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प्रदूषण से जूझ रहा शहर, पालीथिन से घुट रहा है नागरिकों का दम

पालीथिन से शहर के नागरिकों का दम घुट रहा है। पशु मर रहे हैं और शहर के आसपास की जमीन की उर्वरक क्षमता कम हो रही है लेकिन इसके बावजूद स्थितियां सुधर नहीं रही। शहर में प्रतिदिन करीब पांच क्विटल पालीथिन का इस्तेमाल हो रहा है। इसकी जरूरत खत्म होने के बाद इसे यहां-वहां फेंक देते हैं जो नालियों में जाकर फंस जाता है। खाद्य उत्पादों की खुशबू से आकर्षित होकर मवेशी इसे खा जाते हैं। जमीन पर पड़ी पालीथिन पर मिट्टी का परत चढ़ती जाती है जिससे मिट्टी की उर्वरक क्षमता प्रभावित होने लगी है।

By JagranEdited By: Updated: Thu, 15 Jul 2021 11:11 PM (IST)
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प्रदूषण से जूझ रहा शहर, पालीथिन से घुट रहा है नागरिकों का दम

औरंगाबाद। पालीथिन से शहर के नागरिकों का दम घुट रहा है। पशु मर रहे हैं और शहर के आसपास की जमीन की उर्वरक क्षमता कम हो रही है, लेकिन इसके बावजूद स्थितियां सुधर नहीं रही। शहर में प्रतिदिन करीब पांच क्विटल पालीथिन का इस्तेमाल हो रहा है। इसकी जरूरत खत्म होने के बाद इसे यहां-वहां फेंक देते हैं जो नालियों में जाकर फंस जाता है। खाद्य उत्पादों की खुशबू से आकर्षित होकर मवेशी इसे खा जाते हैं। जमीन पर पड़ी पालीथिन पर मिट्टी का परत चढ़ती जाती है जिससे मिट्टी की उर्वरक क्षमता प्रभावित होने लगी है। गर्म खाद्य पदार्थों को पालीथिन में नहीं रखें

गर्म खाद्य पदार्थों को हम पालीथिन में रखते हैं जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। यह बायस्फेनाल-ए, पीवीसी का मिश्रण होता है जो खाद्य पदार्थों के संपर्क में आते ही अभिक्रियाएं कर हमें नुकसान पहुंचाता है। इससे कैंसर, लंग्स डिसॉर्डर, स्टमक डिसॉर्डर का खतरा होता है। जलाने पर हानिकारक गैस का होता है उत्सर्जन

पालीथिन को जलाना भी हानिकारक है। जलाने पर यह कार्बन मोनो डाईआक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड, नाइट्रोजन, हाईड्रोकार्बन गैस छोड़ती है जो पर्यावरण के साथ हमें नुकसान पहुंचाता है। इनके संपर्क में आने से घुटन महसूस होने लगता है। यह ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचाता है। 90 प्रतिशत पशुओं के पेट में पालीथिन

पशु विशेषज्ञ बताते हैं कि शहर में घूमने वाले 90 प्रतिशत पशुओं की मौत पालीथिन की वजह से होती है। आपरेशन करने पर 90 प्रतिशत पशुओं के पेट से पालीथिन निकलता है। जिले में एक वर्ष के अंदर पालीथिन की वजह से सैकड़ों पशुओं की मौत होती है। खाद्य पदार्थों की खुशबू से आकर्षित होकर पशु इसे खा लेते हैं। खाने के बाद पालीथिन उनके आंत में जाकर फंस जाती है जिससे उनकी मौत हो जाती है। सांस लेने में होती है दिक्कत

अधिकतर नालियों में पालीथिन जमा होता है। रसायनशास्त्र के जानकार बताते हैं कि इनकी मात्रा अधिक होने पर यह कार्बन मोनो डाईआक्साइड गैस निकलता है। इससे घुटन महसूस होता है। इसका उदाहरण पुरानी जीटी रोड पर स्थित अदरी नदी पुल है जहां लोगों को सांस लेना मुश्किल हो गया है। इस्तेमाल करने वाले हैं अंजान

