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यूक्रेन के हाथों से निकला चर्नोबिल, जहां 36 वर्ष पहले हुआ था एक बड़ा परमाणु हादसा, अब रूस ने किया कब्‍जा, जानें- इसका खौफनाक इतिहास

Russia Ukraine War रूस ने उस चर्नोबिल शहर पर अपना कब्‍जा कर लिया है जहां पर कभी सबसे बड़ा परमाणु हादसा हुआ था। ये पूरा शहर इतिहास के पन्‍नों में अपनी एक जगह बना चुका है। रूस और यूक्रेन युद्ध में इसका जिक्र फिर शुरू हो गया है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 25 Feb 2022 05:23 PM (IST)
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चर्नोबिल परमाणु हादसा पूरी दुनिया को याद है

नई दिल्‍ली (आनलाइन डेस्‍क)। रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग के बीच एक बार फिर से चर्नोबिल परमाणु संयंत्र चर्चा में आ गया है। चर्नोबिल पर रूस के कब्‍जे के बाद इसके इतिहास को दोहराना भी जरूरी हो जाता है। चर्नोबिल परमाणु संयंत्र में 26 अप्रैल 1986 को एक भयानक हादसा हुआ था जिसके बाद ये संयंत्र पूरी तरह से तबाह हो गया था। इस हादसे को की गिनती आज तक दुनियाभर में हुए बड़े औद्योगिक हादसों में की जाती है। परमाणु दुर्घटना की बात करें तो सबसे ऊपर जापान के फूकूशिमा हादसे का नाम आता है, जहां पर एक दशक पहले आई सूनामी और जबरदस्‍त भूक्रप ने काफी नुकसाान पहुंचाया था। चर्नोबिल की घटना उस वक्‍त हुई थी जब रूस को सोवियत संघ के नाम से जाना जाता था। रायटर्स की खबर में कहा गया है कि यूक्रेन की न्‍यूक्लियर एजेंसी ने अब इसकी साइट पर रेडिएशन लेवल बढ़ता हुआ पाया है। 

गड़बड़ी बनी थी हादसे की वजह:

चेर्नोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र के चौथे रिएक्टर में गड़बड़ी आने की वजह से ये हादसा हुआ था। ये हादसा इतना जबरदस्‍त था कि इसमें संयंत्र की छत उड़ गई थी और काफी दूर तक इसका रेडिएशन फैल गया था। हादसे के बाद पर्यावरण को रेडिएशन फ्री करने के लिए तत्‍कालीन सोवियत संघ को करीब 5 से ।0 रुपये खर्च करने पड़े थे।

हो रही थी टेस्टिंग:

इस दुर्घटना के समय RBMK-प्रकार परमाणु रिएक्टर में एक स्टीम टर्बाइन में टेस्टिंग चल रही थी। तभी इसमें गड़बड़ी आ गई। कई कोशिशों के बाद भी इंजीनियर और वैज्ञानिक इसको सही नहीं कर सके। हालांकि इसके बाद भी टेस्टिंग को तत्‍काल नहीं रोका गया और इसको जारी रहने दिया गया। जब टेस्टिंग खत्‍म हो गई तो इस संयंत्र को बंद करने का फैसला लिया गया। लेकिन वो ऐसा नहीं कर सके और एक अनियंत्रित परमाणु श्रृंखला अभिक्रिया की शुरु हो गई। इसकी वजह से जरूरत से अधिक एनर्जी वहां पर रिलीज होती रही।

जबरदस्‍त धमाके से उड़ गई प्‍लांट की छत:

इस एनर्जी की वजह से इसके अंदर का भाग पिघलने की स्थिति में आ गया जिससे वहां पर एक जबरदस्‍त विस्‍फोट हो गया। इससे पहले की कोई संभल पाता वहां पर रिएक्टर का इनर पोर्शन और रिएक्टर बिल्डिंग तबाह हो गई। इसके तुरंत बाद संयंत्र को आग की ऊंची लपटों ने घेर लिया। हादसे के करीब नौ दिन बाद तक भी हवा में रेडिएशन फैलता रहा। ये रेडिएशन पश्चिमी यूरोप तक भी पहुंच गया था। 4 मई 1986 को इसे किसी तरह से रोककर बंद किया गया। इस रेडिएशन की वजह से बेलारूस का करीब 15 किमी का इलाका प्रभावित हुआ था।इस धमाके में आधिकारिक तौर पर रिएक्टर के अंतर्भाग के विस्फोट में दो इंजीनियरों की मौत हुई थी और कुछ घायल हुए थे।

लगाई गई इमरजेंसी: 

हादसे के बाद यहां पर इमजरजेंसी लगाई गई और लोगों को शहर से बाहर निकालने के इंतजाम किए गए। रातों-रात गाडि़यों में भरकार लोगों को यहां से बाहर सुरक्षित स्‍थान पर ले जाया गया। आग बुझाने के बाद सबसे पहले इससे निकलने वाले रेडिएशन को बंद करना बड़ी चुनौती थी। इस काम को करने के दौरान करीब डेढ़ सौ कर्मी रेडिएशन के शिकार हुए जिन्‍हें तत्‍काल अस्‍पताल में भर्ती कराया गया। इनमें से करीब 28 लोगों की मृत्यु कुछ ही दिनों में हो गई थी। यहां से निकलने वाले रेडिएशन का असर एक दशक बाद तक भी बना रहा। इसकी वजह से यहां पर कैंसर जैसी घातक बीमारियां पनपी जिनसे लोगों की जान गई। 2011 में इसकी ही वजह से 15 बच्चों की मौत थाइराइड कैंसर से हुई थी।

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