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ऐसे बढ़ सकता है कीमोथेरेपी का असर, इम्यून सेल को सक्रिय कर पैंक्रिएटिक कैंसर के मामले में देखा गया सकारात्मक प्रभाव

शोध में पाया गया है कि पैंक्रिएटिक कैंसर से ग्रस्त कुछ लोगों में इम्यून सेल क्लस्टर के रूप में स्ट्रोमा में जमा हो सकते हैं जिसे टर्शियरी लिंफायड स्ट्रक्चर (टीएलएस) कहते हैं जो रोगियों के बचने की संभावना को बढ़ाता है।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Updated: Mon, 12 Jul 2021 05:49 PM (IST)
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लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अध्ययन में आया सामने
वाशिंगटन, एएनआइ। शरीर को बीमारियों से बचाने में इम्यून सेल का बड़ा योगदान होता है। इसे यदि समन्वित रूप में मजबूत और सक्रिय रखा जाए तो कई परेशानियों को कम किया जा सकता है। इसी अवधारणा पर आधारित लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक खास अध्ययन किया है। इसमें उन्होंने बताया है कि पैंक्रिएटिक (अग्नाश्य) कैंसर के मामलों में इम्यून सेल को एक खास संरचना के लिए एकत्र होने को सक्रिय किया जा सकता है, जो कम से कम प्री-क्लिनिकल माडल में कीमोथेरेपी के असर को बढ़ाता है। यह शोध सेलुलर एंड मालिक्यूलर गैस्ट्रोएंटरोलाजी एंड हेपाटोलाजी जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

मौजूदा कोरोना महामारी के दौर में भी यह देखा गया है कि शरीर का इम्यून सिस्टम संक्रमण के बचाव का एक अहम सुरक्षा कवच है। यही इम्यून सिस्टम हमें कैंसर से भी लड़ने में मदद करता है।

हालांकि, पैंक्रिएटिक कैंसर शरीर के अन्य अंगों के कैंसर से थोड़ा अलग होता है। पैंक्रिएटिक कैंसर सेल एक सघन अभेद्य संरचना स्ट्रोमा से घिरा होता है, जो इम्यून सेल को ट्यूमर तक पहुंचने देने में बाधक होता है। इसलिए, इम्यूनोथेरेपी में कैंसर सेल को मारने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है और पैंक्रिएटिक कैंसर के इलाज में इसका असर काफी सीमित होकर रह जाता है। वहीं, यह थेरेपी त्वचा और फेफड़े समेत अन्य कैंसर में काफी प्रभावी रहती है।

 इस तरह लगाया पता

शोध में पाया गया है कि पैंक्रिएटिक कैंसर से ग्रस्त कुछ लोगों में इम्यून सेल क्लस्टर के रूप में स्ट्रोमा में जमा हो सकते हैं, जिसे टर्शियरी लिंफायड स्ट्रक्चर (टीएलएस) कहते हैं, जो रोगियों के बचने की संभावना को बढ़ाता है। हालांकि, टीएलएस सभी पैंक्रिएटिक कैंसर के रोगियों में स्वत: ही निर्मित नहीं होता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए शोधकर्ताओं ने इस विशिष्ट संरचना और टीएलएस की भूमिका की पड़ताल की और ट्यूमर के खिलाफ उसकी गतिविधियों का आकलन किया। टीएलएस की मौजूदगी को ऊतकों में बी सेल, टी सेल और डेंड्रिटिक सेल की अधिकता के आधार पर परिभाषित किया गया है। ये तीनों सेल इम्यून रिस्पांस में अहम भूमिका निभाते हैं। पैंक्रिएटिक कैंसर के रोगियों के सैंपल की जांच के क्रम में इन विशिष्ट सेल्स की मौजूदगी का पता लगाने के लिए स्टेनिंग तकनीक का प्रयोग किया गया, जिसमें पाया गया कि मात्र एक तिहाई रोगियों में ही टीएलएस मिले।

चूहों पर किया प्रयोग

पैंक्रिएटिक कैंसर में टीएलएस के विकास के अध्ययन के क्रम में शोधकर्ताओं ने शुरुआत में उन माडल को लिया, जिसमें टीएलएस मौजूद नहीं था। चूहों पर किए गए प्रयोग में पाया गया कि ऐसे माडल के ट्यूमर में दो सिग्नलिंग प्रोटीन (लिंफायड कीमोकाइंस) के इंजेक्शन दिए जाने पर बी सेल और टी सेल ट्यूमर में प्रवेश कर टीएलएस के रूप में एकत्र हो गए। इस तरह से टीएलएस का विकास कीमोथेरेपी का असर बढ़ा सकता है। शोध टीम द्वारा कीमोकाइन इंजेक्शन को जेमसिटाबाइन (पैंक्रिएटिक कैंसर के इलाज में आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली दवा) के साथ मिलाकर दिए जाने से चूहों में ट्यूमर कम हुआ, जबकि दोनों दवाओं को अलग-अलग दिए जाने से वैसा प्रभाव नहीं दिखा।

इस तरह मिलती है मदद

इस अध्ययन के प्रमुख क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी में लिवर एंड पैंक्रियाज सर्जरी के प्रोफेसर हेमंत कोचर के मुताबिक, पैंक्रिएटिक कैंसर को कोल्ड ट्यूमर के रूप में जाना जाता है। मतलब यह कि कैंसर सेल के पास पर्याप्त मात्रा में इम्यून सेल नहीं होते हैं, जो उससे लड़ने की कोशिश करें, लेकिन हमने अपने इस अध्ययन में दर्शाया है कि इम्यून सेल को न सिर्फ जमा किया जा सकता है, बल्कि पैंनक्रिएटिक कैंसर में कीमोथेरेपी को अधिक असरदार बनाने के लिए उसे प्री-क्लिनिकल माडल में टीएलएस के रूप में भी परिवर्तित किया जा सकता है। इससे स्ट्रोमा का अवरोध कमजोर किया जा सकता है।