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ग्लोबल वार्मिग : 10 गुना तेजी से पिघल रहे हिमालय के ग्लेशियर, एशिया में करोड़ों लोगों के लिए पैदा होगा संकट

एक अध्ययन में यह आशंका जताते हुए बताया गया है कि ग्लेशियरों के पिघलने की मौजूदा दर 10 गुना ज्यादा हो गई है। हिमालयी क्षेत्र में आखिरी बड़ा ग्लेशियर करीब 400 से 700 वर्ष पहले बना था। उस कालखंड को लिटिल आइस एज भी कहते हैं।

By TaniskEdited By: Updated: Sun, 26 Dec 2021 07:17 PM (IST)
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संकट की आहट है यह स्थिति। (प्रतीकात्मक फोटो)
लंदन, प्रेट्र। ग्लोबल वार्मिग के कारण हिमालय के ग्लेशियर इतने तेजी से पिघल रहे हैं कि आने वाले कुछ दशकों में एशिया में करोड़ों लोगों के लिए अभूतपूर्व संकट पैदा हो सकता है। पिछले सोमवार को प्रकाशित एक अध्ययन में यह आशंका जताते हुए बताया गया है कि ग्लेशियरों के पिघलने की मौजूदा दर 10 गुना ज्यादा हो गई है। हिमालयी क्षेत्र में आखिरी बड़ा ग्लेशियर करीब 400 से 700 वर्ष पहले बना था। उस कालखंड को लिटिल आइस एज भी कहते हैं। साइंटिफिक रिपो‌र्ट्स में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक, विश्व के किसी भी अन्य हिस्सों की तुलना में हिमालयी ग्लेशियर में सिकुड़ाव की दर सर्वाधिक है।

ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी आफ लीड्स के शोधकर्ताओं की एक टीम ने लिटिल आइस एज के ग्लेशियरों के आकार और बर्फ की सतह के समतुल्य 14,798 हिमालयी ग्लेशियर रीकंस्ट्रक्ट किए। इसके आधार पर उन्होंने हिसाब लगाया है कि वे ग्लेशियर आकार में सर्वाधिक 28 हजार वर्ग किलोमीटर से सिकुड़ कर 19,600 वर्ग किलोमीटर रह गए हैं। यह सिकुड़ाव करीब 40 प्रतिशत है। शोधकर्ताओं ने बताया है कि इस दौरान इनमें 390 घन किलोमीटर और 586 घन किलोमीटर आइस का नुकसान हुआ है।

उनके मुताबिक, बर्फ के पिघलने विश्व भर में समुद्र का सतह 0.92 मिलीमीटर और 1.38 मिलीमीटर तक बढ़ गया है।लीड्स यूनिवर्सिटी से संबद्ध शोधकर्ता तथा इस अध्ययन के लेखक जोनाथन कैरविक ने बताया कि हमारे अध्ययन के निष्कर्ष बतलाते हैं कि पिछले कुछेक शताब्दियों में हिमालयी ग्लेशियर पिघलने की औसत दर की तुलना में अभी यह कम से कम 10 गुना अधिक हो गई है।

उन्होंने बताया कि ग्लेशियरों के पिघलने में यह तेजी पिछले कुछेक दशकों में आई है, जिसमें संयोगवश इंसानी गतिविधियों के कारण जलवायु परिवर्तन का भी बड़ा असर रहा है। बता दें कि हिमालय पर्वत श्रृंखला अंटार्कटिका और आर्कटिक के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी ग्लेशियर बर्फ का स्थान है, जिसे तीसरा ध्रुव भी कहा जाता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, हिमालयी ग्लेशियर के इस तेजी से पिघलने का असर एशिया क्षेत्र की बड़ी नदियों पर बड़ा ही अहम प्रभाव पड़ेगा, जिस पर कि करोड़ों लोग पानी, खाद्यान्न और ऊर्जा के लिए निर्भर हैं। इनमें ब्रह्मपुत्र, गंगा और सिंधु जैसी बड़ी नदियां शामिल हैं।

शोध टीम ने 400 से 700 वर्ष पहले बने ग्लेशियरों के बर्फ की सतह को रीकंस्ट्रक्ट करने के लिए सैटेलाइट इमेज और डिजिटल एलवेशन माडल का प्रयोग किया। यह रीकंस्ट्रक्शन लिटिल आइस एज और मौजूदा स्थिति में आइस को हुए नुकसान की तुलना के लिए किया गया।

हिमालयी ग्लेशियरों के द्रव्यमान में पूर्वी क्षेत्र में ज्यादा तेजी से नुकसान हो रहा है, जो पूर्वी नेपाल से लेकर उत्तरी भूटान तक फैला है। अध्ययन से पता चलता है कि यह भिन्नता संभवत: पर्वत श्रृंखला के दोनों किनारों पर भौगोलिक विशेषताओं में अंतर और वातावरण के साथ उनकी अंतरक्रिया के कारण है- जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न मौसम पैटर्न होते हैं।