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भारतीय इतिहास की इस खूबसूरत राजकुमारी ने जासूस बन उड़ा दी थी हिटलर की नींद

ये कहानी है ब्रिटिश PM विंस्टन चर्चिल की मशहूर जासूसी सेना की एक भारतीय जासूस की। उन्हें ऐसे पदकों से सम्मानित किया गया, जो आज तक केवल तीन महिलाओं को ही मिले हैं।

By Amit SinghEdited By: Updated: Tue, 01 Jan 2019 05:00 PM (IST)
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भारतीय इतिहास की इस खूबसूरत राजकुमारी ने जासूस बन उड़ा दी थी हिटलर की नींद
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। मैसूर के शासक टीपू सुल्तान ने ब्रितानी शासन के सामने झुकने से इंकार कर दिया था। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए 1799 में वह मारे गए थे। उन्हीं की वंशज और बेहद खूबसूरत भारतीय राजकुमारी नूर इनायत खान ने उसी ब्रितानी सेना के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जासूसी की थी। अपनी मौत के बाद वह वॉर हीरो भी बनीं और कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजी गईं थीं। वह हिंसा के खिलाफ थीं। बावजूद उनकी जासूसी के हुनर ने उस वक्त हिटलर की नींद उड़ा दी थी।

नूर हिंसा के खिलाफ थीं। महज 30 वर्ष की आयु में नाजियों ने अपनी कैद में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी। नूर की मौत के बाद उनकी बहादुरी को सम्मानित करते हुए उन्हें फ्रांस में ‘वॉर क्रॉस’ और ब्रिटेन में ‘क्रॉस सेंट जॉर्ज’ से सम्मानित किया गया। अब तक केवल तीन और महिलाओं को इस सम्मान से नवाजा गया है। आज (01 जनवरी) उनके जन्मदिन पर आइये जानते हैं, नूर की हैरान कर देने वाली कहानी।

किताब के बाद अब बन रही फिल्म
नूर की जिंदगी इतनी हैरान करने वाली और उतार-चढ़ाव से भरी है कि उन पर एक किताब भी लिखी जा चुकी है। श्रावणी बसु ने नूर की जिंदगी पर ‘दि स्पाइ प्रिसेंजः दि लाइफ ऑफ नूर इनायत खान’ नाम से किताब लिखी है। अब नूर की जिंदगी पर आधारित एक हॉलिवुड फिल्म बन रही है। दीपिका और प्रियंका के बाद अब राधिका आप्टे इस फिल्म से हॉलिवुड में कदम रखेंगी। ये फिल्म अभी से चर्चा में आ चुकी है। बताया जाता है कि नूर को संगीत से भी काफी लगाव था। वह गाने भी लिखती थीं। वीणा बहुच अच्छा बजाती थीं और उन्होंने बच्चों के लिए कहानियां भी लिखी हैं। बहुत कम उम्र में उन्होंने इन कई फिल्म में खुद को माहिर कर लिया था।

वालंटियर के तौर पर ब्रितानी सेना ज्वाइन की थी
नूर इनायत खान का जन्म 01 जनवरी 1914 को मॉस्को में हुआ था। उनकी परवरिश फ्रांस में हुई, लेकिन उनका जीवन ब्रिटेन में बीता। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उनका परिवार ब्रिटेन छोड़कर पेरिस में रहने आ गया था। नूर के पिता भारतीय थे और उनकी मां अमेरीकन थीं। दोनों सूफी मत के मानने वाले थे। लिहाजा नूर भी सूफी मतानुसार हिंसा के खिलाफ थीं। यहां तक की जासूस बनाए जाने के दौरान उन्होंने अधिकारियों से कहा था कि वह झूठ नहीं बोल सकती। इसके बाद उन्हें जासूस बनाए जाने पर काफी आपत्ति भी उठी, लेकिन उन्होंने सबको गलत साबित कर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नूर एक वालंटियर के तौर पर ब्रितानी सेना में शामिल हुई थीं। वह उस देश की मदद करना चाहती थीं, जिसने उनके परिवार को अपनाया था।

ऐसे जुड़ीं स्पेशल ऑपरेशन से
वर्ष 1940 में नूर इनायत खान एयरफोर्स की सहायक महिला यूनिट में भर्ती हो गईं। वह बहुत अच्छी फ्रेंच बोलती थीं। इसलिए स्पेशल ऑपरेशन एग्जिक्यूटिव के सदस्यों का ध्यान उनकी तरफ गया। ब्रिटेन के इस खूफिया संगठन को ब्रितानी प्रधानमंत्री चर्चिल ने बनाया था। इस संगठन का काम नाजी विस्तारवाद के दौरान यूरोप में छापामार कार्रवाई करना था। एयरफोर्स ज्वाइन करने के मात्र तीन साल के भीतर 1943 में नूर ब्रिटिश सेना की एक सीक्रेट एजेंट बन गई थीं। उनकी विचारधारा से संगठन के कई लोग सोचते थे कि वह खुफिया अभियानों के लिए सही नहीं हैं। बावजूद अधिकारियों को लगता था कि नूर एक मजबूत इरादे वाली महिला हैं। लिहाजा उन्हें एक रेडियो ऑपरेटर के तौर पर प्रशिक्षित कर जून, 1943 में फ्रांस भेज दिया गया। उस वक्त बहुत से लोग मानते थे कि नूर फ्रांस में छह हफ्ते से ज्यादा जीवित नहीं बचेगी। इसके विपरीत नूर के साथ काम कर रहे दूसरे एजेंटों की पहचान उनसे पहले कर ली गई थी। वहीं नूर जांच एजेंसियों को चकमा देकर कई बार भाग निकलने में कामयाब रहीं थी।

खूबसूरती की वजह से धोखे का शिकार हुईं थीं नूर
नूर जर्मन पुलिस को चकमा देकर लगातार खूफिया जानकारियां एकत्र कर रहीं थीं। हालांकि, अक्टूबर 1943 में नूर एक धोखे का शिकार हो गईं। इसकी वजह भी उनकी खूबसूरती ही बनी। नूर के ही किसी सहयोगी की बहन ने जर्मन अधिकारियों के सामने उनका राज खोल दिया। दरअसल वह लड़की नूर से काफी ईर्ष्या करती थी, क्योंकि नूर को हर कोई पसंद करता था। इसके बाद जर्मन पुलिस ने नूर को गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाज जर्मनी ने उन्हें ब्रितानी ऑपरेशन की जानकारी लेने के लिए काफी प्रताड़ित किया, लेकिन वह नूर से उनका असली नाम तक पता नहीं कर सके। उन्हें ये भी पता नहीं चला कि वह भारतीय मूल की हैं।

नाजियों ने तीन अन्य महिला जासूसों के साथ मारी थी गोली
नूर को जब नाजियों ने गिरफ्तार किया वह मिशन से जुड़े अपने नोट्स नष्ट नहीं कर पाईं थीं। उनके नोट्स से मिली जानकारी के आधार पर जर्मनों ने कुछ और ब्रिटानी एजेंटों को गिरफ्तार कर लिया। जर्मनों ने नूर को करीब एक साल तक बंदी रखा, इसके बाद उन्हें दक्षिणी जर्मनी के एक यातना शिविर में भेज दिया गया। यहां नूर से राज उगलवाने के लिए एक बार फिर उन्हें की तरह की यातनाएं दी गईं। फिर भी वह नहीं टूटीं। इसके बाद नाजियों ने तीन अन्य महिला जासूसों के साथ नूर को गोली मार दी। उस वक्त उनकी उम्र महज 30 वर्ष थी।