शहर में रोजाना निकलने वाले कूड़े में सबसे अधिक प्लास्टिक की थैलियां होती हैं। 10 साल पहले कूड़े में पालीथिन बैग की मात्रा कम देखी जाती थी परंतु अब यह करीब 70 प्रतिशत तक पहुंच गई है। पालीथिन न नष्ट होती है और न ही सड़ती-गलती है। इसे जलाया भी नहीं जा सकता क्योंकि ऐसा करने पर ये कार्बन मोनो डाईऑक्साइड गैस पैदा करती है जो वायुमंडल में ओजोन परत को नुकसान पहुंचाती है। दूषित हो रहा नदियां का जल

शहर की अदरी एवं पुनपुन नदी भी प्लास्टिक के प्रकोप से पीड़ित है। शहर की नालियों का पानी सीधे इन दोनों नदियों में गिराया जा रहा है जिससे पूरे शहर का प्लास्टिक वेस्ट नदी में जाकर डंप होता है। प्रतिदिन कई क्विटल बेकार प्लास्टिक नदी में डंप होने से नदी धीरे-धीरे संकीर्ण होती जा रही है। इसके घातक प्रभाव के कारण जलीय जीवों की संख्या लगातार घटती जा रही है। प्लास्टिक के कारण शहर का जल प्रदूषित हो रहा है। भूमिगत जल में कार्बनिक रसायन व भारी धातुओं के साथ अन्य प्रदूषकों की उपस्थिति भी मिलने लगी है। इससे पानी में लेड, मैग्निशियम व कैल्शियम की मात्रा बढ़ गई है। नगर परिषद व प्रशासन बेपरवाह

नगर परिषद व प्रशासन की अनदेखी से प्रतिदिन शहर में कई क्विटल प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है। ये प्लास्टिक शहर की आबोहवा में जहर घोल प्रदूषित कर रहे हैं। पर इन बातों को लेकर नगर पार्षद व प्रशासन सख्त नहीं हैं, जिसके कारण शहर में पालीथिन के प्रयोग पर रोक नहीं लग रही।

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मिट्टी में पाए जाने वाला सूक्ष्मजीव पदार्थो को अपघटित करने की क्षमता रखते हैं, लेकिन पालीथिन ऐसा प्रोडक्ट है जिसे अपघटित करने के लिए सुक्ष्मजीव सक्षम नहीं हैं। इसलिए यह मिट्टी से मिलने के बाद भी नष्ट नहीं होता। जलाने पर यह आधा ही जलता है। अत्यधिक मात्रा में जहरीली गैस कार्बन मोनो डाईआक्साइड छोड़ता है। ज्यादा समय तक इस गैस के संपर्क में आने से व्यक्ति की मौत हो जाती है।

प्रो. महेंद्र सिंह, सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष रसायन विभाग, सच्चिदानंद सिन्हा महाविद्यालय।

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पशु के पेट में चार चेंबर होते हैं। पहले चेंबर रुमन में प्लास्टिक फंस जाने के बाद आगे नहीं बढ़ पाता है। झिल्लियां एक-दूसरे से लिपट कर एक ही जगह पर जम जाती है। यह पेट में गैस बनाती है। सांस लेने में मुश्किल हो जाता है और एफ्थेक्सिया के वजह से उनकी मौत हो जाती है। साथ ही प्लास्टिक खा जाने के बाद जब जानवर के पेट में प्लास्टिक फंस जाता है तो भोजन आगे नहीं बढ़ पाता और जानकर खाना-पीना बंद कर देता है जिससे कमजोर हो जाते हैं और उनकी मौत हो जाती है।

डा. आनंद कुमार, पशु चिकित्सक, औरंगाबाद।