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दिल्ली कांग्रेस प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल ने दिया इस्तीफा, मिल रहा बड़े बदलाव का संकेत

शक्ति सिंह गोहिल (निवर्तमान प्रभारी दिल्ली एवं बिहार कांग्रेस) का कहना है कि मैंने निजी कारणों के चलते कांग्रेस आलाकमान से अनुरोध किया है कि मुझे हल्की जिम्मेदारी दी जाए और प्रभारी की जिम्मेदारी से मुक्त किया जाए।

By JP YadavEdited By: Updated: Tue, 05 Jan 2021 08:21 AM (IST)
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शक्ति सिंह गोहिल (निवर्तमान प्रभारी, दिल्ली एवं बिहार कांग्रेस) की फाइल फोटो।

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। दिल्ली कांग्रेस प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल के राज्य में पैर अभी जमे भी नहीं थे कि उन्होंने हाथ खड़े कर दिए। उन्हें कार्यभार संभाले सालभर भी पूरा नहीं हुआ है और आलाकमान को इस्तीफा सौंप दिया। बताया जा रहा है कि उनका इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया गया है। जल्द ही दिल्ली के नए प्रभारी की घोषणा की जा सकती है। गुजरात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी का नाम इस जिम्मेदारी के लिए सबसे ऊपर चल रहा है। हालांकि, अटकलें प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधरी को लेकर भी लगने लगी हैं। वहीं, शक्ति सिंह गोहिल (निवर्तमान प्रभारी, दिल्ली एवं बिहार कांग्रेस) का कहना है कि मैंने निजी कारणों के चलते कांग्रेस आलाकमान से अनुरोध किया है कि मुझे हल्की जिम्मेदारी दी जाए और प्रभारी की जिम्मेदारी से मुक्त किया जाए।

यह बात भी सामने आ रही है कि प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का एक समूह चौधरी के साथ सामंजस्य नहीं बना पा रहा है और प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी किसी और को सौंपे जाने के पक्ष में है। इस तरह के सूरते हाल में बड़ा सवाल यह है कि आखिर डगमगाती कांग्रेस को कंपकंपाते हाथों से स्थिर नेतृत्व कैसे मिलेगा और इस अस्थिरता से कांग्रेस उबरेगी कैसे? नेतृत्व का संकट पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, प्रदेश स्तर पर भी व्यापक स्तर पर देखने को मिल रहा है। 

नतीजा यह हुआ कि करीब 10 या 11 माह के कार्यकाल में शक्ति सिंह गोहिल दिल्ली कांग्रेस के लिए ठोस कर पाना तो दूर, समय तक नहीं दे पाए। उनके लिए प्राथमिकता बिहार विधानसभा चुनाव रही। बिहार चुनाव में कांग्रेस का खराब प्रदर्शन सामने आने के बाद गोहिल कोविड-19 संक्रमित हो गए और अभी तक स्वयं को अस्वस्थ ही बता रहे हैं। वहीं, प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधरी का चयन भी प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं से सलाह मशविरा किए बिना ही किया गया है। यही वजह है कि वे भी अपने करीब 10 माह के कार्यकाल में प्रदेश इकाई को मजबूत करने में नाकाम ही साबित हुए हैं। वरिष्ठता और अहम की लड़ाई में गुटबाजी चरम पर पहुंच चुकी है। जानकारों की मानें तो कांग्रेस इस समय प्रयोग करने की स्थिति में कतई नहीं है। राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि प्रदेश स्तर पर भी पार्टी को स्थिर और मजबूत नेतृत्व की जरूरत है।

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