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परमाणु संधि की ओर वापस लौटने के लिए रूस ने US के आगे रखी शर्त, समझिए क्या है New START Treaty

रूसी उप विदेश मंत्री सर्गेई रियाबकोव ने बताया कि नई स्टार्ट संधि समझौते के स्थगित करने का हमारा (रूस) फैसला बिल्कुल अटल है। हालांकि अमेरिका चाहता है कि रूस दोबारा समझौते पर वापस लौटे तो अमेरिका रूस के प्रति अपने मौलिक शत्रुतापूर्ण रुख को छोड़ दे।

By AgencyEdited By: Piyush KumarUpdated: Sat, 03 Jun 2023 04:37 PM (IST)
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रूस के उप विदेश मंत्री सर्गेई रियाबकोव की फाइल फोटो।(फोटो सोर्स: एपी)

मॉस्को, एजेंसी। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच रूसी उप विदेश मंत्री सर्गेई रियाबकोव (Sergei Ryabkov) ने बताया कि रूस, अमेरिका के साथ नई स्टार्ट संधि (New START treaty) को फिर से शुरू करने पर विचार कर रहा है। हालांकि, इस संधि के लिए रूस ने अमेरिका के सामने एक शर्त रख दी है। रूस ने कहा कि अगर रूस के प्रति अमेरिका अपना शत्रुतापूर्ण रुख छोड़ दे तो रूस इस संधि को अपनाने पर विचार कर सकता है।

अमेरिका ने रूस को दी हथियारों की जानकारी न देने की धमकी

बता दें कि कुछ हफ्ते पहले अमेरिका ने जानकारी दी थी कि वह रूस को हथियार नियंत्रण संधि के तहत आवश्यक कुछ सूचनाएं प्रदान करना बंद कर देगा, जिसमें उसके मिसाइल और लॉन्चर स्थानों पर अपडेट शामिल हैं। दरअसल, अमेरिका का कहना है कि दोनों देशों के बीच हुई समझौते से रूस ने मुंह मोड़ लिया, जिसकी वजह से अमेरिका ने यह फैसला लिया है।

अमेरिका रूस के प्रति अपने मौलिक शत्रुतापूर्ण रुख को छोड़: रूस

रियाबकोव ने आगे बताया कि नई स्टार्ट संधि समझौते के स्थगित करने का हमारा (रूस) फैसला बिल्कुल अटल है। हालांकि, अमेरिका चाहता है कि रूस दोबारा समझौते पर वापस लौटे तो अमेरिका रूस के प्रति अपने मौलिक शत्रुतापूर्ण रुख को छोड़ दे।

जानें क्या है न्यू स्टार्ट संधि

बताते चलें कि न्यू स्टार्ट संधि में START का मतलब नई सामरिक शस्त्र न्यूनीकरण संधि (Strategic Arms Reduction Treaty) है। दोनों देशों के बीच शीत युद्ध के समय से ही दुश्मनी चल रही है, जिसकी वजह से दोनों देशों ने हजारों सामरिक विनाश के हथियार विकसित किए थे। हथियारों की बढ़ती संख्या को कम करने के लिए दोनों देशों ने परमाणु हथियारों की संख्या को 1550 तक सीमित करने का फैसला किया था। इसी को न्यू स्टार्ट संधि का नाम दिया गया है।

न्यू स्टार्ट संधि को 5 फरवरी 2011 को लागू की गई थी। इसकी अवधि दस साल यानी साल 2021 तक थी। बाद में इसे पांच सालों तक के लिए बढ़ा दिया गया था। अगर ये संधि टूट जाती है तो दोनों देशों के बीच परमाणु हथियार बनाने की होड़ एक बार फिर शुरू हो सकती है।