यूक्रेन को जिन तीन देशों ने बुडापेस्ट ज्ञापन साइन कर दिया था सुरक्षा का भरोसा, अब वही बने दुश्मन!
Russia Ukraine war 1994 में रूस अमेरिका और ब्रिटेन ने मिलकर यूक्रेन को ये भरोसा दिलाया था कि संप्रभुता की रक्षा की जाएगी। इसके लिए बुडापेस्ट ज्ञापन साइन किया गया था। मौजूदा समय में रूस और यूक्रेन के बीच जल रहे युद्ध को एक माह हो गया है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 25 Mar 2022 09:59 AM (IST)
नई दिल्ली (आनलाइन डेस्क)। रूस और यूक्रेन के युद्ध को एक माह पूरा हो गया है। इस एक माह के दौरान रूस ने यूक्रेन पर जबरदस्त हमला कर यूक्रेन को दशकों पीछे पहुंचा दिया है। इस लड़ाई में पहले रूस ने न तो हाईटेक मिसाइलों को इस्तेमाल किया था और न ही एयर स्ट्राइक की थी, लेकिन अब वो इस लड़ाई को जल्द खत्म करने और जीतने के लिए सभी चीजों का इस्तेमाल कर रहा है। लेकिन इन सभी के बीच एक बात काफी दिलचस्प है। वो ये कि कभी रूस ने अन्य दो देशों के साथ मिलकर एक ज्ञापन पर साइन किए थे, जिसका मकसद यूक्रेन की जरूरत पड़ने पर हरसंभव सुरक्षा करना था। इसको बुडापेस्ट ज्ञापन के नाम से जाना जाता है। हालांकि, अब रूस ही उसकी बर्बादी का कारण बन गया है।
1991 में आजाद हुआ था यूक्रेनगौरतलब है कि सोवियत संघ को विधटन के बाद दिसंबर 1991 में यूक्रेन एक आजाद राष्ट्र के तौर पर सामने आया था। 1994 में रूस के साथ ब्रिटेन और अमेरिका ने मिलकर बुडापेस्ट ज्ञापन साइन किया था। अब जहां रूस यूक्रेन पर ताबड़तोड़ हमले कर रहा है, वहीं अमेरिका और ब्रिटेन प्रतिबंध लगाने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे हैं। कुल मिलाकर इस समय यूक्रेन की बर्बादी की वजह ये तीनों ही बने हुए हैं। इसके बाद ही रूस ने यूक्रेन में स्थित अपने सभी परमाणु केंद्रों को भी निष्क्रय कर दिया था।
नाटो बनी समस्या आपको बता दें कि यूक्रेन के नाटो की तरफ झुकाव का वजह से ही इस लड़ाई की शुरुआत हुई है। हालांकि, यूक्रेन ने इसकी शुरुआत अप्रैल 2008 में की थी। आज तक भी उसको इसकी सदस्यता हासिल नहीं हो सकी है। अब यूक्रेन का भी धैर्य जवाब देने लगा है। यही वजह है कि नाटो को लेकर वो अब काफी आक्रामक दिखाई दे रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की कह चुके हैं कि जब वो राष्ट्रपति बने थे तभी उन्होंने नाटो के गोलमोल रवैये की वजह से इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। इतना ही नहीं, जेलेंस्की यहां तक कह चुके हैं कि नाटो रूस से डरता है इसलिए वो उसको सदस्यता नहीं दे रहा है।
नाटो विस्तार का विरोधी है रूस पर ये भी बताना जरूरी है कि रूस हमेशा से ही नाटो के विस्तार को घोर विरोधी रहा है। रूस चाहता है कि नाटो जहां पहले था, वहीं तक उसको सीमित रहना चाहिए। नाटो के विस्तार को रूस अपने लिए बड़ा खतरा मानता है। यूक्रेन और रूस की लड़ाई में अमेरिका समेत अन्य देशों के शामिल न होने के पीछे रूस का ही दबाव है।