक राज

जनरल जिया उल हक ऐसे सैन्‍य शासक थे जिन्‍होंने पाकिस्‍तान में सबसे लंबे समय तक शासन किया था। 5 जुलाई 1977 को तत्‍कालिन जनरल जिया-उल-हक ने प्रधानमंत्री जुल्‍फीकार अली भुट्टो का तख्‍तापलट कर सत्‍ता अपने हाथों में ली थी। इतना ही नहीं हक ने उन्‍हें सत्‍ता से हटाते ही जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया था। इसको पाकिस्‍तान के इतिहास की विडंबना ही कहा जाएगा कि भुट्टो ने ही हक को 1 मार्च 1976 को तीन स्‍टार से बढ़ाकर चार स्‍टार का रैंक मतलब सेना प्रमुख बनाया था।

सत्ता हथियाने के बाद लगाया मार्शल लॉ

जनरल बनने के एक साल के बाद 5 जुलाई 1977 को उन्‍होंने देश की सत्‍ता को अपने हाथों में लेकर मार्शल लॉ लागू कर दिया था। इसके दो वर्ष के अंदर ही उन्‍होंने जुल्‍फीकार अली भुट्टो को हत्‍या की साजिश रचने के आरोप में फांसी पर चढ़ा दिया था। ऐसा करने के लिए उन्‍होंने सभी अंतरराष्‍ट्रीय बिरादरी की अपील को भी ठुकरा दिया था। जिस वक्‍त जुल्‍फीकार अली भुट्टो को फांसी दी गई थी तब बेनेजीर भुट्टो 26 साल की थीं। हकीकत यह भी है कि देश में मार्शल लॉ लगाने और राष्‍ट्रपति भुट्टो को कैद करने के साथ ही उन्‍होंने उनकी सजा भी तय कर ली थी।

सेनाध्‍यक्षों की सत्‍ता की चाह

दरअसल, पाकिस्‍तान की बात जब भी किसी की जुबां पर आती है तब वहां पर लोकतांत्रिक सरकारों से ज्‍यादा सैन्‍य शासन का जिक्र जरूर होता है। इसकी वजह भी बेहद साफ है। पाकिस्‍तान की सत्‍ता के शीर्ष पर बैठने की चाहत यहां के राजनेताओं से ज्‍यादा यहां की सेना के प्रमुखों पर ज्‍यादा भारी दिखाई देती है। पाकिस्‍तान के इतिहास में जितने वर्ष लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार नहीं रही है उससे कहीं ज्‍यादा समय सैन्‍य शासन रहा है। पाकिस्‍तान के इतिहास पर नजर डालते हैं तो पता चलता है कि 1958 में जनरल अयूब खान ने सत्‍ता हथियाई थी।

अयूब खान ने सबसे पहले हथियाई थी सत्‍ता

अयूब खान पाकिस्तान के इतिहास में पहले सेना के कमांडर थे, जिन्होंने सरकार के खिलाफ सैन्य विद्रोह कर सत्ता पर कब्जा किया और वे पाकिस्‍तान के पहले स्‍वंयभू फील्‍ड मार्शल भी थे। अयूब खान पाकिस्‍तान के पहले सबसे युवा जनरल थे। इसके बाद 1968-69 में जनरल याहिया खान ने भी ऐसा ही कदम उठाया और सत्‍ता छीन ली थी। 1971 में जनरल टिक्‍का खान और फिर 1977 में जनरल जिया उल हक ने भी लोकतांत्रिक सरकार को हटाकर सत्‍ता हथियाई थी। यह सिलसिला इसके बाद भी जारी रहा और फिर 1999 में तत्‍कालीन जनरल परवेज मुशर्रफ ने सत्‍ता हथियाकर देश में मार्शल लॉ लगाया था।

भारत से पहले चीन को हुई रूसी S- 400 Triumf मिसाइल सिस्‍टम की डिलीवरी
जब इंदिरा गांधी के भी फैसले को मानने से सैम मानेकशॉ ने कर दिया था इंकार
सीरिया में बंद होगी गोलियों और बमों की आवाज, सजेंगी हंसी-ठहाकों की महफिलें
चीन की हर चाल का जवाब देने के लिए भारत भी कर चुका है पूरी तैयारी
रूस और ईरान की बदौलत डीजल और पेट्रोल के दामों में अब पहले जैसी नरमी आना मुश्किल
युद्ध अभ्यास शुरू कर दक्षिण कोरिया ने की गलती, कहीं बन न जाए किम से शांति के मार्ग में रोड़ा