भारत के इतिहास में कुछ तिथियाँ ऐसी होती हैं जो केवल कैलेंडर का हिस्सा नहीं होतीं, बल्कि हमारी सामूहिक स्मृति और राष्ट्रीय चेतना को उद्वेलित करती हैं। 17 सितंबर ऐसी ही एक तिथि है। इस दिन को भारतीय मानस कई रूपों में स्मरण करता है—भगवान विश्वकर्मा के जन्मदिन के रूप में, हैदराबाद की मुक्ति के प्रतीक दिवस के रूप में और स्वतंत्रता के पश्चात जन्मे भारत के पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के जन्मदिवस के रूप में।

विश्वकर्मा: शिल्प और कौशल के अधिष्ठाता

प्राचीन भारतीय ग्रंथों के अनुसार, 17 सितंबर को भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। उन्हें अद्वितीय वास्तुकार और ब्रह्मांड के शिल्पी के रूप में पूजा जाता है। विश्वकर्मा की स्मृति भारतीय शिल्प परंपरा में गहरी बसी हुई है। उन्होंने द्वारका, हस्तिनापुर जैसे नगरों का निर्माण किया और भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र जैसी अमूल्य धरोहर का सृजन किया।

किंवदंतियों में उल्लेख है कि विश्वकर्मा के पाँच मुख थे और उन्हीं से पाँच पुत्र उत्पन्न हुए। यही पाँच वंश आगे चलकर पाँच प्रमुख कारीगर समुदायों—लोहार, बढ़ई, राजमिस्त्री, सुनार और कांस्यकार—के मूल स्रोत बने। सहस्राब्दियों से भारतीय शिल्पकला और कारीगरी वैश्विक स्तर पर सम्मानित होती रही है। आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना चलाई जा रही है, तो यह आकस्मिक नहीं है। यह कदम भगवान विश्वकर्मा से प्रेरित भारत की शिल्प परंपरा को आधुनिक समय में पुनर्जीवित करने का गंभीर प्रयास है। 2014 में सत्ता संभालने के बाद मोदी सरकार ने कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय बनाकर शिक्षा और रोजगार के बीच की खाई को पाटने का संकल्प लिया। कारीगरों और शिल्पकारों को सम्मान और अवसर देना इसी विचार का विस्तार है।

हैदराबाद की मुक्ति: स्वतंत्रता की अधूरी गाथा

यदि शिल्प और निर्माण का प्रतीक 17 सितंबर है, तो उसी दिन इतिहास का एक और बड़ा अध्याय जुड़ा है। 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद रियासत भारत में सम्मिलित हुई।

भारत को 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिली थी, लेकिन हैदराबाद में निज़ाम मीर उस्मान अली खान का शासन बरकरार रहा। देश के लगभग 7% भूभाग और 5% आबादी पर निज़ाम का कब्ज़ा था, जिनमें बहुसंख्यक हिंदू जनता निज़ाम और उसकी मिलिशिया रजाकारों की क्रूरता झेल रही थी। रजाकारों के अत्याचार असहनीय थे—गाँवों को लूटा गया, महिलाओं के साथ बलात्कार और छेड़छाड़ की गई तथा निर्दोष ग्रामीणों की हत्या की गई। पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने इन घटनाओं को "दक्षिण भारत का जलियांवाला बाग़" कहा था। भैरनपल्ली और परकल जैसे गाँवों में हुए नरसंहार आज भी उस दर्दनाक इतिहास का मौखिक हिस्सा हैं।

निज़ाम को मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुस्लिमीन (एमआईएम) के संस्थापक कासिम रिजवी का समर्थन प्राप्त था। यही रिजवी एक स्वतंत्र इस्लामी राष्ट्र के रूप में "हैदराबाद दक्कन" स्थापित करना चाहता था। इन परिस्थितियों में लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने निर्णायक कदम उठाया। उन्होंने "ऑपरेशन पोलो" के तहत सेना को कार्रवाई का आदेश दिया और केवल पाँच दिनों में, 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद रियासत को भारतीय संघ का हिस्सा बनाया गया।

लेकिन दुर्भाग्यशाली वास्तविकता यह रही कि दशकों तक इस वीरगाथा को न केवल नज़रअंदाज़ किया गया बल्कि जानबूझकर दबा दिया गया। औपनिवेशिक मानसिकता और राजनीतिक तुष्टिकरण के कारण यह महत्त्वपूर्ण विजय राष्ट्रीय चेतना से हटा दी गई। यहाँ तक कि जो लोग इस आंदोलन में सबसे आगे थे, जैसे मुस्लिम पत्रकार शोएबुल्लाह खान, जिन्होंने भारत में विलय की वकालत की, उन्हें रजाकारों ने मौत के घाट उतार दिया। परंतु उनके बलिदान तक को अंधे तुष्टिकरण की राजनीति ने भुला दिया।

