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पानी की हर बूंद का मूल्य समझें, खुद भी सजग हों और दूसरों को भी जागरूक करें

हम सभी जानते हैं कि हमारे जीवन में जल की कितनी महत्ता है। हम यह भी जानते हैं कि देश ही नहीं पूरा विश्व आज जल संकट की समस्या से जूझ रहा है। इसके लिए जरूरी है कि हम पानी की हर एक बूंद का मूल्य समझें।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Updated: Sun, 04 Apr 2021 10:42 AM (IST)
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हम पानी की हर एक बूंद का मूल्य समझें। खुद भी सजग हों और दूसरों को भी जागरूक करें।

नई दिल्ली, [अंशु सिंह]। हम सभी जानते हैं कि हमारे जीवन में जल की कितनी महत्ता है। हम यह भी जानते हैं कि देश ही नहीं, पूरा विश्व आज जल संकट की समस्या से जूझ रहा है। इसके लिए जरूरी है कि हम पानी की हर एक बूंद का मूल्य समझें। खुद भी सजग हों और दूसरों को भी जागरूक करें।

जैसे कि महाराष्ट्र के चंद्रपुर के मूल निवासी और अब पुणे में रह रहे वेदांत गोयल एवं उनके साथी यूसुफ कर रहे हैं। दोनों बीते पांच वर्षों से स्कूली बच्चों को जल संरक्षण के प्रति जागरूक कर रहे हैं। स्कूली बच्चे दोनों को प्यार से 'वॉटर दादा' कहते हैं। फिलहाल, पुणे, विदर्भ क्षेत्र, चंद्रपुर एवं उससे सटे आंध्र प्रदेश के कुल 52 स्कूलों में यह अभियान चलाया जा रहा है, जिससे रोजाना 40 हजार लीटर पानी की बचत हो रही है। आने वाले समय में ये 3500 स्कूलों तक इस अभियान को पहुंचाने की योजना पर काम कर रहे हैं।


वेदांत गोयल बताते हैं, मैं महाराष्ट्र के जिस विदर्भ क्षेत्र से आता हूं, वहां जल संकट एक बड़ी समस्या रही है। पढ़ाई के दिनों में अक्सर इससे दो-चार भी होना पड़ता था। मां से पूछता था कि आखिर इसका क्या समाधान है? एक दिन यूं ही सोचा कि क्यों न बच्चों को जल संकट के प्रति जागरूक किया जाए? 2012 में हमने ‘आईनीडसाई’ नाम से एक सामाजिक संगठन की नींव रखी, जिसके तहत बच्चों को डेंटल हेल्थ के प्रति जागरूक किया जाता था।

आगे इसी को विस्तार देते हुए हमने पानी की बचत को लेकर एक अनूठा अभियान शुरू किया। सर्वप्रथम कुछ स्कूलों से संपर्क किया गया। पहले पहल तो वहां से उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली। लेकिन हम मिशन पर लगे रहे। वेदांत वॉलंटियर्स की मदद से स्कूलों तक पहुंचते हैं। वहां मेन गेट पर एक ड्रम रखा जाता है और बच्चों से अपने पानी की बोतल का बचा हुआ पानी (घर लौटते समय) उसमें डालने को कहा जाता है।

इस तरह जो पानी इकट्ठा होता है, उससे स्कूल, स्कूल बसों, शौचालय आदि की साफ-सफाई एवं पौधों को पानी दिया जाता है। वेदांत कहते हैं, बच्चों के साथ हम उनके अभिभावकों को भी समझाने की कोशिश करते हैं। उन्हें बताते हैं कि कैसे वे अपने घरों में भी जल की बचत कर सकते हैं। उसके फिजूल खर्च को कम कर सकते हैं। जैसे नल खोलकर ब्रश न करें, शावर की जगह बाल्टी में पानी भरकर स्नान करें।

पैरेंट्स को बताते हैं कि वे अपनी गाड़ी की सफाई में कैसे जल की बर्बादी को रोक सकते हैं। घर में काम करने वाली बाई कैसे बहते पानी में बर्तन धोने की बजाय किफायती तरीके से काम कर सकती है। इसका असर हो रहा है। आज पुणे की कई सोसायटी में ड्राई एरिया बनाए गए हैं। वेदांत एवं उनके साथियों की एक खास बात यह है कि वे इस पूरे अभियान के लिए किसी प्रकार का दान या डोनेशन नहीं लेते हैं, बल्कि सारे खर्च खुद ही वहन करते हैं। वेदांत एवं यूसुफ दोनों उद्यमी हैं।

ऐसे में वे कारोबार से होने वाली कमाई का कुछ हिस्सा इस अभियान में लगाते हैं। वे कहते हैं, हम समाज को, देश को, देश के नौनिहालों को एक सुरक्षित भविष्य देना चाहते हैं। यह अभियान कुछ लेने नहीं, कुछ देने के लिए शुरू किया गया है। हम जितने अधिक से अधिक स्कूलों तक पहुंचेंगे, उतनी अधिक जागरूकता आएगी। क्योंकि बच्चों को समझाना कहीं अधिक आसान है।