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डिमेंशिया के इलाज में कारगर नहीं अवसादरोधी दवा, पीड़ित की मौत का भी बढ़ जाता है खतरा

यूनिवर्सिटी आफ प्लाइमाउथ के शोधकर्ताओं के नेतृत्व वाला अध्ययन बताता है कि अवसादरोधी दवा मर्टजापिन डिमेंशिया के मरीजों के इलाज में प्रभावी नहीं है। घबराहट डिमेंशिया मरीजों का सामान्य लक्षण है जिसे बातचीत व वाहन चलाने जैसी गतिविधियों के दौरान चिन्हित किया जा सकता है।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Updated: Sun, 24 Oct 2021 07:57 PM (IST)
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अंतरराष्ट्रीय पत्रिका लांसेट में प्रकाशित हुआ अध्ययन
लंदन, आइएएनएस। डिमेंशिया के मरीजों की घबराहट के इलाज में प्रयुक्त होने वाली सामान्य दवा प्रभावी नहीं पाई गई। अंतरराष्ट्रीय पत्रिका लांसेट में प्रकाशित एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि अवसादरोधी यह दवा मौत के खतरे को बढ़ा देती है।

यूनिवर्सिटी आफ प्लाइमाउथ के शोधकर्ताओं के नेतृत्व वाला अध्ययन बताता है कि अवसादरोधी दवा मर्टजापिन डिमेंशिया के मरीजों के इलाज में प्रभावी नहीं है। घबराहट डिमेंशिया मरीजों का सामान्य लक्षण है, जिसे बातचीत व वाहन चलाने जैसी गतिविधियों के दौरान चिन्हित किया जा सकता है। इसमें अक्सर शारीरिक व मौखिक आक्रामकता भी शामिल हो जाती है।

अध्ययन के लिए ब्रिटेन के विभिन्न हिस्सों से अलजाइमर के संभावित 204 मरीजों को चुनकर उनके दो समूह बनाए गए। पहले समूह को मर्टजापिन दवा दी गई, जबकि दूसरे में डमी का इस्तेमाल किया गया। 12 महीने बाद भी मर्टजापिन का उपयोग करने वाले समूह को दूसरे समूह के मुकाबले आराम नहीं मिला। दूसरी तरफ, 16 हफ्तों के दौरान मर्टजापिन समूह से सात लोगों की मौत हुई, जबकि डमी वाले समूह से सिर्फ एक की।

यूनिवर्सिटी के फैकल्टी आफ हेल्थ के डीन व शोध के नेतृत्वकर्ता प्रो. सुबे बनर्जी के अनुसार, 'दुनियाभर में करीब 4.6 करोड़ लोग डिमेंशिया के शिकार हैं और अगले 20 वर्षो में इसके मरीजों की संख्या दोगुनी हो जाएगी। खराब जीवन शैली कई समस्याएं पैदा करती है, जिनमें घबराहट भी शामिल है। हम प्रभावित लोगों के लिए रास्ते की तलाश कर रहे हैं।'

किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है डिमेंशिया

बता दें कि वृद्धावस्था में डिमेंशिया आम बात है। यह एक मानसिक विकार है, जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को भी हो सकती है। बुजुर्ग डिमेंशिया के अधिक शिकार होते हैं। इस बीमारी में व्यक्ति को भूलने की बीमारी हो जाती है। लंबे समय तक रहने पर व्यक्ति की स्मरण शक्ति क्षीण हो जाती है। कई मौके पर व्यक्ति को दैनिक कार्य की भी खबर नहीं रहती है। इस स्थिति के चलते जुबान और मस्तिष्क में सही तालमेल नहीं बैठ पाता है। इस वजह से पीड़ित व्यक्ति की जुबान लड़खड़ाने लगती है।