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Russia-Ukraine war से जानिए क्‍यों बेहाल है जर्मनी, नतीजा भुगत रही आम जनता और हिचकोले खा रहा उद्योग जगत

रूस से यूरोप को होने वाली गैस सप्‍लाई में आई कमी की मार यहां की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था जर्मनी पर पड़ रही है। जर्मनी की सरकार से लेकर आम जनता और इंडस्‍ट्री सेक्‍टर भी इससे अछूता नहीं रहा है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 16 Aug 2022 12:12 PM (IST)
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रूस यूक्रेन युद्ध में हिचकोले खा रहा जर्मनी का इंडस्‍ट्री सेक्‍टर

बर्लिन (एजेंसी)। रूस और यूक्रेन के बीच छह माह से जारी युद्ध की सबसे अधिक मार यूरोप पर ही पड़ रही है। इसमें भी यूरोप का सबसे बड़ा देश और सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था जर्मनी का तो इसकी वजह से हाल बेहाल है। इस युद्ध ने न सिर्फ यहां के विकास का पहिया रोक दिया है बल्कि आम लोगों की भी मुश्किलों को बढ़ाने का काम किया है। युद्ध की वजह से पहले से ही गैस की जबरदस्‍त कमी चल रही है, उस पर अब सरकार के नए फैसले की भी गाज इन्‍हीं लोगों पर पड़ी है। दरअसल, सरकार ने घरों में गैस की खपत के लिए अतिरिक्‍त अधिभार लगाने का फैसला किया है। इसके तहत अब प्रति किलोवाट गैस की खपत पर 2.419 सेंट अधिक चुकाने होंगे। 

लोगों को करनी होगी अधिक जेब ढीली

इस नए फैसले से किसी भी परिवार को गैस की खपत के लिए कम से कम 40 हजार रुपये या 500 यूरो प्रतिमाह अधिक चुकाने होंगे। सरकार का कहना है कि जर्मनी में चार लोगों के परिवार में हर वर्ष 20 हजार किलोवाट गैस की खपत होती है। इस तरह से मौजूदा समय में एक परिवार गैस पर 3568 यूरोप या करीब 4 लाख रुपये सालाना खर्च करता है। अब नए फैसले के बाद इस खर्च में 13 फीसद की वृद्धि हेा जाएगी। इसका सीधा सा अर्थ है कि गैस के लिए यहां के लोगों को अधिक जेब ढीली करनी होगी।  

जर्मनी की गैस आयातक कंपनी का हाल बेहाल

सरकार ने ये भी कहा है कि जर्मन सरकार ने गैस आयातक कंपनी यूनीपर समेत अन्‍य कंपन‍ियों को राहत देने के लिए ये फैसला लिया है। नया फैसला 1 अगस्‍त से लागू हो जाएगा और अप्रैल 2024 तक गैस की यही बढ़ी दरें रहेंगी। आपको बता दें रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पहले ही जर्मनी समेत समूचे यूरोप में गैस का संकट जारी है। रूस लगातार इसको लेकर यूरोप को झटके दे रहा है। यूरोपीय कमीशन भी इस बात को लेकर आश्‍वस्‍त नहीं है कि इस बार की सर्दियां आराम से कटेंगी भी या नहीं।

यूरोपीय कमीशन की अपील

यूरोपीय कमीशन गैस की कमी को देखते हुए इसकी खपत को कम करने की अपील भी कई बार कर चुका है। पिछले माह ही कमीशन ने कहा था कि इमारतों को तय तापमान से अधिक गर्म न रखा जाए। कमीशन का कहना था कि बची हुई गैस का इस्‍तेमाल सर्दियों में किया जा सकेगा, क्‍योंकि रूस कभी भी गैस की सप्‍लाई को रोक सकता है। जर्मनी के चांसल ओलाफ शाल्‍त्‍ज भी रूस से आने वाली गैस को लेकर आश्‍वस्‍त नहीं हैं। 

हिचकोले खा रहा जर्मनी का उद्योग जगत

गैस की कमी से जर्मनी का उद्योग जगत भी हिचकोले खा रहा है। यहां के स्टील ग्रुप डब्ल्यूवी स्टाल ने कहा है कि गैस की कीमतों के बढ़ने से पहले ही कंंपनी पर 7 अरब यूरो अतिरिक्त खर्च हो रहा है। अब इसमें 50 करोड़ यूरो की रकम और जुड़ जाएगी। कंपनी ने कहा है कि सरकार ने गैस पर अधिभार को जरूरत से ज्‍यादा कर दिया है। ऐसे में काफी मुश्किल हो रही है।  

जानकारों की राय

सरकार के नए फैसले के बाद जानकार भी कहने लगे हैं कि इससे जर्मनी में महंगाई और बढ़ जायेगी। यह पहले ही 8.5 फीसद पर है। कामर्सबैंक के चीफ इकनामिस्‍ट योएर्ग क्रेमर ने तो यहां तक की आशंका जताई है कि सर्दियों में जर्मन में मंदी तक आ सकती है। जर्मन उद्योग महासंघ ने सरकार से कारोबार को सहयोग देने वाले उपायों को लागू करने की मांग की है। वहीं जर्मनी भी यूरोपीयन यूनियन से अधिभार पर वैट में छूट की बाट जोह रहा है। दूसरी तरफ जर्मनी के चांसलर देश की आम जनता को एक सप्‍ताह में अतिरिक्त राहत पैकेज देने का वादा कर रहे हैं। जर्मनी के वित्‍तमंत्री राबर्ट हाबेक ने इन हालातों के लिए रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन को दोषी ठहराया है। उनका कहना है कि रूस ने गैस (Nord Stream-1 gas pipeline) नाम पर पश्चिमी देशों को ब्‍लैकमेल करने के लिए इसकी सप्‍लाई में जबरदस्‍त कटौती की है।

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