Move to Jagran APP

Russia Vs US: अमेरिका के खिलाफ रूस के साथ आने वाले देशों का बढ़ता जा रहा है काफिला, अब बना ग्रुप-7

यूक्रेन युद्ध के बाद विश्‍व के जो राजनीतिक हालात बदले हैं उसमें समूची दुनिया दो धड़ों में बंटी हुई खड़ी है। इसमें एक धड़ा अमेरिका के साथ तो दूसरा रूस के साथ है। रूस भी यूएस विरोधी देशों को अपने साथ लाने में जुटा हुआ है।

By Jagran NewsEdited By: Kamal VermaUpdated: Sat, 01 Oct 2022 10:32 AM (IST)
Hero Image
रूस के साथ आने वाले देशों की बढ़ रही गिनती
नई दिल्ली (आनलाइन डेस्क)। रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया दो धड़ों में बंटी हुई है। एक धड़ा रूस के खिलाफ और पश्चिमी देशों के साथ है तो दूसरा धड़ा रूस और उसके समर्थकों के साथ है। इस तरह से विश्व को मौजूदा स्वरूप भी बदला हुआ है। इस बदले हुए स्वरूप में राजनीतिक और रणनीतिक बदलाव भी शामिल है। अमेरिका और रूस दोनों ही अपने समर्थकों की सूची को बढ़ाने में लगे हुए हैं। रूस की ही यदि बात करें तो उसने अपने ग्रुप में चीन, ईरान, उत्‍तर कोरिया, तुर्की, म्‍यांमार, के बाद अब अफगानिस्‍तान को भी जोड़ लिया है।

अफगानिस्‍तान सबसे नया सदस्‍य 

अफगानिस्‍तान इसमें सबसे नया सदस्‍य है जबकि म्‍यांमार की एंट्री इसमें सितंबर की शुरुआत में उस वक्‍त हुई थी जब वहां के सैन्‍य शासन के प्रमुख मिन आंग ह्लिंग रूस के दौरे पर गए थे। कुल मिलाकर इन देशों के साथ रूस की जो खिचड़ी पक रही है उस पर अमेरिका और यूरोपीय देशों की पूरी नजर है। रूस के साथ आने वाले देशों की ही यदि बात करें तो इनकी स्थिति काफी कुछ समान दिखाई देती है।

अमेरिका से चीन और उत्‍तर कोरिया के संबंध

रूस के साथ आने वाले देशों में शामिल चीन, जो विश्‍व की एक बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था भी है उसके अमेरिका के साथ संबंध सबसे निचले दौर में हैं। चीन भी रूस की ही तरह अमेरिकी प्रति‍बंधों का सामना कर रहा है। वहीं उत्‍तर कोरिया जिसको रूस ने पिछले दिनों रणनीतिक मदद देने की भी बात की थी, उसकी भी यही स्थिति है। उत्‍तर कोरिया चीन का बेहद करीबी है और अमेरिकी प्रतिबंधों की मार झेल रहा है। ये एक ऐसा देश है जिसको इसके पड़ोसी देशों के अलावा दूसरे देश भी चिढ़ते हैं और अपने लिए खतरा मानते हैं। रूस और चीन की तरह ये भी अमेरिका का घुर विरोधी देश है।

ईरान-म्‍यांमार का अमेरिका से छत्‍तीस का आंकड़ा 

ईरान की यदि बात करें तो उसका भी हाल कमोबेश यही है। अमेरिकी प्रतिबंध और अमेरिका से छत्‍तीस का आंकड़ा पूरी दुनिया से छिपा नहीं रहा है। उत्‍तर कोरिया और ईरान पर लगे प्रतिबंधों की बड़ी वजह इनके परमाणु कार्यक्रम हैं। म्‍यांमार में जब से लोकतांत्रिक सरकार का तख्‍ता पलट हुआ है तब से वहां पर सैन्‍य शासन है। इसकी वजह से विश्‍व के कई देशों समेत अमेरिका ने इस पर कई कड़े प्रतिबंध लगा रखे हैं। तुर्की की बात करें तो वो भी अमेरिकी प्रतिबंधों की मार झेल रहा है। बात चाहे एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्‍टम की हो या फिर दूसरे सैन्‍य साजो-सामान की तुर्की का भी अमेरिका से छत्‍तीस का आंकड़ा है। तुर्की नाटो सदस्‍य देश होने के बाद भी अमेरिकी रुख का कड़ा विरोध करने वाला एकमात्र देश भी है।

अमेरिका को पसंद नहीं करता तालिबान

रूस के इस ग्रुप में शामिल अफगानिस्‍तान की बात करें तो यहां की मौजूदा तालिबान हुकूमत को अब तक किसी भी देश ने मान्‍यता नहीं दी है। एक वर्ष से अधिक समय से तालिबान अपनी सरकार को मान्‍यता दिलाने की कोशिश कर रहा है। उसकी राजनीति भी इसी के इर्द-गिर्द घूम रही है। चीन ने उससे आर्थिक विकास और कर्ज को लेकर कुछ करार किए हुए हैं लेकिन सरकार को मान्‍यता दिलाने के नाम पर वो भी हाथ खींच चुका है। पाकिस्‍ताान की बात करें तो तालिबान-1 में इनकी सरकार को मान्‍यता देने वाला वही था, लेकिन इस बार उसने भी ऐसा कुछ नहीं किया है। अफगानिस्‍तान आर्थिक रूप से बुरी तरह से पिछड़ा हुआ है। ऐसे में उसको मदद की जरूरत है। रूस ने इस मौके को अपने फायदे के लिए इस्‍तेमाल किया है। तालिबान भी अमेरिका विरोधी है। इस लिहाज से रूस के साथ जाने में उसको कोई परहेज भी नहीं हुआ है।

भारत की स्थिति

रूस के बड़े साझेदार भारत की बात करें तो वो इस ग्रुप का हिस्‍सा तो नहीं है लेकिन इससे बाहर भी नहीं है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि एक तरफ अमेरिका और दूसरे मुल्‍कों ने जहां रूस पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं, वहीं भारत ने उससे अपना व्‍यापार बढ़ाया है। हालांकि भारत की तरफ से किया गया ये फैसला पूरी तरह से रणनीतिक और कूटनीतिक है। भारत ने देशहित में ये सभी फैसले लिए हैं। इसको भारत ने विश्‍व मंच पर पूरी ईमानदारी के साथ स्‍पष्‍ट भी किया है। भारत और रूस के बीच के संबंध कई दशक पुराने हैं। ऐसे में भारत इनसे दूर नहीं हो सकता है। यही वजह है कि भारत ने यूएनएससी में रूस के खिलाफ हुई वोटिंग में हिस्‍सा न लेकर उसका साथ ही दिया है।  

यूक्रेन युद्ध के चलते सर्दियों में बुरी तरह से डूब जाएगी रूस की अर्थव्‍यवस्‍था, देश के अर्थशास्‍त्री का दावा

सख्‍त हो गए हैं चीन को लेकर पाकिस्‍तान के तेवर! US की सलाह ठुकराई, कहा- अपनी शर्तों पर करेंगे ड्रैगन से बातचीत

बाढ़ में डूबे पाकिस्‍तान के लिए भारत से कोई मदद नहीं चाहते हैं विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो, जानें- कुछ और खास बातें