इसलिए जब मार्च 2024 में हैदराबाद मुक्ति के 76 वर्ष पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने आधिकारिक अधिसूचना जारी कर हर वर्ष 17 सितंबर को "हैदराबाद मुक्ति दिवस" घोषित किया, तो वह केवल एक तिथि के पुनः स्मरण का कार्य नहीं था। यह राष्ट्र को स्मरण दिलाने वाला कदम था कि भारतीय स्वतंत्रता की प्रत्येक गाथा का सम्मान होगा, चाहे उसे कितना भी लंबे समय तक छुपाने का प्रयास क्यों न किया गया हो।

नरेंद्र मोदी: एक नए भारत के निर्माता

17 सितंबर की तीसरी महत्त्वपूर्ण कड़ी है—नरेंद्र दामोदरदास मोदी। वे न केवल स्वतंत्र भारत में जन्मे पहले प्रधानमंत्री हैं, बल्कि पिछले 60 वर्षों में लगातार तीन आम चुनाव जीतने वाले एकमात्र नेता भी हैं। यह तथ्य ही इस बात का प्रतीक है कि जनता उनकी दृष्टि और नेतृत्व पर गहरा विश्वास रखती है।

पिछले एक दशक में उनके नेतृत्व में भारत ने उस निर्माण और विकास यात्रा की झलक दिखाई है जिसकी नींव विश्वकर्मा जैसे महाशिल्पी के दर्शन में निहित है। मोदी सरकार ने आधुनिक भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर पर बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश कार्य किए।

राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई में 60% की वृद्धि हुई। चालू हवाई अड्डों की संख्या दोगुनी होकर 160 तक पहुँची। देश भर में 1,275 रेलवे स्टेशनों का आधुनिकीकरण हुआ। यह सब केवल आँकड़े नहीं हैं, बल्कि उस बदलते भारत की झलक है जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक नई तस्वीर गढ़ रहा है।

पंच प्राण और उपनिवेशवाद से मुक्ति

जब भारत ने स्वतंत्रता का 75वाँ अमृत महोत्सव मनाया, तो प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले की प्राचीर से 'पंच प्राण' का आह्वान किया— विकसित भारत का संकल्प, औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति, अपनी विरासत और परंपराओं पर गर्व, देश की एकता और एकजुटता, और नागरिक कर्तव्यों का पालन। इन पाँच संकल्पों का गहरा अर्थ है। जब हम विश्वकर्मा की प्रेरणा से आधुनिक भारत का निर्माण करते हैं, तो साथ ही हमें अपने मन को उन बेड़ियों से भी मुक्त करना होगा जो औपनिवेशिक सोच और तुष्टिकरण से उत्पन्न हुई हैं। यह विडंबना है कि जिस हैदराबाद की मुक्ति में हिंदू और मुसलमान दोनों ने बलिदान दिए, उसी मुक्ति दिवस के उत्सव को राजनीति के नाम पर दशकों तक रोका गया। उसी प्रकार अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के पुराने ढाँचे ने सत्य को दबाने का कार्य किया। आज आवश्यकता है कि नए भारत में औपनिवेशिक मानसिकता और ऐसे विभाजनकारी ढाँचों को पूरी तरह त्यागा जाए।

17 सितंबर का संदेश

भारत का भविष्य तभी उज्जवल होगा जब हम अपने अतीत की असुविधाजनक सच्चाइयों का सामना करेंगे और उनसे सीख लेकर आत्मगौरव के साथ आगे बढ़ेंगे। 17 सितंबर का सामर्थ्य इसी में है—यह तिथि हमें बताती है कि सृजन (विश्वकर्मा), स्वतंत्रता का संघर्ष (हैदराबाद मुक्ति) और आधुनिक नेतृत्व (नरेंद्र मोदी) – ये सब एक ही सूत्र में पिरोए जा सकते हैं।

आज जब हम हैदराबाद मुक्ति की 76वीं वर्षगांठ और प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिवस दोनों का स्मरण करते हैं, तो यह कहना बिल्कुल उचित है कि वे केवल एक प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि उस भारत के शिल्पकार हैं जो अपनी परंपरा से प्रेरणा लेकर आत्मविश्वास से भरे भविष्य का निर्माण कर रहा है।

(लेखक: जी. किशन रेड्डी, केंद्रीय कोयला और खनन मंत्री तथा सिकंदराबाद लोकसभा क्षेत्र के सांसद)