दिल्ली HC ने खारिज किया निचली अदालत का फैसला, कहा- संवैधानिक अधिकार से वंचित नहीं करती दिव्यांगता
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि महज दिव्यांगता किसी व्यक्ति को कोई भी पेशा व्यवसाय या व्यापार अपनाने के उसके संवैधानिक अधिकार से वंचित नहीं करती है। अदालत ने कहा कि दृष्टि/दिव्यांगता उसके व्यवसाय को चलाने के उद्देश्य से संबंधित परिसर की वास्तविक आवश्यकता को कम नहीं कर सकती। अदालत ने कहा कि दृष्टिबाधित होने के कारण व्यवसाय चलाने में अक्षम होने का याचिकाकर्ताओं का दावा अत्यंत निंदनीय है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। किराये की दुकान से बेदखल करने के मामले में निचली अदालत के निर्णय को खारिज करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि महज दिव्यांगता किसी व्यक्ति को कोई भी पेशा, व्यवसाय या व्यापार अपनाने के उसके संवैधानिक अधिकार से वंचित नहीं करती है।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ ने कहा कि किसी दिव्यांग व्यक्ति को किसी भी व्यापार या व्यवसाय को करने के अधिकार से वंचित करना संवैधानिक अधिकार का अपमान होगा।
अदालत ने कहा कि दृष्टि/दिव्यांगता उसके व्यवसाय को चलाने के उद्देश्य से संबंधित परिसर की वास्तविक आवश्यकता को कम नहीं कर सकती। अदालत ने कहा कि दृष्टिबाधित होने के कारण व्यवसाय चलाने में अक्षम होने का याचिकाकर्ताओं का दावा अत्यंत निंदनीय है और सिरे से खारिज करने लायक है।
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अदालत की यह टिप्पणी किरायेदारों की याचिका पर की, जिसमें अजमेरी गेट इलाके में एक किराये की दुकान से उन्हें बेदखल करने के निचली अदालत के निर्णय को चुनौती दी गई थी। निचली अदालत ने इस आधार पर याचिकाकर्ताओं को बेदखल करने का आदेश दिया था कि मकान मालिक को अपने आश्रित बेटे के लिए व्यवसाय शुरू करने को परिसर की आवश्यकता थी।
वहीं, उक्त निर्णय को याचिकाकर्ताओं ने इस तर्क पर चुनौती दी कि मकान मालिक का बेटा कम दृष्टि की बीमारी से पीड़ित है और इलाज के बावजूद इसे ठीक नहीं किया जा सका। ऐसे वह स्वतंत्र रूप से व्यवसाय चलाने की स्थिति में नहीं था।