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MCD Meeting: स्थायी समिति के प्रस्ताव को लेकर सदन में हंगामा, भाजपा पार्षदों ने निगम सचिव को किया कमरे में बंद

दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति सर्वोच्च समिति इसलिए क्योंकि सभी वित्तीय मंजूरी अधिकतर पहले स्थायी समिति से ही दी जाती है। इतना ही नहीं पांच करोड़ से अधिक राशि की निविदा में एजेंसी के चयन का अधिकार भी इसी समिति के पास है। आम तौर पर मेयर चुनाव के एक से डेढ़ माह बाद स्थायी समिति का गठन हो जाता है।

By Nihal Singh Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Mon, 15 Jan 2024 03:58 PM (IST)
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MCD Meeting: भाजपा पार्षदों ने निगम सचिव को किया कमरे में बंद

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। स्थायी समिति का गठन होने तक समिति की शक्तियां सदन को दिए जाने को लेकर बुलाई गई निगम सदन बैठक हंगामे का सामना कर रही है। लगातार दो बार मेयर डॉ. शैली ओबेराय दो बार सदन में पहुंची, लेकिन भाजपा के पार्षदों ने उन्हें सदन के आसन पर नहीं बैठने नहीं दिया।

निगम सचिव को किया कमरे में बंद 

इस दौरान भाजपा पार्षदों ने निगम सचिव को कमरे में बंद कर दिया है। भाजपा के पार्षद निगम सचिव को बाहर नहीं आने दे रहे हैं। सहायक निगम सचिव भी अंदर बंद हैं।

भाजपा के पार्षद मेयर के आसन पर चढ़ गए और बैठक शुरू नहीं होने दी। मेयर के आसन के पास निगम ने महिला और पुरूष गार्ड की तैनाती भी की, लेकिन वह कारगर साबित नहीं हुई।

दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति सर्वोच्च समिति इसलिए क्योंकि सभी वित्तीय मंजूरी अधिकतर पहले स्थायी समिति से ही दी जाती है। इतना ही नहीं पांच करोड़ से अधिक राशि की निविदा में एजेंसी के चयन का अधिकार भी इसी समिति के पास है।

मेयर चुनाव के बाद होता है स्थायी समिति का गठन

आम तौर पर मेयर चुनाव के एक से डेढ़ माह बाद स्थायी समिति का गठन हो जाता है, लेकिन मेयर का एक कार्यकाल निकल चुका है और दूसरे वर्ष का कार्यकाल भी अप्रैल माह में समाप्त होने को है बावजूद इसके स्थायी समिति का गठन नहीं हो पाया है।

हालांकि समय-समय पर मेयर डॉ. शैली ओबेराय ने इसको लकेर तर्क दिया है कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट में मनोनीत सदस्यों की नियुक्ति को लेकर मामला लंबित हैं इसलिए वह उस निर्णय का इंतजार कर रही है। उन्होंने कई बार यह भी कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट से अपील करते हैं कि जो निर्णय सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षित रख रखा है उसे जल्द सुनाया जाए। हालांकि इस मामले में मेयर कार्यालय से पक्ष मांगा गया, लेकिन कोई पक्ष नहीं मिल पाया।

कई प्रस्ताव करीब डेढ़ वर्ष से लंबित

स्थायी समिति के गठन न होने से लंबित पड़े हैं कई प्रस्ताव स्थायी समिति के गठन न होने से ऐसे कई प्रस्ताव हैं जो करीब डेढ़ वर्ष से लंबित पड़े हैं। सर्वाधिक प्रस्ताव शहरी नियोजन विभाग के हैं। चूंकि ले लाउट प्लान पास करने की शक्ति सिर्फ स्थायी समिति के पास ही है।

ऐसें में समिति का गठन न होने से 50 से अधिक ले आउट प्लान पास होने के लिए लंबित है। इसमें ढाका में डीयू में बनने वाला एक परिसर भी शामिल हैं। इस परिसर का शिलान्यास स्वयं पीएम मोदी ने बीते वर्ष किया था। इसके अलावा, कूड़े उठाने के लिए एजेंसी नियुक्त करने या फिर कूड़े के पहाड़ों पर ट्रामल मशीनों की संख्या बढ़ाने के लिए दूसरी एजेंसी के चयन जैसे प्रस्ताव भी समिति के गठन होने की वजह से पास नहीं हो पा रहे हैं।

दिल्ली नगर निगम एक्ट संसद से पारित एक्ट हैं। इसमें सदन या फिर निगम और दिल्ली विधानसभा भी कोई भी संशोधन नहीं कर सकती है। इसके लिए संसद से ही इसे संशोधन कराना होगा। एक्ट के अनुच्छेद 44 में मेयर, निगमायुक्त और स्थायी समिति की शक्तियां पहले से ही स्पष्ट हैं। ऐसे में सदन इसे पारित करके अगर इसकी शक्तियों का उपयोग करता हैं तो निर्णय लेने वाले लोग भी भविष्य में जांच के दायरे में आएंगे। वैसे दिल्ली नगर निगम में चुनी हुई सरकार को चाहिए कि वह स्थायी समिति का गठन करें क्योंकि इस पर कोई रोक नहीं है। मेयर चाहे तो 20-25 दिन में स्थायी समिति का गठन हो सकता है।

- अनिल गुप्ता, पूर्व मुख्य विधि अधिकारी, नगर निगम